प्रश्न - *क्या पति के प्रेम में पत्नी को उसके दुर्व्यवहार व गलतियों को बर्दास्त करना चाहिए, या प्रतिकार भी करना चाहिए? स्त्री को कितना सहनशील होना चाहिए?*
उत्तर - आत्मीय बेटी,
प्रेम निःश्वार्थ होता है, इसमे सामने वाले की खुशी के साथ उसका भला भी सोचा जाता है। प्रेम में व्यक्ति स्वयंमेव बन्धता है। प्रेम में *मैं* मिटकर *तुम* होता है, दूसरे की खुशी के लिए जीते हैं।
मोह स्वार्थी होता है, इसमें स्वयं की खुशी की पूर्ति के लिए सामने वाले का इस्तेमाल किया जाता है। मोह में व्यक्ति का दम घुटता है। मोह में केवल *मैं* ही *मैं* होता है।
अतः पति प्रेम व पति मोह में फ़र्क़ समझें। सहनशीलता की परिभाषा प्रेम व मोह के अंतर के अनुसार अलग होगी। हम प्रेम के अनुसार सहनशीलता को परिभाषित कर रहे हैं।
वेदों में कहा गया है, पति को पत्नी को अपने दसवें पुत्र की तरह सम्हालना होता है। इसी तरह पति को भी अपनी पत्नी को पुत्री की तरह सम्हालना चाहिए।
जैसे माँ बच्चे से निःश्वार्थ प्रेम करती है, पर उसे गलती पर डांटती डपटती भी है। सही करने पर प्रेम लुटाती है।
पति पर प्रेम लुटाने व उस पर क्रोध जताने का तरीका सन्तान से भिन्न होता है। लेकिन वेद कहते हैं कि स्त्री को पति को सम्हालना उतनी ही ततपरता से होता है, जैसे बच्चे को सम्हालते है।
कभी भी पति के अहंकार पर चोट न करें, व न ही उनकी तुलना किसी अन्य के पति से करते हुए बात करें।
स्त्री को मातृ शक्ति का रोल सर्वत्र निभाना होता है, चाहे पति हो या बच्चा। स्त्री का विवेकशील होना अति अनिवार्य है।
कौन सी गलती चुलबुली सहज शरारत है और कौन सी ग़लती दण्डनीय यह फर्क विवेक पूर्वक लेना होगा।
गुस्सा कितना करना है? कब करना है? उसमें कौन से कड़े शब्दो का संयमित प्रयोग करना है, क्रोध के बाद कैसे मनाना है और आवश्यक परिवर्तन स्वभाव में लाना है। यह कुशलता स्त्री को आना चाहिए।
गुस्सा(क्रोध) चाकू की तरह है, सब्जी भी कट सकती है और हाथ भी। ऑपरेशन भी हो सकता है और मर्डर भी। अतः इसका सधे मन से प्रयोग आवश्यक है। मन को साधने के लिए ध्यान आवश्यक है।
ऑपरेशन कभी खुला नहीं छोड़ते, उसी तरह क्रोध के बाद प्रिय वचनों, आत्मीयता और इमोशनल भावनाओं की मरहम पट्टी अवश्य कर दें। जिससे मानसिक स्वास्थ्य जरूर मिल जाये।
धरती की तरह सहनशील बनिये, परिवार का पालन पोषण कीजिये, जीवन दीजिये, यदि वर्षा ज्यादा हो तो बाढ़ लाइये, जरूरत पड़ने पर भूकम्प भी लाइये। यह निर्णय विवेक से लीजिये, विवेक जागृत करने के लिए गायत्री मंत्र जप, ध्यान व स्वाध्याय निम्नलिखित पुस्तको का कीजिये।
📖 प्रेमोपहार
📖 भावसम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये
📖 भज सेवायाम ही भक्ति है
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बेटी,
प्रेम निःश्वार्थ होता है, इसमे सामने वाले की खुशी के साथ उसका भला भी सोचा जाता है। प्रेम में व्यक्ति स्वयंमेव बन्धता है। प्रेम में *मैं* मिटकर *तुम* होता है, दूसरे की खुशी के लिए जीते हैं।
मोह स्वार्थी होता है, इसमें स्वयं की खुशी की पूर्ति के लिए सामने वाले का इस्तेमाल किया जाता है। मोह में व्यक्ति का दम घुटता है। मोह में केवल *मैं* ही *मैं* होता है।
अतः पति प्रेम व पति मोह में फ़र्क़ समझें। सहनशीलता की परिभाषा प्रेम व मोह के अंतर के अनुसार अलग होगी। हम प्रेम के अनुसार सहनशीलता को परिभाषित कर रहे हैं।
वेदों में कहा गया है, पति को पत्नी को अपने दसवें पुत्र की तरह सम्हालना होता है। इसी तरह पति को भी अपनी पत्नी को पुत्री की तरह सम्हालना चाहिए।
जैसे माँ बच्चे से निःश्वार्थ प्रेम करती है, पर उसे गलती पर डांटती डपटती भी है। सही करने पर प्रेम लुटाती है।
पति पर प्रेम लुटाने व उस पर क्रोध जताने का तरीका सन्तान से भिन्न होता है। लेकिन वेद कहते हैं कि स्त्री को पति को सम्हालना उतनी ही ततपरता से होता है, जैसे बच्चे को सम्हालते है।
कभी भी पति के अहंकार पर चोट न करें, व न ही उनकी तुलना किसी अन्य के पति से करते हुए बात करें।
स्त्री को मातृ शक्ति का रोल सर्वत्र निभाना होता है, चाहे पति हो या बच्चा। स्त्री का विवेकशील होना अति अनिवार्य है।
कौन सी गलती चुलबुली सहज शरारत है और कौन सी ग़लती दण्डनीय यह फर्क विवेक पूर्वक लेना होगा।
गुस्सा कितना करना है? कब करना है? उसमें कौन से कड़े शब्दो का संयमित प्रयोग करना है, क्रोध के बाद कैसे मनाना है और आवश्यक परिवर्तन स्वभाव में लाना है। यह कुशलता स्त्री को आना चाहिए।
गुस्सा(क्रोध) चाकू की तरह है, सब्जी भी कट सकती है और हाथ भी। ऑपरेशन भी हो सकता है और मर्डर भी। अतः इसका सधे मन से प्रयोग आवश्यक है। मन को साधने के लिए ध्यान आवश्यक है।
ऑपरेशन कभी खुला नहीं छोड़ते, उसी तरह क्रोध के बाद प्रिय वचनों, आत्मीयता और इमोशनल भावनाओं की मरहम पट्टी अवश्य कर दें। जिससे मानसिक स्वास्थ्य जरूर मिल जाये।
धरती की तरह सहनशील बनिये, परिवार का पालन पोषण कीजिये, जीवन दीजिये, यदि वर्षा ज्यादा हो तो बाढ़ लाइये, जरूरत पड़ने पर भूकम्प भी लाइये। यह निर्णय विवेक से लीजिये, विवेक जागृत करने के लिए गायत्री मंत्र जप, ध्यान व स्वाध्याय निम्नलिखित पुस्तको का कीजिये।
📖 प्रेमोपहार
📖 भावसम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये
📖 भज सेवायाम ही भक्ति है
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment