*गृहस्थ होममेकर स्त्री के मन की उलझन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर (1 से 11)*
प्रश्न 1- *हम स्त्रियों को मायके में पराया धन बोलकर पराया कर दिया गया, ससुराल आते ही हमें कहा गया तुम दूसरे घर से हो, क्या लाई इत्यादि? मेरा तो वस्तुतः कोई घर 😢 है ही नहीं।*
उत्तर- लड़कियों के या तो दो घर होते हैं या बेघर होती हैं। दोनों घरों में अपना वजूद उन्हें स्वयं की मेहनत व बुद्धिकुशलता से बनाना होता है। लड़कियां घर की नींव होती है, उनके बिना घर घर ही नहीं हो सकता। यदि तुम्हारा कोई घर नहीं तो तुम्हारी माँ व तुम्हारी सास का भी कोई घर नहीं, व उनसे जन्में तुम्हारे पति भी बेघर ही हुए।
प्रश्न 2- *स्त्रियों को सम्मान क्यों नहीं मिलता?*
उत्तर- सम्मान व सशक्तिकरण भीख में नहीं मिलता। इसे अर्जित मेहनत व बुद्धिकुशलता से किया जाता है। मंगलयान की साइंटिस्ट महिला हो या किरण बेदी या गृहणी जो भी अपने क्षेत्र में कुशलता का परिचय देगा सम्मान पायेगा।
प्रश्न 3- *मेरे पति मुझे समझते ही नहीं, बात बात पर गुस्सा निकालते हैं*
उत्तर- स्त्री इतनी कॉम्प्लेक्स रचना है, जिसे देवता नहीं समझ पाते, इसे पति जैसा साधारण प्राणी कैसे समझेगा। पति की परवरिश उसके माता पिता ने की है, बचपन से स्त्रियों पर शासन करना सिखाया है। अब बेचारे को जैसा सिखाया गया है वही परफॉर्म कर रहा है। पति के मन की पुनः प्रोग्रामिंग अपने अनुसार करने में आप सफ़ल नहीं हो पा रही है। मेहनत कीजिये, निःश्वार्थ प्रेम और सेवा कीजिए और स्वयं को योग्य बनाइए, सफ़लता जरूर मिलेगी। प्रेम बन्धन में तो परमात्मा बंध जाता है, पति तो मात्र इंसान है। पति के गुस्से की प्रकृति व जड़ समझिए व कुशल चिकित्सक की तरह उसका इलाज कीजिये। उसे इतना आनन्द व सद्विचारों से भर दीजिये कि उसका गुस्सा करने का मन ही न करे।
प्रश्न 4- *मेरे ससुराल वाले मुझे ताने मारते हैं, अपशब्द बोलते हैं।*
उत्तर- ससुराल वाले अपशब्द बोल सकें व आपको ताने मार सकें, ऐसा ही आपको आपके माता पिता ने बनाया है। क्या आपको आपके भाई की तरह पढ़ा-लिखा कर योग्य आपके माता पिता ने बनाया? क्या स्वयं आपने अपने दम पर पढ़-लिख कर योग्य ज्ञानी बनने का प्रयास किया? बेटे मक्खी वहीं बैठती है जहाँ घाव होता है, ससुराल वाले उसी लड़की को ताना मारने में सक्षम होते हैं जो स्वाभिमान से जीना नहीं जानती। अभी भी वक्त है स्वयं को योग्य बनाइये, इनके तानों के प्रति बहरी हो जाइए। ससुराल वाले मक्खी की तरह घाव तलाशेंगे अतः अपने मन के घाव को तप-साधना से भर दीजिये। स्वयं की पहचान धरती के माता पिता से तोड़कर उस परमपिता परमात्मा से जोड़ दीजिये। उससे जुड़ जाइये इतना तप व तेज अपने व्यक्तित्व में साधना से लाइये कि कोई दुष्टात्मा आपका सामना ही न कर सके। बैट्समैन की अपनी बैटिंग सुधारिये व ससुराल वालों के तानों की बॉल पर चौका छक्का लगाइये।
प्रश्न 5- *मुझे पूजा आराधना नहीं करने देते, कहते हैं कि मैं ढोंगी हूँ, घर का काम न करना पड़े इसलिए घण्टों पूजन गृह में बैठी रहती है।*
उत्तर- किसी के घर में इतना काम नहीं होता कि साधना के लिए वक्त न निकाल पाए। आप अपने हिस्से के कार्य व कुछ दूसरों के हिस्से के एक्स्ट्रा कार्य कर दिया करें। फिर ध्यान-साधना में बैठे। फ़िर भी ढोंगी बोले तो बोलने दीजिये। जितने भी सन्त धरती पर हुए, उन्हें जब वो शरीर मे थे ढोंगी व गालियां कुछ लोगो ने अवश्य दी। क्योंकि जिसने कभी साधना की ही नहीं वह भला साधना को ढोंग नहीं तो और क्या बोलेगा। अनपढ़ के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर ही होगा न...तो इसमें बुरा मानने वाली क्या बात?
