प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण निम्नलिखित सत्संकल्प 15 और 16 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*
उत्तर- युगनिर्माण सत्संकल्प के सूत्रों की व्याख्या:-
15- *सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।*
*व्याख्या:-* अँधेरा तब तक ही अस्तित्व में होता है जब तक प्रकाश की उपस्थिति न हो। उसी तरह अनाचार का अस्तित्व तब तक रहता है जब तक सदाचारी संगठित न हो। अनाचार बढ़ता है तब, सदाचार मौन रहता है जब।
भवन को विध्वंस एक व्यक्ति एक बम की सहायता से कर सकता है, लेकिन उसी भवन के निर्माण में अनेकों लोगों का संगठित प्रयास लगता है। अब यहां तो समाज के नवसृजन की बात हो रही है तो अत्यधिक *अच्छी सोच व भली नियत* के लोग *नव-सृजन हेतु* चाहिए। सृजन सैनिक अनीति से लोहा लेने के लिए चाहिए तो संगठित तो उन्हें करना ही होगा। देश को दुश्मनों से बचाने के लिए सेना चाहिए, इसीतरह देश को अनाचार से बचाने के लिए सृजन सैनिक चाहिए। सृजन सैनिक की योग्यता पात्रता उसके सज्जन व्यवहार के साथ अनीति से लोहा लेने के लिए तत्परता ही है।
युगनिर्माण यज्ञ हेतु सबको साथ एक साथ आना होगा, समिधाओं को युगनिर्माण में आहुत होना होगा। अपनी प्रतिभा क्षमता लगानी होगी।
कहानी - *एक बार Porcupine( पोर्क्युपाइन - साही) जानवर जिसके शरीर मे काँटे होते हैं, एक ठंडे प्रदेश में रहते थे।* अत्यधिक ठंड से वो बेहाल हो रहे थे, मीटिंग बुलाई गयी कि ठंड से कैसे बचें और जीवित रहें?
तभी मीटिंग के दौरान सबने अनुभव किया कि वो गर्मी महसूस कर रहे है। क्योंकि सबके शरीर की गर्मी से माहौल गर्म महसूस हो रहा था। सब ख़ुश हो गए उनका जीवन बच जाएगा यदि वो साथ रहे तो ये जानकर। लेकिन एक समस्या थी, जब वो साथ होते तो कांटे एक दूसरे के एक दुसरो को चुभते। जो यह सह सकता वही साथ रह सकता, यदि अलग रहें तो जीवन पर संकट मंडराएगा। एक *साही* को चुभन बर्दास्त न हुई वो अकेले रहने निकल गया। ठंडक ने उसे बेहाल कर दिया और वो जमकर बेहोश हो गया। तभी सभी साही उसे उठाकर ले आये और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उन सबकी शरीर की गर्मी से पुनः उसकी चेतना लौटी तो उसे अहसास हुआ, *यदि जान बचाना है तो संगठित रहना पड़ेगा। जीना है तो कांटे सहने पड़ेंगे। एक दूसरे को श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए बर्दाश्त करना ही पड़ेगा।*
कलियुग में संगठन ही शक्ति है, देवताओ की सम्मिलित शक्ति ही दुर्गा है। यदि अनाचार व असुरत्व को परास्त करना है तो सदाचारियों को आपसी मतभेद बुलाकर संगठित होना ही होगा।
16- *राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।*
व्याख्या:- *कर्म प्रधान विश्व रचि राखा* - तुलसीदास जी कहते हैं कि विधाता ने यह सृष्टि कर्म प्रधान रखी है, जन्म प्रधान नहीं। जिस प्रकार संयुक्त बड़े एक ही परिवार में कार्य का बंटवारा घर की सुव्यवस्था के लिए होता है। कोई भोजन बनाता है, तो झाड़ू-पोछा करता है, कोई टॉयलेट साफ करता है तो कोई मंदिर की साफ सफ़ाई करता है, कोई खेतों में काम करता है तो कोई कम्पनी में काम करता है, कोई बच्चे सम्हालता है तो कोई बच्चों को पढ़ाता है। यह कर्मप्रधान कार्य का बंटवारा है, तो कोई श्रेष्ठ व कोई गौण कैसे हुआ?
