Monday, 30 September 2019

कविता - *पक्षी को पता होता है, आसमान में बैठने की जगह नहीं होती*

कविता - *पक्षी को पता होता है, आसमान में बैठने की जगह नहीं होती*

मेरे बेटे,
नाविक को पता होता है,
लहरें शांत नहीं होती,
पक्षी को पता होता है,
आसमान में बैठने की जगह नहीं होती।

फ़िर भी नाविक,
नाव समुद्र में उतारता है,
फिर भी पक्षी,
उड़ने को पंख फैलता है।

गृहणी को पता होता है,
आग व चाकू से सामना होगा,
सैनिक को पता होता है,
बारूद व गोले का सामना होगा।

फ़िर भी गृहणी,
रोज़ रसोईघर में खाना पकाती है,
फ़िर भी सैनिक,
रोज़ दुश्मनों के बीच ड्यूटी निभाता है।

मेरे बेटे,
ख़तरा कहाँ नहीं है?
मृत्यु का भय कहाँ नहीं है?
जैसे दाँतो के बीच जीभ रहती है,
वैसे ही मृत्यु के बीच जीव रहता है।

भय को त्याग,
सैनिक जैसे साहसी बनो,
बहादुरी और धैर्य से,
हर परिस्थिति का मुकाबला करो।

मृत्यु जब आयेगी,
तब उसे भी हँस के स्वीकारना,
जब तक जीवन है,
उसे भयमुक्त होकर गुजारना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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