प्रश्न 6- *मेरा बच्चा बहुत शैतानी करता है व पढ़ने जल्दी बैठता नहीं। मेरी सास कहती है मुझे बच्चा पालना नहीं आता।*
उत्तर- बच्चा 99% केस में किसी कभी स्वतः पढ़ने नहीं बैठता, उसे पढ़ने के लिए प्रयत्नपूर्वक बिठाना पड़ता है।
बच्चा यदि ध्यान व गायत्री मंत्र नहीं करता तो उसे जबरजस्ती करवाइये। जब वो सुबह सो रहा हो और उसका माइंड अल्फा स्टेज में हो, एक बार गायत्री मंत्र बोलकर बोलिये, फिर 5 बार बोलिये बेटे से कि तुम सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान परमात्मा की सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान सन्तान हो। तुम बुद्ध हो, शुद्ध हो, ज्ञानी हो और चैतन्य हो। तुम विवेकवान व शांतचित्त हो। पुत्र की सद्बुद्धि के लिए तीन माला गायत्री की जपिये, उसे नित्य महापुरुषों की कहानियां सुनाइये या पढ़ाईये।
यही सुबह बिस्तर से उठते हुए स्वयं के लिए भी दोहराइये कि मैं सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान परमात्मा की सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान सन्तान हूँ।
सास जी को मुंह से कुछ मत जवाब दीजिये। उनके ताने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दीजिये। बेटे के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में जुट जाइये।
प्रश्न 7- *मेरे पति को मेरी खुशियों की परवाह ही नहीं, वो मेरा ख्याल ही नहीं रखते*
उत्तर- 99% केस में प्रत्येक पति व प्रत्येक पत्नी को यह लगता है कि उनका जीवन साथी उनका ख्याल नहीं रखता।
आपका मन कोई वस्तु नहीं है, जिसे एक बार कोई खुशी का रंग चढ़ाकर ताउम्र खुशी रखा जा सके, मन तो पल पल इच्छाएं बदलता है। आपका मन एक इच्छा की पूर्ति पर दूसरी इच्छा करने लगेगा। कभी तृप्त हो ही नहीं सकता। जो करोड़पति स्त्रियां है वो भी तृप्त नहीं, जिनके पति जिन्हे लैला समझ के मजनू की तरह प्यार करते हैं वो भी खुश नहीं। क्योंकि मन को जो मिल जाता है उससे वो ऊब जाता है। जब तक जो नहीं मिलता उसकी तलाश में भागता है।
जो रसगुल्ला आपको पसंद है वही अत्यधिक मात्रा में खिलाया जाय तो आप बोर हो जाएंगी। अतः मन की तृप्ति के लिए पति से उम्मीद करने की जगह स्वयं से उम्मीद कीजिये। जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय से अंतर्मन में छिपे आनन्द श्रोत से जुड़िये। तृप्त रहिये और पति का भी मार्गदर्शन कीजिये।
आप अनन्त यात्री हैं, दूध के पैकेट की तरह आपका जीवन है जिसकी बनने(जन्म) व ख़राब होने(मृत्यु) की डेट लिखी जा चुकी है। शरीर सुख में मत भटकिये, असली सुख आत्मसुख की ओर उन्मुख होइए।
प्रश्न 8- *घर मे बहुत बोर महसूस करती हूँ*
उत्तर- कुछ क्रिएटिव कार्य कीजिये, जिसमें आपका दिमाग ख़र्च हो। दिमाग को काम नहीं देंगी तो यह बोर ही महसूस करेगा। ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है। दिमाग को व्यस्त रखने हेतु कुछ प्रयास कीजिये। कुछ न समझ आये तो अच्छी पुस्तको को पढ़कर उनके आर्टिकल बनाइये और फेसबुक में पोस्ट कीजिये। या बच्चों की मैथ को सॉल्व कीजिये।
