Tuesday, 17 September 2019

प्रश्न - *दी, नित्य प्रतिदिन आने वाली समस्याओं व कठिन परिस्थितियों को कैसे झेंले व इनसे कैसे उबरें?*

प्रश्न - *दी, नित्य प्रतिदिन आने वाली समस्याओं व कठिन परिस्थितियों को कैसे झेंले व इनसे कैसे उबरें?*

उत्तर- आत्मीय बहन,

एक ही समस्या किसी को इतिहास रचने को प्रेरित करती है, और किसी को आत्महत्या करने को प्रेरित करती है।

एक ही जैसी समस्या किसी को मजबूत बनाती है, तो किसी को मजबूर बना देती है।

यह किस्मत खराब व किस्मत अच्छी का विषय नहीं है। यह सोचने का तरीका व जीवन के प्रतिदृष्टिकोण आपका कैसा है? इस पर निर्भर करता है।
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*जो लोग किस्मत का रोना रोते हैं वो वस्तुतः निम्नलिखित बातें बोल रहे होते व सोच रहे होते हैं*:-

सुबह कायर की तरह उदास बिस्तर से उठते हैं, किस्मत को कोसते हुए धरती पर पैर रखते हैं।

1- मैं मानसिक अपाहिज हूँ
2- मुझे भगवान पर भरोसा नहीं है
3- मुझे स्वयं पर भरोसा नहीं है
4- मैं स्वयं परिस्थितियों को बदलना नहीं चाहता कोई और मेरी परिस्थितियों को बदल दे
5- मैं बहुत दुःखी हूँ मेरा रोना सुनो मेरी मदद करो, लेकिन मैं खुद कुछ नहीं करूंगी
6- आख़िर मैं एक अबला नारी हूँ, कर भी क्या सकती हूँ
7- विवाह के बाद मेरा कॉन्फिडेंस का विसर्जन हो गया
8- मेरी माता खराब है या मेरी सास खराब है, मैं कम पैसे की जॉब करूंगी तो लोग मेरा मज़ाक उड़ाएंगे
9- मेरे घर वाले मुझे ताना मारते है या मेरे साथ मारपीट करते हैं
10- घर वाले मुझ पर दबाव बनाकर मुझसे कुछ करवाना चाहते हैं।
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*जो लोग कठिन परिस्थितियों में मुस्कुराते हुए जीते हैं, हर परिस्थिति को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं, वो निम्नलिखित बातें बोलते व सोचते हैं।*

साथ ही वह सुबह उठकर निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराते हैं और बहादुर योद्धा की तरह बिस्तर से आत्मविश्वास के साथ उठते हैं:-

1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री हूँ।
2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री हूँ।
3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं।
4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री हूँ।
5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।
6- मैं एक योद्धा हूँ और आज पूर्ण विश्वास से जीवन युद्ध लड़ूंगी। कोई भी परेशानी का डटकर मुकाबला करूंगी
7- आज का दिन मेरा है, मैं संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ
8-  सांसारिक पहचान *मैं* नहीं हूँ, मैं तो परमात्मा का अंश हूँ
9- मेरी क़िस्मत को बनाने का उत्तरदायित्व मेरा है, मैं अपनी क़िस्मत स्वयं लिख रही हूँ। मैं बेहतरीन किस्मत लिखूंगी।
10- परमात्मा बहुत बहुत धन्यवाद यह अनमोल मानव जीवन देने के लिए, हे मेरे जगतगुरु मेरे बुद्धिरथ के सारथी बन जाइये। मैं अर्जुन की तरह जीवन युद्ध मे कभी भी मोह में भटकूँ तो मेरा मार्गदर्शन करना। तुम साथ हो तो विजय निश्चित है।

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मेरे सदगुरु युगऋषि ही आदि योगी शिव है और आदियोगी शिव ही मेरे सद्गुरु हैं। प्रणाम गुरुदेव मुझे अपने जैसा योगी बना दीजिये।

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सकारात्मक आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाकर कठिन मृत्यु सम कष्ट झेला, टांग कटी, एक पैर नकली, दूसरे पैर में स्टील रॉड, बिना एनैस्थिसिया के ऑपरेशन,  न्यूजपेपर में छपी तीखी गन्दी टिप्पणी व तानों को कैसे जवाब दिया इस बहादुर लड़की *अरुणिमा सिन्हा ने*। कैसे इतिहास रचा खुद सुनिएं:-

https://youtu.be/Wx9v_J34Fyo

मुझे पता है नकारात्मक दृष्टिकोण वाले इस वीडियो में भी अपने काम की नकारात्मक बहाने ढूंढ लेंगे कि क्यों वो इससे भी ज्यादा दुःखी हैं, व अनलकी है। सकारात्मक दृष्टिकोण वाले इस वीडियो से वह कारण ढूढ़ लेंगे कि कैसे वो विजेता बनें।

