प्रश्न - *मेरा पुत्र सजातीय गोत्र की लड़की से प्रेम करता था, अतः हमने दबाव डालकर उसका विवाह उसकी मर्ज़ी के विरुद्ध करवा दिया। वह अपनी वर्तमान पत्नी के साथ दूसरे शहर साथ रहता है, लेकिन मुझसे व अपनी माता से बात नहीं करता। क्या करें?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
आइये पहले गोत्र की उत्तपत्ति समझते हैं:-
महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 296 श्लोक 14-29 के अनुसार *पहले अंगिरा, कश्यप, वसिष्ठ और भृगु - ये ही चार मूल गोत्र प्रकट हुए थे*। अन्य गोत्र कर्म के अनुसार पीछे उत्पन्न हुए हैं। वे गोत्र और उनके नाम उन गोत्र-प्रवर्तक महर्षियों की तपस्या से ही साधू-समाज में सुविख्यात एवं सम्मानित हुए हैं। अतः गोत्र व उपगोत्र भगवान ने नहीं बनाए, ऋषियों ने गोत्र व उपगोत्र बनाये। साथ ही सुप्रजनन व आनुवंशिक रोगों से आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए इसे बनाया। क्योंकि लोग ज्यादा पढ़े लिखे होते नहीं थे न ही कागज पेन व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस उनके पास थी। यादाश्त में असली कारण भूल गया, नहीं करते है एक गोत्र में विवाह बस ये याद रहा।
सुभद्रा व अर्जुन सजातीय गोत्र के ही थे। अतः सजातीय गोत्र में विवाह से भगवान नाराज़ नहीं होते, न ही कोई धार्मिक दृष्टि से कुछ अनिष्ट होता है।
आयुर्वेद के अनुसार पुरूष का रक्त व DNA गुण का प्रभाव 7 पीढ़ी व माता का 3 पीढ़ियों तक रहता है। वास्तविक रूप में सगोत्र विवाह निषेध चिकित्सा विज्ञान की 'सेपरेशन ऑफ जींस' की मान्यता पर आधारित है। कई वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि यदि करीब के रक्त संबंधियों में विवाह होता है तो अधिक संभावना है कि उनके जींस (गुणसूत्र) अलग न होकर एक समान ही हों।
एक समान जींस होने से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान को कई गंभीर बीमारियों जैसे हीमोफीलिया, रंग-अंधत्व आदि के होने की आशंका बढ़ जाती है इसलिए हमारे शास्त्रों द्वारा सगोत्र विवाह निषेध का नियम बनाया गया था किंतु कई समाजों में निकट संबंधियों में विवाह का प्रचलन होने के बावजूद उन दंपतियों से उत्पन्न हुई संतानों में किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी नहीं पाई गई।
मेरे देखे वर्तमान समय में इस प्रकार के नियमों को उनके वास्तविक रूप में देखने की आवश्यकता है। यह नियम यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित होकर यदि केवल रक्त संबंधियों तक ही सीमित रहे तो बेहतर है किंतु देखने में आता है कि सगोत्र विवाह निषेध के नाम पर ऐसे रिश्तों को भी नकार दिया जाता है जिनसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी में कोई रक्त संबंध नहीं रहा है।
आपने बच्चे के सामने तथ्य तर्क प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए, साथ ही किसी चिकित्सक की भी सलाह नहीं ली। यदि कन्या 7 पीढ़ी के अंदर नहीं आती थी, तो यह विवाह करना जायज़ था, कोई नुकसान न होता।