प्रश्न 9- *मेरे पति शक करते हैं, घर बाहर जाने नहीं देते। सबकुछ घर बैठे ऑनलाइन मंगवा देते हैं।*
उत्तर- पति, शरीर को घर मे कैद कर सकते हैं। आपके मन व आत्मा को नहीं। आप यूट्यूब पर किसी स्थान की वीडियो देखिये, ध्यानस्थ होइए व मन ही मन उसे घूमने की कल्पना कीजिये। कुछ दिनों में यह अभ्यास इतना सध जाएगा कि बिन पैसे व साधन के सर्वत्र घूमने का आपको आनन्द आने लगेगा। शकी पति हैं तो उनके शक की आदत के छुटकारे के लिए उनके लिए तीन माला गायत्री मंत्र जपकर ईश्वर से प्रार्थना कीजिये।
प्रश्न 10- *इतनी मेहनत से खाना बनाती हूँ मेरे पति कभी तारीफ नहीं करते। उनके पास मुझसे बात करने का वक्त ही नहीं है।*
उत्तर- भोजन भूख मिटाने व तृप्ति देने के लिए होता है, तारीफ़ पाने के लिए उसे मत बनाएं। आप भोजन ईश्वर के लिए उनका ध्यान करते हुए बनाएं, बलिवैश्व यज्ञ करके उन्हें भोजन का प्रसाद दें।उनकी बुद्धि शुद्ध होगी, वो मित्रवत बनेंगे।
पति या ससुराल वाले जब भी सामने हों तो मन ही मन गायत्री मंत्र बोलने के बाद यह मन्त्र बोलें। यह मित्रभाव जगायेगा।
ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर परमात्मा का वास है, उन्हें मन ही मन प्रणाम करते हुए कहें, भगवान मुझे इतनी शक्ति सामर्थ्य दो कि मेरे घर के प्रत्येक सदस्य के भीतर आपका जागरण कर सकूं, मुझे मेरे घर के प्रत्येक सदस्य में आप ही मिलो। मैं आपका आह्वाहन मूर्ति में नहीं मेरे ससुराल के जीवित सदस्यों के बीटर करती हूँ, आपका आह्वाहन है, मेरे घर के प्रत्येक सदस्य में मुझे आप दिखो व महसूस हो। ऐसी कृपा कीजिये।
साथ ही निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:-
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढाने की कला
📖 गृहस्थ एक तपोवन
प्रश्न 11- *कुछ समझ नहीं आता क्या करूँ? जब पति को अपने घरवाले ही अच्छे लगते थे, तो मुझसे शादी क्यों की? मैं यहां क्यों हूँ?*
उत्तर- वर्तमान समाज में कुछ----% लोग, वंश वृद्धि व घर गृहस्थी सम्हालने के लिए एक परमानेंट सहायक की जॉब के लिए की जाती है। जॉब के पारितोषिक के रूप में घर मे रहने की जगह, वस्त्र आभूषण, भोजन इत्यादि देते हैं। लड़की के माता पिता किसी तरह विवाह करके उसके दायित्व से मुक्ति पाते हैं, व क्लियर कर देते हैं डोली में जा रही हो, अर्थी से वहाँ से निकलना। किसी भी तरह मायके लौटने की सोचना भी मत। ऐसी स्थिति में स्त्री वर्षो से रहती आ रही है, पुत्री को सँस्कार शासन सहने की और पुत्र को सँस्कार शासन करने का दिया जाता रहा है। स्त्री को कमाने योग्य व स्वयं की रक्षा हेतु दिया नहीं जाता था, जिससे वह मजबूर लाचार रहे व इसी जीवन को स्वीकारें।