इसीतरह समाज को चलाने के लिए कर्मो के वर्ग (वर्ण) बने जिनके मुख्य चार डिपार्टमेंट(नाम) थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । पिता को जो कार्य अच्छे से आता था उसने पुत्र को सिखा दिया। इस तरह लोगों को भ्रम हो गया कि यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है, जो कि सर्वथा गलत है।
चार वेद, अठारह पुराण व प्राचीन ग्रन्थ किसी मे भी जाति का उल्लेख है ही नहीं। जाति तो मनुष्यों के वह गांव या स्थान के नाम है जहां वो लोग रहते थे। जब वो कहीं बाहर कमाने गए तो उनकी यूनिक आईडेन्टिटी के लिए उनके नाम के साथ ग्राम का नाम जोड़ दिया गया। जैसे देश से बाहर जाने पर हम इंडियन(भारतीय) कहलाते हैं।
पहले इंटरनेट टीवी मोबाईल व यातायात के साधन नहीं थे अतः यूनिक भाषा हो ही नहीं सकती थी। जिसे जो समझ मे आया उसने भाषा बना ली। जिसे जो समझ आया उसने वो पूजन पद्धति अपना ली। जिसे जिस साधना पद्धति से लाभ हुआ उसने उसे लोगों को बता दिया। वह गुरु हुए व उनके अनुयाइयो का संगठन सम्प्रदाय बन गया।
मेडिकल तौर पर ब्लड व अन्य स्तर पर आप जांच करके देखें तो कोई अंतर न पाएंगे क्योंकि मनुष्य की संरचना विधाता ने एक सी की है।
डीएनए - व्यक्ति के सोच, चिंतन, आदतों व कर्मो के निरन्तर अभ्यास से प्रभावित होता है।
यह बोध ज्ञान लोगों को करवा के उन्हें समझाना साथ ही खुद समझना कि जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न करें, राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहें। श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए एकजुट रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- युगनिर्माण सत्संकल्प के सूत्रों की व्याख्या:-
15- *सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।*
*व्याख्या:-* अँधेरा तब तक ही अस्तित्व में होता है जब तक प्रकाश की उपस्थिति न हो। उसी तरह अनाचार का अस्तित्व तब तक रहता है जब तक सदाचारी संगठित न हो। अनाचार बढ़ता है तब, सदाचार मौन रहता है जब।
भवन को विध्वंस एक व्यक्ति एक बम की सहायता से कर सकता है, लेकिन उसी भवन के निर्माण में अनेकों लोगों का संगठित प्रयास लगता है। अब यहां तो समाज के नवसृजन की बात हो रही है तो अत्यधिक *अच्छी सोच व भली नियत* के लोग *नव-सृजन हेतु* चाहिए। सृजन सैनिक अनीति से लोहा लेने के लिए चाहिए तो संगठित तो उन्हें करना ही होगा। देश को दुश्मनों से बचाने के लिए सेना चाहिए, इसीतरह देश को अनाचार से बचाने के लिए सृजन सैनिक चाहिए। सृजन सैनिक की योग्यता पात्रता उसके सज्जन व्यवहार के साथ अनीति से लोहा लेने के लिए तत्परता ही है।
युगनिर्माण यज्ञ हेतु सबको साथ एक साथ आना होगा, समिधाओं को युगनिर्माण में आहुत होना होगा। अपनी प्रतिभा क्षमता लगानी होगी।
कहानी - *एक बार Porcupine( पोर्क्युपाइन - साही) जानवर जिसके शरीर मे काँटे होते हैं, एक ठंडे प्रदेश में रहते थे।* अत्यधिक ठंड से वो बेहाल हो रहे थे, मीटिंग बुलाई गयी कि ठंड से कैसे बचें और जीवित रहें?
