प्रश्न- *गुरु दीक्षा क्या है? और किससे लेना चाहिए? आज हम देखते हैं कि गुरुदेव के कई शिष्य गुरुजी बनकर दीक्षा दे रहे हैं, विभिन्न साधनायें करवा रहे हैं। कइयों ने अपने अपने आश्रम बना रखे हैं, स्वयं को गुरुदेव बुलवाते हैं। मैं कइयों के आश्रम गया लेक़िन वो अनुभूति, प्राण व शांति नहीं मिली जो शान्तिकुंज में मिलती है। मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय भाई,
सदगुरु बनने का वही अधिकारी है, जिसके पास वशिष्ठ के जैसा ज्ञान हो और विश्वामित्र के जैसा तप हो। भारतीय सनातन धर्म में मनुष्य का जन्म दो बार होता है यह मान्यता है, प्रथम नर-पशु का जन्म और द्वितीय नर-नारायण का जन्म। दीक्षा अर्थात नर-पशु से नर-नारायण बनने के मार्ग पर गुरु के संरक्षण में गुरु के दिखाये मार्ग पर चलना, द्विज अर्थात दूसरा चेतना स्तर पर जन्म। शिष्य के मन को शरीर तल से उठाकर आत्मतल में स्थित करने में सद्गुरु चेतना ही सक्षम होती है। सद्गुरु ही आध्यात्मिक शल्यक्रिया व आध्यात्मिक उपचार में कुशल होता है।
यदि झोला छाप डॉक्टर से मस्तिष्क की शल्यक्रिया(ऑपरेशन) करवाओगे तो समस्या बढ़ेगी, घटेगी नहीं। झोलाछाप डॉक्टर साधारण पेटदर्द, सरदर्द, बदनदर्द और छोटी मोटी चोट तो ठीक कर सकता, लेक़िन मष्तिष्क की शल्यक्रिया करने का दुस्साहस वह करेगा तो नुकसान ही पहुंचेगा। किसी झोलाछाप डॉक्टर की गोली से सरदर्द दूर हुआ तो सर का ऑपरेशन उससे करवाना मूर्खता ही हुई न।
मेरे हिसाब से किसी भी व्यक्ति को उस व्यक्ति को गुरुजी या सद्गुरु नहीं बनाना चाहिए जिसकी चेतना वशिष्ठ व विश्वामित्र स्तर की न हो, जो गायत्रीमय ज्ञान शरीर औऱ आत्मीयता विस्तार की प्रतिमूर्ति न हो। ऐसे व्यक्ति को गुरु न बनाएं, झोलाछाप गुरुओं से चेतना की शल्यक्रिया(ऑपरेशन) न करवाएं। किसी झोलझाप गुरुजी के दावे के अमुक साधना से अमुक वर्षों में अमुक स्तर का तपस्वी बना देंगे और मुक्ति मिल जाएगी यह सब भ्रम व छलावा है।
दीपावली में सोलरउर्जा से रौशनी देते LED बल्ब को गुरु बनाने की भूल न करें, अपितु सोलरउर्जा देने वाले सूर्य से जुड़े। स्वयं की चेतना में उस ऊर्जा को धारण करें।
युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने किसी भी शिष्य को गुरु बनने की आज्ञा नहीं दी है, यदि कोई शिष्य गुरुजी बनने का स्वांग रचेगा तो पाप का भागीदार होगा। क्योंकि अभी तक मेरी नज़र में कोई भी गुरुदेव का ऐसा शिष्य नहीं है जो वशिष्ठ स्तर का ज्ञानी व विश्वामित्र स्तर का तपस्वी व लोकसेवी हो। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसके पास तपस्या से अर्जित प्राणतत्व, आत्मबल सम्पदा, तप की पूंजी, तप से अर्जित ज्ञान की पूंजी हो जो अपना एक अंश दान देकर शिष्य बने व्यक्ति की चेतना को ऊपर उठाने में और आवश्यक चेतना स्तर पर शल्यक्रिया करने में सक्षम हो।
अतः युगतीर्थ शान्तिकुंज या गायत्री तपोभूमि मथुरा या नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ जाकर ही परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को गुरु रूप में वरण करके गुरुदीक्षा लें। सभी शिष्य प्रतिनिधि रूप में कर्मकांड करवाते हैं, लेकिन गुरु केवल परमपूज्य युगऋषि ही बनते हैं। क्योंकि युगऋषि का ज्ञान वशिष्ठ स्तर का है, उनका तप विश्वामित्र स्तर का है, उनकी सूक्ष्म चेतना प्राणतत्व, आत्मबल सम्पदा, तपयुक्त व गायत्री का तेज को धारण किये हुए है। वह ही हमारी चेतना को ऊपर उठाने व आवश्यक शल्यक्रिया करने में सक्षम हैं।