कुछ अच्छे धार्मिक ---% लोग अर्धांगिनी बनाने और जीवन के सफर में साथ चलने के लिए सहधर्मिणी ढूढते हैं। स्त्री को बराबर सम्मान मिलता है। घर सुखमय होता है।
कुछ ---% आधुनिक लोग पुत्री को भी पुत्र की तरह पालकर योग्य बनाते हैं, मग़र उन्हें सँस्कार घर सम्हालने का नहीं देते। कहते हैं जब भी जरूरत हो एक आवाज देना हम साथ हैं। अतः इनकी अधिकतर पुत्रियां या तो तलाकशुदा होती हैं या लिवइन रिलेशन शिप में रहती हैं। कुछ ही सफल गृहस्थी का सुख भोगती हैं। कुछ तो सास ससुर को ही घर से बाहर निकाल देती हैं।
कुछ -----% बुद्धिमान लोग पुत्री को आधुनिक समाज मे कमाने योग्य और परिवार सम्हालने योग्य सँस्कार देते हैं। इसलिए यह कन्याएं बुद्धिप्रयोग से घर परिवार सफल बना लेती हैं, दुष्टों को दण्ड भी दे देती हैं।
जो अनपढ़ व अयोग्य हैं वह भी जीवन निर्वहन कर लेती हैं, जो पढ़ी लिखी कमाऊ है वह भी जीवन निर्वहन कर लेती हैं। पिसती वह हैं जो जॉब करने में सक्षम नहीं और दासता भी स्वीकार्य नहीं।
वह स्त्री भी दुःखी रहती है, जो परिस्थिति को नियन्त्रित करना चाहती है, पति को नियंत्रित करना चाहती है, जो गृहस्थी में नित्य एन्जॉयमेंट चाहती है, जो मन माफिक दुसरो से व्यवहार चाहती है। दुसरो को सुधारने में व्यस्त रहती है, वह हमेशा दुःखी रहती है।
सुख न गृहस्थी में मिलता है और न ही जॉब में मिलता है। सुख का अनुभव मन करता है, यह मन कभी तृप्त नहीं हो सकता। जंगल की विषम परिस्थिति मे भी साधु तप करके सुखी हो लेता है, जङ्गली जानवर उसके मित्र बन जाते हैं। इसी तरह सन्त व सेवाभावी स्त्री जङ्गली, असभ्य और आक्रामक परिवारजनों के बीच सुखी रह लेती है, इन्हें या तो झेल लेती है या इन्हें मित्र बना लेती है या इन्हें हैंडल करने का हुनर सीख लेती है।
गृहस्थ तपोवन है यहां तप किया जाता है, गृहस्थ कोई राज्य नहीं जहाँ सुख भोगने के लिए प्रवेश हो।
सुख देने के लिए विवाह करोगी तो सफल गृहस्थी बनेगी, सुख पाने के लिए विवाह करोगी तो हमेशा दुःखी रहोगी। पाने की चाह ही दुःख का कारण है।
कुत्ते के भौंकने पर हाथी ध्यान नहीं देता, ससुराल के तानों पर भी ध्यान न देना ही उत्तम होता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
प्रश्न 1- *हम स्त्रियों को मायके में पराया धन बोलकर पराया कर दिया गया, ससुराल आते ही हमें कहा गया तुम दूसरे घर से हो, क्या लाई इत्यादि? मेरा तो वस्तुतः कोई घर 😢 है ही नहीं।*
उत्तर- लड़कियों के या तो दो घर होते हैं या बेघर होती हैं। दोनों घरों में अपना वजूद उन्हें स्वयं की मेहनत व बुद्धिकुशलता से बनाना होता है। लड़कियां घर की नींव होती है, उनके बिना घर घर ही नहीं हो सकता। यदि तुम्हारा कोई घर नहीं तो तुम्हारी माँ व तुम्हारी सास का भी कोई घर नहीं, व उनसे जन्में तुम्हारे पति भी बेघर ही हुए।
प्रश्न 2- *स्त्रियों को सम्मान क्यों नहीं मिलता?*
