Wednesday, 28 August 2019

प्रश्न - *यज्ञ के दौरान आज्याहुति के दौरान टपकाये प्रणीता पात्र के जल की ऊर्जा बोविस मीटर पर उच्च यूनिट पर प्रदर्शित होता है, इसके पीछे रहस्य क्या है?*

प्रश्न - *यज्ञ के दौरान आज्याहुति के दौरान टपकाये प्रणीता पात्र के जल की ऊर्जा बोविस मीटर पर उच्च यूनिट पर प्रदर्शित होता है, इसके पीछे रहस्य क्या है?*


उत्तर- स्वर-विज्ञान कहता है मन्त्र की नाद लहरियों में इतना सामर्थ्य होता है कि वह प्राकृतिक परमाणुओं में शब्द तरंगों से हलचल उतपन्न करके इच्छित परिणाम ला सकती है।

घी ऊर्जा व तरंग दोनों का वाहक है, जब आहुति के साथ मन्त्र का शब्द प्रहार होता है तो अग्नि के ऑक्सीकरण विधि में अग्नि व मन्त्र के सँयुक्त सम्पर्क से घी के प्राकृतिक परमाणुओं में विस्फोट होता है, उसी विस्फोटक अवस्था मे उसे जल में टपका दिया जाता है। जो जल के प्राकृतिक परमाणुओं में भी अपेक्षित विस्फोट करती है।

आयुर्वेद, होमियोपैथी व आधुनिक विज्ञान जानता है कि जितना परमाणुओं को तोड़ेंगे उतनी ज्यादा ऊर्जा को कई गुना बढ़ा सकेंगे। यही क्रम इसमें भी कार्य करता है क्योंकि घी के परमाणुओं में विष्फोट हुआ व उसने जल के परमाणुओं में विष्फोट कर दिया साथ ही मन्त्र के नाद की अल्ट्रा साउंड तरंगे उच्च ऊर्जा का उत्पादन करती हैं। जल उस उच्च दाब की ऊर्जा को डाइल्यूट भी करता है और मनुष्य के सहने योग्य बनाता है।

इसे यज्ञ के पश्चात पुनः हाथों में लगाकर अग्नि के समक्ष  घृतावघ्राण मन्त्र द्वारा पुनः अभिमंत्रित करके हाथों की रगण द्वारा प्राण प्रवाह मिलाकर पुनः रगण से उसे और तोड़ा जाता है फिर तुरन्त तेज़ी से सूंघा जाता है। जिससे वह सूक्ष्म ऊर्जा श्वांस में मिलकर फेफड़ों तक फ़िर वहाँ से रक्त में मिलकर पूरे शरीर में पहुंचकर रक्त के लौह कणों को तरंगित व ऊर्जा  वान कर देती है। एक प्रकार के करंट का संचार करती है।

यदि इस जल को क्रिलियन फोटो कैमरे से देखेंगे तो सहज प्रकाश किरणों को नोटिस कर सकेंगे।

इस जल को डायरेक्ट पीने की सलाह न देने के पीछे दो कारण होते हैं:-

1- सभी मनुष्य की आंते वर्तमान में इतनी सक्षम नहीं कि उच्च ऊर्जा के द्रव्य को पचा सके। यदि वह व्यक्ति साधक लेवल का न हुआ तो इस शक्ति को सम्हाल न सकेगा। अब यह अत्यंत कठिन कार्य है कि यज्ञ पूर्व साधक की स्थिति को जांचना। अतः उत्तम यह है कि इसे सहज ही प्राणवायु में मिश्रित करने की विधि घ्राण से लिया जाय।

2- जल जो यज्ञ कुंड के पास रखा होता है, यज्ञ के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अन्य गैसें जो ऑक्सीज़न से भारी होने के कारण पहले नीचे फिर ऊपर उठती हैं, यज्ञकुण्ड के पास रखा जल  कार्बन व अन्य जल को अवशोषित करता है, जो वृक्षों वनस्पतियों के लिए तो उत्तम है, मग़र मनुष्यो के लिए नहीं।  अतः यज्ञकुण्ड के बिल्कुल पास रखा जल पीने के लिए मना किया जाता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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