प्रश्न - *नवरात्रि उपासना में सूतक का व्यवधान हो और उस दौरान क्या करना चाहिए या नहीं स्पष्ट कीजिए*
उत्तर - यदि बच्चे का जन्म या किसी की मृत्यु आप जिस घर में रहते हैं उस घर में नहीं हुआ है। आपके रक्तसम्बन्धी यदि आपके घर के 5 किलोमीटर के दायरे में भी नहीं रहते, साथ ही आप अपने सम्बन्धी के बच्चे जन्म के समय हॉस्पिटल में नहीं थे। या किसी की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए है, तो आप पर सूतक नहीं अप्पलाई होता। अतः नवरात्रि के अनुष्ठान में कोई बाधा नहीं है।
सूतक स्थान पर लगता है और उन रक्तसम्बन्धियों पर भी लगता है जो जन्म व मृत्यु के कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं।
लेक़िन जो रक्तसम्बन्धी जन्म व मृत्यु के स्थान पर नहीं रहते हैं, अन्य शहर में रहते हैं व कार्यक्रम में सम्मिलित भी नहीं हुए उनपर सूतक नहीं लगता।
*साधारणतया घर में किसी आत्मा का शरीर से जन्म लेना और गर्भ से बाहर आने पर दस दिन का सूतक लगता है। इसी प्रकार आत्मा के शरीर त्याग करने पर भी दस दिन तक सूतक लगता है।* सूतक किसको लगा, किसको नहीं लगा, इसका निर्णय इसी आधार पर किया जा सकता है कि जिस घर में बच्चे का जन्म या किसी का मरण हुआ है, उसमें निवास करने वाले प्रायः सभी लोगों को सूतक लगा हुआ माना जाय। वे भले ही अपने जाति-गोत्र के हों या नहीं। पर उस घर से अन्यत्र रहने वाले—निरन्तर सम्पर्क में न आने वालों पर सूतक का कोई प्रभाव नहीं हो सकता, भले ही वे एक कुटुम्ब-परम्परा या वंश, कुल के क्यों न हों। वस्तुतः सूतक एक प्रकार की अशुद्धि-जन्य छूत है, जिसमें संक्रामक रोगों की तरह सम्पर्क में आने वालों को लगने की बात सोची जा सकती है यों अस्पतालों में भी छूत या अशुद्धि का वातावरण रहता है, पर सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों अथवा साधनों को उससे बचाने की सतर्कता रखने पर भी सम्पर्क और सामंजस्य बना ही रहता है। इतना भर होता है कि अशुद्धि के सम्पर्क के समय विशेष सतर्कता रखी जाय। जन्म-मरण के सूतकों के विषय में भी इसी दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए। पूजापरक कृत्यों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखने का नियम है। *इसी से सूतक के दिनों नियमित पूजा-उपचार में प्रतिमा, उपकरण आदि का स्पर्श न करने की प्रथा चली होगी।* इसलिए देव प्रतिमा का पूजन, यज्ञ, माला लेकर जप, मुंह से मन्त्र बोलना वर्जित होता है।
उस प्रचलन का निर्वाह न करने पर भी *मौन-मानसिक जप, ध्यान आदि व्यक्तिगत उपासना का नित्यकर्म करने में किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं पड़ता*। भावनात्मक और मौनमानसिक उपसनाक्रम जप-ध्याम और स्वाध्याय सूतक में किया जाना चाहिए।
यदि किसी की मृत्यु सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस मृतक आत्मा की मुक्ति, सद्गति व शांति के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।
यदि किसी नन्हें मेहमान नवागन्तुक के सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस नवागन्तुक बच्चे के उज्जवल भविष्य व उत्तम स्वास्थ्य के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।
Reference - पुस्तक - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल अशौच प्रतिबन्ध
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - यदि बच्चे का जन्म या किसी की मृत्यु आप जिस घर में रहते हैं उस घर में नहीं हुआ है। आपके रक्तसम्बन्धी यदि आपके घर के 5 किलोमीटर के दायरे में भी नहीं रहते, साथ ही आप अपने सम्बन्धी के बच्चे जन्म के समय हॉस्पिटल में नहीं थे। या किसी की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए है, तो आप पर सूतक नहीं अप्पलाई होता। अतः नवरात्रि के अनुष्ठान में कोई बाधा नहीं है।
सूतक स्थान पर लगता है और उन रक्तसम्बन्धियों पर भी लगता है जो जन्म व मृत्यु के कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं।
लेक़िन जो रक्तसम्बन्धी जन्म व मृत्यु के स्थान पर नहीं रहते हैं, अन्य शहर में रहते हैं व कार्यक्रम में सम्मिलित भी नहीं हुए उनपर सूतक नहीं लगता।
*साधारणतया घर में किसी आत्मा का शरीर से जन्म लेना और गर्भ से बाहर आने पर दस दिन का सूतक लगता है। इसी प्रकार आत्मा के शरीर त्याग करने पर भी दस दिन तक सूतक लगता है।* सूतक किसको लगा, किसको नहीं लगा, इसका निर्णय इसी आधार पर किया जा सकता है कि जिस घर में बच्चे का जन्म या किसी का मरण हुआ है, उसमें निवास करने वाले प्रायः सभी लोगों को सूतक लगा हुआ माना जाय। वे भले ही अपने जाति-गोत्र के हों या नहीं। पर उस घर से अन्यत्र रहने वाले—निरन्तर सम्पर्क में न आने वालों पर सूतक का कोई प्रभाव नहीं हो सकता, भले ही वे एक कुटुम्ब-परम्परा या वंश, कुल के क्यों न हों। वस्तुतः सूतक एक प्रकार की अशुद्धि-जन्य छूत है, जिसमें संक्रामक रोगों की तरह सम्पर्क में आने वालों को लगने की बात सोची जा सकती है यों अस्पतालों में भी छूत या अशुद्धि का वातावरण रहता है, पर सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों अथवा साधनों को उससे बचाने की सतर्कता रखने पर भी सम्पर्क और सामंजस्य बना ही रहता है। इतना भर होता है कि अशुद्धि के सम्पर्क के समय विशेष सतर्कता रखी जाय। जन्म-मरण के सूतकों के विषय में भी इसी दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए। पूजापरक कृत्यों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखने का नियम है। *इसी से सूतक के दिनों नियमित पूजा-उपचार में प्रतिमा, उपकरण आदि का स्पर्श न करने की प्रथा चली होगी।* इसलिए देव प्रतिमा का पूजन, यज्ञ, माला लेकर जप, मुंह से मन्त्र बोलना वर्जित होता है।
उस प्रचलन का निर्वाह न करने पर भी *मौन-मानसिक जप, ध्यान आदि व्यक्तिगत उपासना का नित्यकर्म करने में किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं पड़ता*। भावनात्मक और मौनमानसिक उपसनाक्रम जप-ध्याम और स्वाध्याय सूतक में किया जाना चाहिए।
यदि किसी की मृत्यु सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस मृतक आत्मा की मुक्ति, सद्गति व शांति के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।
यदि किसी नन्हें मेहमान नवागन्तुक के सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस नवागन्तुक बच्चे के उज्जवल भविष्य व उत्तम स्वास्थ्य के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।
Reference - पुस्तक - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल अशौच प्रतिबन्ध
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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