तभी मीटिंग के दौरान सबने अनुभव किया कि वो गर्मी महसूस कर रहे है। क्योंकि सबके शरीर की गर्मी से माहौल गर्म महसूस हो रहा था। सब ख़ुश हो गए उनका जीवन बच जाएगा यदि वो साथ रहे तो ये जानकर। लेकिन एक समस्या थी, जब वो साथ होते तो कांटे एक दूसरे के एक दुसरो को चुभते। जो यह सह सकता वही साथ रह सकता, यदि अलग रहें तो जीवन पर संकट मंडराएगा। एक *साही* को चुभन बर्दास्त न हुई वो अकेले रहने निकल गया। ठंडक ने उसे बेहाल कर दिया और वो जमकर बेहोश हो गया। तभी सभी साही उसे उठाकर ले आये और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उन सबकी शरीर की गर्मी से पुनः उसकी चेतना लौटी तो उसे अहसास हुआ, *यदि जान बचाना है तो संगठित रहना पड़ेगा। जीना है तो कांटे सहने पड़ेंगे। एक दूसरे को श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए बर्दाश्त करना ही पड़ेगा।*
कलियुग में संगठन ही शक्ति है, देवताओ की सम्मिलित शक्ति ही दुर्गा है। यदि अनाचार व असुरत्व को परास्त करना है तो सदाचारियों को आपसी मतभेद बुलाकर संगठित होना ही होगा।
16- *राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।*
व्याख्या:- *कर्म प्रधान विश्व रचि राखा* - तुलसीदास जी कहते हैं कि विधाता ने यह सृष्टि कर्म प्रधान रखी है, जन्म प्रधान नहीं। जिस प्रकार संयुक्त बड़े एक ही परिवार में कार्य का बंटवारा घर की सुव्यवस्था के लिए होता है। कोई भोजन बनाता है, तो झाड़ू-पोछा करता है, कोई टॉयलेट साफ करता है तो कोई मंदिर की साफ सफ़ाई करता है, कोई खेतों में काम करता है तो कोई कम्पनी में काम करता है, कोई बच्चे सम्हालता है तो कोई बच्चों को पढ़ाता है। यह कर्मप्रधान कार्य का बंटवारा है, तो कोई श्रेष्ठ व कोई गौण कैसे हुआ?
इसीतरह समाज को चलाने के लिए कर्मो के वर्ग (वर्ण) बने जिनके मुख्य चार डिपार्टमेंट(नाम) थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । पिता को जो कार्य अच्छे से आता था उसने पुत्र को सिखा दिया। इस तरह लोगों को भ्रम हो गया कि यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है, जो कि सर्वथा गलत है।
चार वेद, अठारह पुराण व प्राचीन ग्रन्थ किसी मे भी जाति का उल्लेख है ही नहीं। जाति तो मनुष्यों के वह गांव या स्थान के नाम है जहां वो लोग रहते थे। जब वो कहीं बाहर कमाने गए तो उनकी यूनिक आईडेन्टिटी के लिए उनके नाम के साथ ग्राम का नाम जोड़ दिया गया। जैसे देश से बाहर जाने पर हम इंडियन(भारतीय) कहलाते हैं।
पहले इंटरनेट टीवी मोबाईल व यातायात के साधन नहीं थे अतः यूनिक भाषा हो ही नहीं सकती थी। जिसे जो समझ मे आया उसने भाषा बना ली। जिसे जो समझ आया उसने वो पूजन पद्धति अपना ली। जिसे जिस साधना पद्धति से लाभ हुआ उसने उसे लोगों को बता दिया। वह गुरु हुए व उनके अनुयाइयो का संगठन सम्प्रदाय बन गया।
मेडिकल तौर पर ब्लड व अन्य स्तर पर आप जांच करके देखें तो कोई अंतर न पाएंगे क्योंकि मनुष्य की संरचना विधाता ने एक सी की है।
डीएनए - व्यक्ति के सोच, चिंतन, आदतों व कर्मो के निरन्तर अभ्यास से प्रभावित होता है।
यह बोध ज्ञान लोगों को करवा के उन्हें समझाना साथ ही खुद समझना कि जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न करें, राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहें। श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए एकजुट रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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