उत्तर- सम्मान व सशक्तिकरण भीख में नहीं मिलता। इसे अर्जित मेहनत व बुद्धिकुशलता से किया जाता है। मंगलयान की साइंटिस्ट महिला हो या किरण बेदी या गृहणी जो भी अपने क्षेत्र में कुशलता का परिचय देगा सम्मान पायेगा।
प्रश्न 3- *मेरे पति मुझे समझते ही नहीं, बात बात पर गुस्सा निकालते हैं*
उत्तर- स्त्री इतनी कॉम्प्लेक्स रचना है, जिसे देवता नहीं समझ पाते, इसे पति जैसा साधारण प्राणी कैसे समझेगा। पति की परवरिश उसके माता पिता ने की है, बचपन से स्त्रियों पर शासन करना सिखाया है। अब बेचारे को जैसा सिखाया गया है वही परफॉर्म कर रहा है। पति के मन की पुनः प्रोग्रामिंग अपने अनुसार करने में आप सफ़ल नहीं हो पा रही है। मेहनत कीजिये, निःश्वार्थ प्रेम और सेवा कीजिए और स्वयं को योग्य बनाइए, सफ़लता जरूर मिलेगी। प्रेम बन्धन में तो परमात्मा बंध जाता है, पति तो मात्र इंसान है। पति के गुस्से की प्रकृति व जड़ समझिए व कुशल चिकित्सक की तरह उसका इलाज कीजिये। उसे इतना आनन्द व सद्विचारों से भर दीजिये कि उसका गुस्सा करने का मन ही न करे।
प्रश्न 4- *मेरे ससुराल वाले मुझे ताने मारते हैं, अपशब्द बोलते हैं।*
उत्तर- ससुराल वाले अपशब्द बोल सकें व आपको ताने मार सकें, ऐसा ही आपको आपके माता पिता ने बनाया है। क्या आपको आपके भाई की तरह पढ़ा-लिखा कर योग्य आपके माता पिता ने बनाया? क्या स्वयं आपने अपने दम पर पढ़-लिख कर योग्य ज्ञानी बनने का प्रयास किया? बेटे मक्खी वहीं बैठती है जहाँ घाव होता है, ससुराल वाले उसी लड़की को ताना मारने में सक्षम होते हैं जो स्वाभिमान से जीना नहीं जानती। अभी भी वक्त है स्वयं को योग्य बनाइये, इनके तानों के प्रति बहरी हो जाइए। ससुराल वाले मक्खी की तरह घाव तलाशेंगे अतः अपने मन के घाव को तप-साधना से भर दीजिये। स्वयं की पहचान धरती के माता पिता से तोड़कर उस परमपिता परमात्मा से जोड़ दीजिये। उससे जुड़ जाइये इतना तप व तेज अपने व्यक्तित्व में साधना से लाइये कि कोई दुष्टात्मा आपका सामना ही न कर सके। बैट्समैन की अपनी बैटिंग सुधारिये व ससुराल वालों के तानों की बॉल पर चौका छक्का लगाइये।
प्रश्न 5- *मुझे पूजा आराधना नहीं करने देते, कहते हैं कि मैं ढोंगी हूँ, घर का काम न करना पड़े इसलिए घण्टों पूजन गृह में बैठी रहती है।*
उत्तर- किसी के घर में इतना काम नहीं होता कि साधना के लिए वक्त न निकाल पाए। आप अपने हिस्से के कार्य व कुछ दूसरों के हिस्से के एक्स्ट्रा कार्य कर दिया करें। फिर ध्यान-साधना में बैठे। फ़िर भी ढोंगी बोले तो बोलने दीजिये। जितने भी सन्त धरती पर हुए, उन्हें जब वो शरीर मे थे ढोंगी व गालियां कुछ लोगो ने अवश्य दी। क्योंकि जिसने कभी साधना की ही नहीं वह भला साधना को ढोंग नहीं तो और क्या बोलेगा। अनपढ़ के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर ही होगा न...तो इसमें बुरा मानने वाली क्या बात?
