Tuesday, 17 September 2019

शरद ऋतु व आहार व विहार

*शरद ऋतु व आहार व विहार*

यह दो ऋतुओ का आदान काल होता है जो कि आप के शरीर में कई परिवर्तन कर देता है बुखार सर्दी व भूख कम लगना प्रारम्भ कर देता है तालबद्ध रहने से मन को शरीर को पुष्ट करता है पित्त प्रकोप ज्यादा होता है।

वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। शरद में चंद्रमा का बल अव्याहत् (पूर्ण) हो जाता है जिससे भूतलगत पदार्थों में स्नेह व लवणरस की वृद्धि होती है। बल भी बढ़ता है। औषधियाँ पुष्ट होने लगती हैं।

वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से संचित पित्तदोष का शरद ऋतु में प्रकोप हो जाता है। वायु का शमन होता है। जठराग्नि मंद हो जाती है।

 परिणामस्वरूप रोग उत्पन्न होते हैं। आयुर्वद ने समस्त ऋतुओं में शरद ऋतु को रोगों की माता कहा जाता है।
आहारः पित्त के शमन के लिए मीठे, कड़वे एवं तूरे रस का उपयोग विशेष रूप से करना चाहिए। अनाज में गेहूँ, जौ, ज्वार, चावल, दालों में मूँग, मसूर, मोठ, सब्जियों में कुम्हड़ा (पेठा), लौकी, करेले, परवल, तोरई, गिल्की, गोभी, कंकोड़ा, पालक, चौलाई, गाजर, कच्ची ककड़ी, मक्के का भुट्टा, फलों में अनार, जामन पके केले, जामफल, मोसम्बी, नींबू, नारियल, ताजा अंजीर, अंगूर, सूखे मेवों में चारोली, पिस्ता तथा मसालों में जीरा, धनिया, आँवला, इलायची, हल्दी, खसखस, सौंफ लिये जा सकते हैं।

इसके अलावा दूध, घी, मक्खन, मिश्री, नारियल का तेल तथा अरण्डी का तेल लेना बहुत लाभदायी है। तेल की जगह घी का उपयोग उत्तम है।
शरद ऋतु में खीर, रबड़ी आदि ठंडी करके खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।

पके केले में घी और इलायची डालकर खाने से लाभ होता है। गन्ने का रस एवं नारियल का पानी खूब फायदेमंद हैं। काली द्राक्ष (मुनक्का), सौंफ एवं धनिया मिलाकर बनाया गया पेय गर्मी का शमन करता है।

इस ऋतु में पित्तदोष का प्रकोप करने वाली खट्टी व तीखी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। भरपेट भोजन, दिन की निद्रा, बर्फ, दही, खट्टी छाछ व तले हुए पदार्थों का सेवन न करें। जीरा, धनिया, सौंफ, मिश्री मिलायी हुई ताजी छाछ ले सकते हैं।

बाजरा, उड़द, कुलथी, अरहर (तुअर) चौलाई, मिर्च, प्याज, लहसुन, अदरक, पके हुए बैंगन, टमाटर, इमली, हींग, तिल, मूँगफली, सरसों आदि पित्तकारक होने से त्याज्य है।
विशेषः अगर पित्तविकार हो तो पित्त के शमनार्थ आँवला चूर्ण अथवा त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। आँवला और मिश्री के चूर्ण तथा चाँदनी में रखा गया गुलकन्द शरद ऋतु में अत्यन्त लाभदायी है। यह बढ़ हुए पित्त को मल के साथ बाहर निकालकर शीतलता, ताजगी, स्फूर्ति व बल प्रदान करता है। शरद पूर्णिमा के बाद पुष्ट हुए ताजे आँवलों से बनाया गया संत च्यवनप्राश भी पित्त के शमन तथा रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ औषधि है।

बुखार, पेचिस, उल्टी, दस्त, मलेरिया आदि ऋतुजन्य विकारों से बचने के लिए अन्य दवाइयों पर खर्चा करने की अपेक्षा आँवला, धनिया और सौंफ के समभाग मिश्रण में उतनी ही मिश्री मिलाकर एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लेना हितकर है।

इस ऋतु में जुलाब लेने से शरीर से पित्तदोष निकल जाता है एवं पित्तजन्य विकारों से रक्षा होती है। जुलाब के लिए हरीत की (हरड़) उत्तम औषधि है। शरद ऋतु में दो ग्राम हरड़ चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर 3 से 4 ग्राम मिश्रण सुबह खाली पेट लेना चाहिए।

भाद्रपद माह में कड़वे पदार्थ विशेष लाभदायी है। कड़वा रस पित्तशामक एवं ज्वर-प्रतिरोधी है। अतः चिरायता, नीम के पत्ते, करेले आदि का सेवन करना चाहिए।
श्राद्ध के दिनों में एवं नवरात्रि में पितृजन हेतु कड़क ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यौवन सुरक्षा पुस्तक का पाठ करना चाहिए। यौवन सुरक्षा पुस्तक का पाठ करने से ब्रह्मचर्य में मदद मिलेगी।
विहारः इन दिनों में शीतल चाँदनी का लाभ लेने के लिए रात्रिजागरण, रात्रिभ्रमण करना चाहिए। इसीलिए नवरात्रि वगैरह का आयोजन किया जाता है। रात्रिजागरण 12 बजे तक का ही माना जाता है। अधिक जागरण से, सुबह एवं दोपहर को सोने से त्रिदोष प्रकुपित होते हैं जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता है।
हमारे दूरदर्शी ऋषि-मुनियों ने शरदपूनम जैसा त्यौहार भी इस ऋतु में विशेषकर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही आयोजित किया है। शरदपूनम की रात को जागरण, भ्रमण, मनोरंजन आदि को उत्तम पित्तनाशक विहार के रूप में आयुर्वेद ने स्वीकार किया है।
शरदपूनम की शीतल रात्रि में चंद्रमा की किरणों में छत पर रखी हुई दूध की खीर खाना चाहिए | और एकादशी से शरदपूनम तक चन्द्रमा पर त्राटक (एक तक देखना) करने से आखों की रौशनी बढती है ||

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