हमारे जैसे पोथी पण्डित(किताबें पढ़कर बने ज्ञानी) अभी स्वयं ही साधना मार्ग में हैं, सोलरउर्जा से चलने वाले LED बल्ब हैं। जब हम स्वयं ही आत्मचेतना से प्रकाशि नहीं तो भला आपकी चेतना को ऊर्जा कैसे देंगे भला? हम जैसे जिनके पास न स्वयं की प्रचण्ड तपशक्ति है, न ही स्वयं का प्रचण्ड तप से अर्जित ज्ञान है और न हीं प्राणतत्व का ऊर्जा भण्डार है। हम जैसे लोग तो परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि का साहित्य पढ़कर आपकी समस्याओ का समाधान करते हैं। आपको समस्यानुसार तप करने का निर्देशन भी युगऋषि का साहित्य पढ़कर देते हैं।
लेक़िन जब आप तप कर रहे होते हैं उस समय हम जैसे लोग आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। *अंतर्जगत में व साधना के समय परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि ही आपके तप के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं और आपके अंतर्जगत को प्रकाशित करके मार्गदर्शन कर सकते हैं। युगऋषि स्वयं ऊर्जा के स्रोत हैं इसलिए ऊर्जा दे सकते हैं*।
अतः सौर ऊर्जा से जलने वाले हम अंधेरे में टिमटिमा सकते हैं, लेकिन आपकी चेतना की बैटरी को ऊर्जा नहीं दे सकते, जीवनभर ऊर्जा स्वयं चाहिए तो मुख्य ऊर्जा स्रोत से जुड़िये। युगऋषि को ही परम्पूज्य गुरुदेव मानकर उनसे ही दीक्षा लीजिये। युगऋषि का ही गुरु रूप में वरण कीजिये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
सदगुरु बनने का वही अधिकारी है, जिसके पास वशिष्ठ के जैसा ज्ञान हो और विश्वामित्र के जैसा तप हो। भारतीय सनातन धर्म में मनुष्य का जन्म दो बार होता है यह मान्यता है, प्रथम नर-पशु का जन्म और द्वितीय नर-नारायण का जन्म। दीक्षा अर्थात नर-पशु से नर-नारायण बनने के मार्ग पर गुरु के संरक्षण में गुरु के दिखाये मार्ग पर चलना, द्विज अर्थात दूसरा चेतना स्तर पर जन्म। शिष्य के मन को शरीर तल से उठाकर आत्मतल में स्थित करने में सद्गुरु चेतना ही सक्षम होती है। सद्गुरु ही आध्यात्मिक शल्यक्रिया व आध्यात्मिक उपचार में कुशल होता है।
यदि झोला छाप डॉक्टर से मस्तिष्क की शल्यक्रिया(ऑपरेशन) करवाओगे तो समस्या बढ़ेगी, घटेगी नहीं। झोलाछाप डॉक्टर साधारण पेटदर्द, सरदर्द, बदनदर्द और छोटी मोटी चोट तो ठीक कर सकता, लेक़िन मष्तिष्क की शल्यक्रिया करने का दुस्साहस वह करेगा तो नुकसान ही पहुंचेगा। किसी झोलाछाप डॉक्टर की गोली से सरदर्द दूर हुआ तो सर का ऑपरेशन उससे करवाना मूर्खता ही हुई न।
मेरे हिसाब से किसी भी व्यक्ति को उस व्यक्ति को गुरुजी या सद्गुरु नहीं बनाना चाहिए जिसकी चेतना वशिष्ठ व विश्वामित्र स्तर की न हो, जो गायत्रीमय ज्ञान शरीर औऱ आत्मीयता विस्तार की प्रतिमूर्ति न हो। ऐसे व्यक्ति को गुरु न बनाएं, झोलाछाप गुरुओं से चेतना की शल्यक्रिया(ऑपरेशन) न करवाएं। किसी झोलझाप गुरुजी के दावे के अमुक साधना से अमुक वर्षों में अमुक स्तर का तपस्वी बना देंगे और मुक्ति मिल जाएगी यह सब भ्रम व छलावा है।