प्रश्न 6- *मेरा बच्चा बहुत शैतानी करता है व पढ़ने जल्दी बैठता नहीं। मेरी सास कहती है मुझे बच्चा पालना नहीं आता।*
उत्तर- बच्चा 99% केस में किसी कभी स्वतः पढ़ने नहीं बैठता, उसे पढ़ने के लिए प्रयत्नपूर्वक बिठाना पड़ता है।
बच्चा यदि ध्यान व गायत्री मंत्र नहीं करता तो उसे जबरजस्ती करवाइये। जब वो सुबह सो रहा हो और उसका माइंड अल्फा स्टेज में हो, एक बार गायत्री मंत्र बोलकर बोलिये, फिर 5 बार बोलिये बेटे से कि तुम सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान परमात्मा की सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान सन्तान हो। तुम बुद्ध हो, शुद्ध हो, ज्ञानी हो और चैतन्य हो। तुम विवेकवान व शांतचित्त हो। पुत्र की सद्बुद्धि के लिए तीन माला गायत्री की जपिये, उसे नित्य महापुरुषों की कहानियां सुनाइये या पढ़ाईये।
यही सुबह बिस्तर से उठते हुए स्वयं के लिए भी दोहराइये कि मैं सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान परमात्मा की सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान सन्तान हूँ।
सास जी को मुंह से कुछ मत जवाब दीजिये। उनके ताने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दीजिये। बेटे के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में जुट जाइये।
प्रश्न 7- *मेरे पति को मेरी खुशियों की परवाह ही नहीं, वो मेरा ख्याल ही नहीं रखते*
उत्तर- 99% केस में प्रत्येक पति व प्रत्येक पत्नी को यह लगता है कि उनका जीवन साथी उनका ख्याल नहीं रखता।
आपका मन कोई वस्तु नहीं है, जिसे एक बार कोई खुशी का रंग चढ़ाकर ताउम्र खुशी रखा जा सके, मन तो पल पल इच्छाएं बदलता है। आपका मन एक इच्छा की पूर्ति पर दूसरी इच्छा करने लगेगा। कभी तृप्त हो ही नहीं सकता। जो करोड़पति स्त्रियां है वो भी तृप्त नहीं, जिनके पति जिन्हे लैला समझ के मजनू की तरह प्यार करते हैं वो भी खुश नहीं। क्योंकि मन को जो मिल जाता है उससे वो ऊब जाता है। जब तक जो नहीं मिलता उसकी तलाश में भागता है।
जो रसगुल्ला आपको पसंद है वही अत्यधिक मात्रा में खिलाया जाय तो आप बोर हो जाएंगी। अतः मन की तृप्ति के लिए पति से उम्मीद करने की जगह स्वयं से उम्मीद कीजिये। जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय से अंतर्मन में छिपे आनन्द श्रोत से जुड़िये। तृप्त रहिये और पति का भी मार्गदर्शन कीजिये।
आप अनन्त यात्री हैं, दूध के पैकेट की तरह आपका जीवन है जिसकी बनने(जन्म) व ख़राब होने(मृत्यु) की डेट लिखी जा चुकी है। शरीर सुख में मत भटकिये, असली सुख आत्मसुख की ओर उन्मुख होइए।
प्रश्न 8- *घर मे बहुत बोर महसूस करती हूँ*