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🙏🏻भगवान कृष्ण जब जन्में तो कंस रूपी मुसीबत मारने को खड़ी थी, माता पिता जेल में थे, वहाँ से यशोदा के घर पहुंचे लगातार हमले होते रहे। जिसमे सच्चे दिल से प्रेम किया राधा जी, उनसे विवाह नहीं हुआ। जिसे चाहा नहीं उनसे विवाह हुआ। राक्षस से लड़कर स्त्रियों को छुड़ाया मजबूरी में उनसे उद्धार हेतु विवाह किया। झगड़ा रगड़ा कौरव पांडव का उसमें भी जूझना पड़ा। अर्जुन भक्त के उद्धार के लिए राजा थे मगर सारथी बने, गीता का ज्ञान देकर मोह से उबारा। उसे महाभारत जीता कर धर्म स्थापना करवाई। उनका पूरा परिवार आपस में लड़कर उन्हीं के सामने मर गया। यादवकुल नष्ट हो गया। अंत में पूर्व जन्म के बाली ने तीर पैरों में मारा और इस तरह भगवान कृष्ण ने देह त्यागा। जन्म से लेकर मृत्यु तक मुसीबतों के बीच भी न उन्होंने बुद्धि खोई और न हीं मुस्कुराना छोड़ा इसलिए वो भगवान कहलाये। युद्ध का नाद जो अशांति व भय उतपन्न करने वाला था वहाँ उस युद्ध के मैदान में भी स्थिर चित्त होकर मुस्कुराते हुए प्रशन्नचित्त से गीता का ज्ञान दिया।

🙏🏻 भगवान राम के पूरे अवतार में कितने क्षण सुख के उन्होंने बिताए? क्या उन्हें परिवार की राजनीति, तानों, लांछन नहीं सुनना पड़ा? जरा स्वयं विचार करें

महापुरुषों की जीवनियां उठाइये, मुसीबत का पहाड़ था, उन्होंने मुसीबत के पहाड़ के नीचे दबकर मरने से अच्छा मुसीबत के पहाड़ पर चढ़ना अच्छा समझा।

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Situation + Response/action = Life outcome

परिस्थिति + प्रतिक्रिया = जीवन का परिणाम

न परिस्थिति(situation) आपके हाथ में है और न हीं परिणाम (outcome) आपके हाथ मे है। आपके हाथ में उस परिस्थिति में प्रतिक्रिया क्या देना है, क्या क्या एक्शन लेना है। कर्म करना है। यह परिणाम बदल देगा।

आधी ग्लास भरी है और आधी खाली।  इस संसार में पाश्चत्य भाषा में कहें तो संसार दुःखमय है। भगवान शंकराचार्य और भारतीय ऋषियों की भाषा में कहें तो संसार सत चित आनन्दस्वरूप है। कह दोनों सही रहे हैं, पाश्चात्य विद्वान आधा ख़ाली देख रहे हैं और भारतीय ऋषि आधा भरा, साथ ही जो आधा खाली है वो वस्तुतः खाली नहीं हवा से भरा है।

अब किस्मत डायरेक्ट नहीं बदल सकते। किस्मत बदलने के लिए 👉🏻 पहले सोच बदलिए👉🏻 स्वयं की संसारी नश्वर पहचान को हटाकर अपनी असली शाश्वत पहचान आत्मा से जुड़िये जो परमात्मा का अंश है👉🏻 आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित कीजिये👉🏻 आदतें बदलिए👉🏻 स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी उठाइये👉🏻 कर्म कीजिये👉🏻 किस्मत स्वतः बदल जाएगी।

विजेता और कायर में एक ही अंतर है,  एक परिस्थिति से जूझता है और दूसरा परिस्थिति से भागता है। एक लड़कर वीरों की तरह शहीद होने को तैयार है, दूसरा भागकर छुपकर मरने को तैयार है। विजेता समाधान ढूंढता है, कायर समस्या गिनता है। विजेता कुछ न कुछ करूंगा इस हेतु सङ्कल्प ढूढता है, कायर कुछ कर इसलिए नहीं पाया उसकी बहाने की लिस्ट तैयार करता है।

निर्णय आप करो कि आपको क्या करना है?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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