प्रश्न - *आज मेरी पूज्य प्रिय मेरी माता जी से थोड़ी अनबन हो गयी । वजह - की मैं और मेरे पूज्य पिता जी चाचा और ताऊ जी का हर अच्छे बुरे में साथ देते है जो कि मेरी माता जी को अच्छा नही लगता और मुझे ये बिल्कुल भी अच्छा नही लगता कि उनकी परेशानी में हम उनकी मदत न करे । तो बस इतना पूछना था कि मैं अपनी माँ को कैसे खुश रखूं ।*
उत्तर - आत्मीय भाई, सभी की माताजी पूजनीय हैं लेकिन अनुकरणीय 100% नहीं। क्योंकि वो भी साधारण इंसान हैं व मनुष्यगत स्वभाव व सांसारिक परिस्थितियों वश निर्णय लेती हैं।
अपने विवेक का प्रयोग करो, जितना उचित हो उतनी मदद चाचा व ताऊ की परेशानी दूर करने मे मदद करो। बरगद का पेड़ बनो, दूसरों की मदद करो लेकिन अपनी जड़ मत उखाड़ो।
मदद करते वक़्त ध्यान रखो चाचा व ताऊ जी की जरूरतों व भोजन सम्बन्धी चीज़ों में मदद करना, कोई ख्वाईशें पूरी करने के चक्कर मे मत पड़ना।
किसी के प्रारब्ध में प्रवेश मत करना, उदाहरण- चाचा ताऊ जी ने स्वयं कोई बड़ा लोन लिया हो या कोई ख्वाईशें पूरी करने के चक्कर में आर्थिक नुकसान उठाया हो तो उसे पूरे करने में मत लगना। जितनी आवश्यक हो उतनी ही मदद करो, किसी की गाड़ी गड्ढे से अवश्य निकालो, लेकिन उसकी गाड़ी जिंदगी भर खुद ड्राइव करने मत लग जाना।
साथ ही माता जी को प्यार से जब वह अच्छे मूड में हों, यह समझाओ, कि माँ हर इंसान अपने अपने कर्म भोगता है। यदि चाचा व ताऊ जी ने आपके साथ गलत व्यवहार किया है तो यह उसका कर्मफ़ल भोगेंगे। हमारे अच्छे कर्म हमारे साथ जाएंगे, उनके कर्म उनके साथ जाएंगे। लेकिन यदि यह चाचा व ताऊ जी लोग मुसीबत में शरणागत बनके पिताजी से मदद मांगने आते हैं तो हमें इंसानियत के नाते मदद करनी चाहिए।
स्वार्थी रिश्तेदार साफ़ पानी नहीं होते जिन्हें पिया जा सके, लेकिन वो गन्दे पानी जैसे जरूर होते हैं, जिससे समय पड़ने पर आग बुझाई जा सकती है।
तुलसीदास जी ने रामायण में कहा है:-
*रामचरित मानस के पंचम सोपान "सुन्दर काण्ड" में तुलसीदास जी कहते हैं* :-
"शरणागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पाँवर पापमय तिनहि बिलोकत हानि"॥
शरणागत को हित व अनहित विचार कर त्यागना नहीं चाहिए, जो मुसीबत में मदद मांगने आये व्यक्ति को लौटता है व पाप का भागीदार होता है। अतः शरणागत की यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।
चाचा ताऊ की मदद करने से पहले उसका एक अंश माता जी की खुशी के लिए खर्च कीजिये। गिफ्ट वगैरह आगे पीछे दे दीजिए। माँ है प्रशन्न हो जाएगी। माता ज्यादा देर तक नाराज पुत्र से नहीं रह सकती।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय भाई, सभी की माताजी पूजनीय हैं लेकिन अनुकरणीय 100% नहीं। क्योंकि वो भी साधारण इंसान हैं व मनुष्यगत स्वभाव व सांसारिक परिस्थितियों वश निर्णय लेती हैं।
अपने विवेक का प्रयोग करो, जितना उचित हो उतनी मदद चाचा व ताऊ की परेशानी दूर करने मे मदद करो। बरगद का पेड़ बनो, दूसरों की मदद करो लेकिन अपनी जड़ मत उखाड़ो।
मदद करते वक़्त ध्यान रखो चाचा व ताऊ जी की जरूरतों व भोजन सम्बन्धी चीज़ों में मदद करना, कोई ख्वाईशें पूरी करने के चक्कर मे मत पड़ना।
किसी के प्रारब्ध में प्रवेश मत करना, उदाहरण- चाचा ताऊ जी ने स्वयं कोई बड़ा लोन लिया हो या कोई ख्वाईशें पूरी करने के चक्कर में आर्थिक नुकसान उठाया हो तो उसे पूरे करने में मत लगना। जितनी आवश्यक हो उतनी ही मदद करो, किसी की गाड़ी गड्ढे से अवश्य निकालो, लेकिन उसकी गाड़ी जिंदगी भर खुद ड्राइव करने मत लग जाना।
साथ ही माता जी को प्यार से जब वह अच्छे मूड में हों, यह समझाओ, कि माँ हर इंसान अपने अपने कर्म भोगता है। यदि चाचा व ताऊ जी ने आपके साथ गलत व्यवहार किया है तो यह उसका कर्मफ़ल भोगेंगे। हमारे अच्छे कर्म हमारे साथ जाएंगे, उनके कर्म उनके साथ जाएंगे। लेकिन यदि यह चाचा व ताऊ जी लोग मुसीबत में शरणागत बनके पिताजी से मदद मांगने आते हैं तो हमें इंसानियत के नाते मदद करनी चाहिए।
स्वार्थी रिश्तेदार साफ़ पानी नहीं होते जिन्हें पिया जा सके, लेकिन वो गन्दे पानी जैसे जरूर होते हैं, जिससे समय पड़ने पर आग बुझाई जा सकती है।
तुलसीदास जी ने रामायण में कहा है:-
*रामचरित मानस के पंचम सोपान "सुन्दर काण्ड" में तुलसीदास जी कहते हैं* :-
"शरणागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पाँवर पापमय तिनहि बिलोकत हानि"॥
शरणागत को हित व अनहित विचार कर त्यागना नहीं चाहिए, जो मुसीबत में मदद मांगने आये व्यक्ति को लौटता है व पाप का भागीदार होता है। अतः शरणागत की यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।
चाचा ताऊ की मदद करने से पहले उसका एक अंश माता जी की खुशी के लिए खर्च कीजिये। गिफ्ट वगैरह आगे पीछे दे दीजिए। माँ है प्रशन्न हो जाएगी। माता ज्यादा देर तक नाराज पुत्र से नहीं रह सकती।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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