उत्तर- कुछ क्रिएटिव कार्य कीजिये, जिसमें आपका दिमाग ख़र्च हो। दिमाग को काम नहीं देंगी तो यह बोर ही महसूस करेगा। ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है। दिमाग को व्यस्त रखने हेतु कुछ प्रयास कीजिये। कुछ न समझ आये तो अच्छी पुस्तको को पढ़कर उनके आर्टिकल बनाइये और फेसबुक में पोस्ट कीजिये। या बच्चों की मैथ को सॉल्व कीजिये।
प्रश्न 9- *मेरे पति शक करते हैं, घर बाहर जाने नहीं देते। सबकुछ घर बैठे ऑनलाइन मंगवा देते हैं।*
उत्तर- पति, शरीर को घर मे कैद कर सकते हैं। आपके मन व आत्मा को नहीं। आप यूट्यूब पर किसी स्थान की वीडियो देखिये, ध्यानस्थ होइए व मन ही मन उसे घूमने की कल्पना कीजिये। कुछ दिनों में यह अभ्यास इतना सध जाएगा कि बिन पैसे व साधन के सर्वत्र घूमने का आपको आनन्द आने लगेगा। शकी पति हैं तो उनके शक की आदत के छुटकारे के लिए उनके लिए तीन माला गायत्री मंत्र जपकर ईश्वर से प्रार्थना कीजिये।
प्रश्न 10- *इतनी मेहनत से खाना बनाती हूँ मेरे पति कभी तारीफ नहीं करते। उनके पास मुझसे बात करने का वक्त ही नहीं है।*
उत्तर- भोजन भूख मिटाने व तृप्ति देने के लिए होता है, तारीफ़ पाने के लिए उसे मत बनाएं। आप भोजन ईश्वर के लिए उनका ध्यान करते हुए बनाएं, बलिवैश्व यज्ञ करके उन्हें भोजन का प्रसाद दें।उनकी बुद्धि शुद्ध होगी, वो मित्रवत बनेंगे।
पति या ससुराल वाले जब भी सामने हों तो मन ही मन गायत्री मंत्र बोलने के बाद यह मन्त्र बोलें। यह मित्रभाव जगायेगा।
ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर परमात्मा का वास है, उन्हें मन ही मन प्रणाम करते हुए कहें, भगवान मुझे इतनी शक्ति सामर्थ्य दो कि मेरे घर के प्रत्येक सदस्य के भीतर आपका जागरण कर सकूं, मुझे मेरे घर के प्रत्येक सदस्य में आप ही मिलो। मैं आपका आह्वाहन मूर्ति में नहीं मेरे ससुराल के जीवित सदस्यों के बीटर करती हूँ, आपका आह्वाहन है, मेरे घर के प्रत्येक सदस्य में मुझे आप दिखो व महसूस हो। ऐसी कृपा कीजिये।
साथ ही निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:-
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढाने की कला
📖 गृहस्थ एक तपोवन
प्रश्न 11- *कुछ समझ नहीं आता क्या करूँ? जब पति को अपने घरवाले ही अच्छे लगते थे, तो मुझसे शादी क्यों की? मैं यहां क्यों हूँ?*
