आत्मा को जानने की दो विधि है:-
1- हम क्या नहीं है?
2- हम क्या है?
हम क्या हैं डायरेक्ट मुंह से बोल देना या मान लेने से कि *हम आत्मा है?* कोई फ़र्क़ जीवन मे नहीं पड़ेगा और न कुछ बदलाव दिखेगा। जब तक अनुभूति न होगी बात न बनेगी। ठीक वैसे ही जैसे गुड़ के बारे में जितना पढ़ लो, डिसकस कर लो, जितने चित्र देख लो, कांच की बरनी के भीतर देख लो, बात न बनेगी जब तक चखोगे नहीं। चखने के बाद गुड़ की मिठास के साथ गुड़ की ऊर्जा तुरन्त शरीर को मिलेगी। वैसे ही आत्मा को जानने के बाद तुरन्त ही आत्मानंद की अनुभूति व ऊर्जा से भर उठोगे। गूंगे का गुड़ है, जैसे गूंगा नहीं बता सकता गुड़ की मिठास को वैसे ही आत्म अनुभूति शब्दो मे व्यक्त नहीं हो सकती।
भाई ऋषियों पहले ही कण कण में परमात्मा का वास कह दिया। परमात्मा अर्थात प्रकाशस्वरूप अर्थात ऊर्जा अर्थात आधुनिक भाषा मे एनर्जी।
पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पुनः पदार्थ में बदलने की प्रक्रिया हम नित्य नज़रो से देखते है, समस्या यह है कि हम चैतन्य नहीं है।
केला पदार्थ खाया ऊर्जा बनी व रक्त इत्यादि पार्ट बने, कुछ भाग पॉटी में निकला। वो खाद बना। खाद से पुनः केले को ऊर्जा मिली। केला बढ़ा फिर फल आये। पुनः उस फल को मनुष्य ने खाया। यही तो जीवन चक्र है।
मनुष्य का बनाया स्वेटर बच्चे की उम्र बढ़ने पर छोटा हो जाता है, भगवान का बनाया स्वेटर भालू को कभी छोटा नही होता। उसके बढ़ने के साथ बढ़ता है।
प्रकृति में सभी पेड़ पौधे हरे हैं, मगर उनके हरे रंग एक दूसरे से भिन्न हैं सैकड़ो प्रकार के हरे रंग है।
सूक्ष्म सम्वाद चेतना स्तर पर करके प्राचीन समय मे औषधियां खोजी गई थी। लैब परिक्षण नहीं हुआ था।
यह सूक्ष्म सम्वाद चेतना के स्तर पर सम्भव है, इतने सूक्ष्म स्तर पर देख सुन व समझ तभी सकते हैं जब आत्म अनुभव करेंगे। तब कुछ भी असम्भव न होगा, आत्मा व परमात्मा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं एक को जान गए तो दूसरा स्वतः ज्ञात हो जाता है।
1- हम क्या नहीं है?
2- हम क्या है?
हम क्या हैं डायरेक्ट मुंह से बोल देना या मान लेने से कि *हम आत्मा है?* कोई फ़र्क़ जीवन मे नहीं पड़ेगा और न कुछ बदलाव दिखेगा। जब तक अनुभूति न होगी बात न बनेगी। ठीक वैसे ही जैसे गुड़ के बारे में जितना पढ़ लो, डिसकस कर लो, जितने चित्र देख लो, कांच की बरनी के भीतर देख लो, बात न बनेगी जब तक चखोगे नहीं। चखने के बाद गुड़ की मिठास के साथ गुड़ की ऊर्जा तुरन्त शरीर को मिलेगी। वैसे ही आत्मा को जानने के बाद तुरन्त ही आत्मानंद की अनुभूति व ऊर्जा से भर उठोगे। गूंगे का गुड़ है, जैसे गूंगा नहीं बता सकता गुड़ की मिठास को वैसे ही आत्म अनुभूति शब्दो मे व्यक्त नहीं हो सकती।
भाई ऋषियों पहले ही कण कण में परमात्मा का वास कह दिया। परमात्मा अर्थात प्रकाशस्वरूप अर्थात ऊर्जा अर्थात आधुनिक भाषा मे एनर्जी।
पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पुनः पदार्थ में बदलने की प्रक्रिया हम नित्य नज़रो से देखते है, समस्या यह है कि हम चैतन्य नहीं है।
केला पदार्थ खाया ऊर्जा बनी व रक्त इत्यादि पार्ट बने, कुछ भाग पॉटी में निकला। वो खाद बना। खाद से पुनः केले को ऊर्जा मिली। केला बढ़ा फिर फल आये। पुनः उस फल को मनुष्य ने खाया। यही तो जीवन चक्र है।
मनुष्य का बनाया स्वेटर बच्चे की उम्र बढ़ने पर छोटा हो जाता है, भगवान का बनाया स्वेटर भालू को कभी छोटा नही होता। उसके बढ़ने के साथ बढ़ता है।
प्रकृति में सभी पेड़ पौधे हरे हैं, मगर उनके हरे रंग एक दूसरे से भिन्न हैं सैकड़ो प्रकार के हरे रंग है।
सूक्ष्म सम्वाद चेतना स्तर पर करके प्राचीन समय मे औषधियां खोजी गई थी। लैब परिक्षण नहीं हुआ था।
यह सूक्ष्म सम्वाद चेतना के स्तर पर सम्भव है, इतने सूक्ष्म स्तर पर देख सुन व समझ तभी सकते हैं जब आत्म अनुभव करेंगे। तब कुछ भी असम्भव न होगा, आत्मा व परमात्मा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं एक को जान गए तो दूसरा स्वतः ज्ञात हो जाता है।
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