दीपावली में सोलरउर्जा से रौशनी देते LED बल्ब को गुरु बनाने की भूल न करें, अपितु सोलरउर्जा देने वाले सूर्य से जुड़े। स्वयं की चेतना में उस ऊर्जा को धारण करें।
युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने किसी भी शिष्य को गुरु बनने की आज्ञा नहीं दी है, यदि कोई शिष्य गुरुजी बनने का स्वांग रचेगा तो पाप का भागीदार होगा। क्योंकि अभी तक मेरी नज़र में कोई भी गुरुदेव का ऐसा शिष्य नहीं है जो वशिष्ठ स्तर का ज्ञानी व विश्वामित्र स्तर का तपस्वी व लोकसेवी हो। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसके पास तपस्या से अर्जित प्राणतत्व, आत्मबल सम्पदा, तप की पूंजी, तप से अर्जित ज्ञान की पूंजी हो जो अपना एक अंश दान देकर शिष्य बने व्यक्ति की चेतना को ऊपर उठाने में और आवश्यक चेतना स्तर पर शल्यक्रिया करने में सक्षम हो।
अतः युगतीर्थ शान्तिकुंज या गायत्री तपोभूमि मथुरा या नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ जाकर ही परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को गुरु रूप में वरण करके गुरुदीक्षा लें। सभी शिष्य प्रतिनिधि रूप में कर्मकांड करवाते हैं, लेकिन गुरु केवल परमपूज्य युगऋषि ही बनते हैं। क्योंकि युगऋषि का ज्ञान वशिष्ठ स्तर का है, उनका तप विश्वामित्र स्तर का है, उनकी सूक्ष्म चेतना प्राणतत्व, आत्मबल सम्पदा, तपयुक्त व गायत्री का तेज को धारण किये हुए है। वह ही हमारी चेतना को ऊपर उठाने व आवश्यक शल्यक्रिया करने में सक्षम हैं।
हमारे जैसे पोथी पण्डित(किताबें पढ़कर बने ज्ञानी) अभी स्वयं ही साधना मार्ग में हैं, सोलरउर्जा से चलने वाले LED बल्ब हैं। जब हम स्वयं ही आत्मचेतना से प्रकाशि नहीं तो भला आपकी चेतना को ऊर्जा कैसे देंगे भला? हम जैसे जिनके पास न स्वयं की प्रचण्ड तपशक्ति है, न ही स्वयं का प्रचण्ड तप से अर्जित ज्ञान है और न हीं प्राणतत्व का ऊर्जा भण्डार है। हम जैसे लोग तो परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि का साहित्य पढ़कर आपकी समस्याओ का समाधान करते हैं। आपको समस्यानुसार तप करने का निर्देशन भी युगऋषि का साहित्य पढ़कर देते हैं।
लेक़िन जब आप तप कर रहे होते हैं उस समय हम जैसे लोग आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। *अंतर्जगत में व साधना के समय परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि ही आपके तप के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं और आपके अंतर्जगत को प्रकाशित करके मार्गदर्शन कर सकते हैं। युगऋषि स्वयं ऊर्जा के स्रोत हैं इसलिए ऊर्जा दे सकते हैं*।
अतः सौर ऊर्जा से जलने वाले हम अंधेरे में टिमटिमा सकते हैं, लेकिन आपकी चेतना की बैटरी को ऊर्जा नहीं दे सकते, जीवनभर ऊर्जा स्वयं चाहिए तो मुख्य ऊर्जा स्रोत से जुड़िये। युगऋषि को ही परम्पूज्य गुरुदेव मानकर उनसे ही दीक्षा लीजिये। युगऋषि का ही गुरु रूप में वरण कीजिये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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