उत्तर- वर्तमान समाज में कुछ----% लोग, वंश वृद्धि व घर गृहस्थी सम्हालने के लिए एक परमानेंट सहायक की जॉब के लिए की जाती है। जॉब के पारितोषिक के रूप में घर मे रहने की जगह, वस्त्र आभूषण, भोजन इत्यादि देते हैं। लड़की के माता पिता किसी तरह विवाह करके उसके दायित्व से मुक्ति पाते हैं, व क्लियर कर देते हैं डोली में जा रही हो, अर्थी से वहाँ से निकलना। किसी भी तरह मायके लौटने की सोचना भी मत। ऐसी स्थिति में स्त्री वर्षो से रहती आ रही है, पुत्री को सँस्कार शासन सहने की और पुत्र को सँस्कार शासन करने का दिया जाता रहा है। स्त्री को कमाने योग्य व स्वयं की रक्षा हेतु दिया नहीं जाता था, जिससे वह मजबूर लाचार रहे व इसी जीवन को स्वीकारें।
कुछ अच्छे धार्मिक ---% लोग अर्धांगिनी बनाने और जीवन के सफर में साथ चलने के लिए सहधर्मिणी ढूढते हैं। स्त्री को बराबर सम्मान मिलता है। घर सुखमय होता है।
कुछ ---% आधुनिक लोग पुत्री को भी पुत्र की तरह पालकर योग्य बनाते हैं, मग़र उन्हें सँस्कार घर सम्हालने का नहीं देते। कहते हैं जब भी जरूरत हो एक आवाज देना हम साथ हैं। अतः इनकी अधिकतर पुत्रियां या तो तलाकशुदा होती हैं या लिवइन रिलेशन शिप में रहती हैं। कुछ ही सफल गृहस्थी का सुख भोगती हैं। कुछ तो सास ससुर को ही घर से बाहर निकाल देती हैं।
कुछ -----% बुद्धिमान लोग पुत्री को आधुनिक समाज मे कमाने योग्य और परिवार सम्हालने योग्य सँस्कार देते हैं। इसलिए यह कन्याएं बुद्धिप्रयोग से घर परिवार सफल बना लेती हैं, दुष्टों को दण्ड भी दे देती हैं।
जो अनपढ़ व अयोग्य हैं वह भी जीवन निर्वहन कर लेती हैं, जो पढ़ी लिखी कमाऊ है वह भी जीवन निर्वहन कर लेती हैं। पिसती वह हैं जो जॉब करने में सक्षम नहीं और दासता भी स्वीकार्य नहीं।
वह स्त्री भी दुःखी रहती है, जो परिस्थिति को नियन्त्रित करना चाहती है, पति को नियंत्रित करना चाहती है, जो गृहस्थी में नित्य एन्जॉयमेंट चाहती है, जो मन माफिक दुसरो से व्यवहार चाहती है। दुसरो को सुधारने में व्यस्त रहती है, वह हमेशा दुःखी रहती है।
सुख न गृहस्थी में मिलता है और न ही जॉब में मिलता है। सुख का अनुभव मन करता है, यह मन कभी तृप्त नहीं हो सकता। जंगल की विषम परिस्थिति मे भी साधु तप करके सुखी हो लेता है, जङ्गली जानवर उसके मित्र बन जाते हैं। इसी तरह सन्त व सेवाभावी स्त्री जङ्गली, असभ्य और आक्रामक परिवारजनों के बीच सुखी रह लेती है, इन्हें या तो झेल लेती है या इन्हें मित्र बना लेती है या इन्हें हैंडल करने का हुनर सीख लेती है।
गृहस्थ तपोवन है यहां तप किया जाता है, गृहस्थ कोई राज्य नहीं जहाँ सुख भोगने के लिए प्रवेश हो।
सुख देने के लिए विवाह करोगी तो सफल गृहस्थी बनेगी, सुख पाने के लिए विवाह करोगी तो हमेशा दुःखी रहोगी। पाने की चाह ही दुःख का कारण है।
कुत्ते के भौंकने पर हाथी ध्यान नहीं देता, ससुराल के तानों पर भी ध्यान न देना ही उत्तम होता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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