यदि आपने विवाह इसलिए नहीं करवाया कि हमारे यहां एक गोत्र में विवाह करने की परम्परा नहीं तो आपने रूढ़िवादी परम्परा को बिना जाने बोला। तर्क तथ्य व प्रमाण जब नहीं होते तो माता पिता अपनी बात मनवाने के लिए अपशब्दों का उपयोग व इमोशनल अत्यचार का सहारा लेते हैं। धमकी स्वरूप कहते है कि यदि इस लड़की से शादी की तो मेरा मरा मुंह देखोगे इत्यादि इत्यादि। हमें व उस लड़की में से किसी एक को चुनना पड़ेगा इत्यादि इत्यादी।
लड़का भीतर ही भीतर टूट जाता है, हृदय घावों से भर जाता है, क्योंकि उसे यह क्लियर ही नहीं कि उसके माता पिता सजातीय गोत्र में विवाह क्यों नहीं करने दे रहे।
विवाह तो कर लेता है दबाव में आकर, लेक़िन उसके बाद यदि वर्तमान पत्नी से विचार नहीं मिले और बात न बन पाई। तो स्वयं की जिंदगी की तबाही के लिए वो माता पिता को दोषी मानता है।
*बेटे के भीतर प्रश्न उठते हैं:-*
1- क्या मैंने कहा था कि मुझे पैदा करो? अपनी खुशी के लिए मुझे पैदा किया न कि मेरी ख़ुशी के लिए, मुझे पैदा किया गया।
2- बचपन से लेकर बड़े होने तक कुछ बनने के लिए पढो पढ़ो मानसिक दबाव बनाया। क्या कभी मेरी खुशी जाननी चाही कि मैं क्या चाहता हूँ?
3- मेरे जीवन का अहम निर्णय की मैं मेरा पूरा जीवन किसके साथ बिताऊंगा, वो भी मुझे नहीं लेने दिया। यहाँ भी मेरी ख़ुशी की परवाह नहीं की।
4-जब मेरे माता-पिता मुझे और मेरी खुशियों की परवाह करते नहीं, तो फिर मैं उनसे क्यों बात करूं? आपके बेटे का नफरत व क्रोध में भरा हुआ है। मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया।
*माता पिता के भीतर प्रश्न उठते हैं*
1- बचपन से लेकर कितने कष्ट उठाये इसके पालन पोषण में
2- खुद से पहले इसकी खुशी सोची
3- अरे इसके भले के लिए ही इसकी शादी सजातीय गोत्र में नहीं करने दी। दबाव बनाकर एक अच्छी लड़की से करवाई
4- अब इतनी छोटी सी बात के लिए माता-पिता से कोई नाराज होता है भला
👉🏻 खुद सोचिए, माता-पिता व सन्तान में मिलन हो तो कैसे?
*उपाय :-* सबसे पहले उसे फोन करके या मेसेज करके या पत्र लिखकर बेटे से माफी माँगिये। माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता।
गहन ध्यान में जाकर बेटे की आत्मा का आह्वाहन करके गुरुदेव की समाधि पर ले जाइए। गुरु से प्रार्थना कीजिये कि जो होना था वो तो हो गया। हमें क्षमा कीजिये व हम पिता पुत्र में फिर से सम्वाद करवा दीजिये।
मित्रभाव स्वयं में सही तरीके से जगाने के ज्ञान विज्ञान को समझने लिए निम्नलिखित दो पुस्तक पढ़िए:-
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढाने की कला
👉🏻 *आध्यात्मिक उपाय* - नित्य 3 माला गायत्री की जपें और साथ ही कम से कम 24 मन्त्र व अधिकतम एक माला निम्नलिखित *मित्रभाव बढ़ाने* वाले मन्त्र की जपें।
ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’
(यजुर्वेद 36/18 )
‘हमें विश्व के सारे प्राणी मित्र दृष्टि से नित देखें,
और सभी जीवों को हम भी मित्र दृष्टि से नित पेखें।
प्रभो!आप ऐसी सद्बुद्धि व विवेक हमें प्रदान करने की कृपा करें कि हम समस्त विश्व को अपना गुरु बना सकें।
(वेदार्थ पदांजलि,पृ.82)
👉🏻 24 मन्त्र गुरु मंत्र जपें, जिससे आपके भीतर आनन्द व आत्मियता का भाव उभरे
*ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*
👉🏻 पूजा के बाद सुबह शाम निम्नलिखित मन्त्र सबके कल्याण के लिए अवश्य बोलें
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
*अर्थ*- "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।" सर्वत्र शांति ही शांति हो।
👉🏻 भोजपत्र मिले तो अच्छी बात है, नहीं मिले तो साधारण पेपर में बेटे व बहु दोनों का नाम लाल या गुलाबी रंग के बॉल पेन से लिखें, जिनसे आप दोनों के बीच उपजी शत्रुता समाप्त हो जाये। फिर वह कागज एक शहद की डिब्बी में अंदर तक डुबो दें। भाव करें कि बेटे के साथ मित्रवत शहद जैसे मधुर रिश्ते बनेंगे। हाथ मे जल लेकर सङ्कल्प करें कि इन दोनो को जाने अंजाने में जो मैंने कष्ट दिए व दिल दुखाया उसके लिए यह सभी आत्माएं व लोग मुझे क्षमा करें। इन दोनों ने मुझे जाने अनजाने में जो दिल दुखाया व मुझे कष्ट दिया इन्हें मैं हृदय क्षमा करता हूँ। हे परमात्मा! मेरे बच्चों से सच्ची निःश्वार्थ मित्रता करवा दीजिये। यह सभी सुखी व आनन्दित रहें, और हमें सुख दें। हम भी सुखी व आनन्दित रहें व इन्हें सुख दें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय भाई,
आइये पहले गोत्र की उत्तपत्ति समझते हैं:-
महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 296 श्लोक 14-29 के अनुसार *पहले अंगिरा, कश्यप, वसिष्ठ और भृगु - ये ही चार मूल गोत्र प्रकट हुए थे*। अन्य गोत्र कर्म के अनुसार पीछे उत्पन्न हुए हैं। वे गोत्र और उनके नाम उन गोत्र-प्रवर्तक महर्षियों की तपस्या से ही साधू-समाज में सुविख्यात एवं सम्मानित हुए हैं। अतः गोत्र व उपगोत्र भगवान ने नहीं बनाए, ऋषियों ने गोत्र व उपगोत्र बनाये। साथ ही सुप्रजनन व आनुवंशिक रोगों से आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए इसे बनाया। क्योंकि लोग ज्यादा पढ़े लिखे होते नहीं थे न ही कागज पेन व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस उनके पास थी। यादाश्त में असली कारण भूल गया, नहीं करते है एक गोत्र में विवाह बस ये याद रहा।
सुभद्रा व अर्जुन सजातीय गोत्र के ही थे। अतः सजातीय गोत्र में विवाह से भगवान नाराज़ नहीं होते, न ही कोई धार्मिक दृष्टि से कुछ अनिष्ट होता है।
आयुर्वेद के अनुसार पुरूष का रक्त व DNA गुण का प्रभाव 7 पीढ़ी व माता का 3 पीढ़ियों तक रहता है। वास्तविक रूप में सगोत्र विवाह निषेध चिकित्सा विज्ञान की 'सेपरेशन ऑफ जींस' की मान्यता पर आधारित है। कई वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि यदि करीब के रक्त संबंधियों में विवाह होता है तो अधिक संभावना है कि उनके जींस (गुणसूत्र) अलग न होकर एक समान ही हों।
एक समान जींस होने से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान को कई गंभीर बीमारियों जैसे हीमोफीलिया, रंग-अंधत्व आदि के होने की आशंका बढ़ जाती है इसलिए हमारे शास्त्रों द्वारा सगोत्र विवाह निषेध का नियम बनाया गया था किंतु कई समाजों में निकट संबंधियों में विवाह का प्रचलन होने के बावजूद उन दंपतियों से उत्पन्न हुई संतानों में किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी नहीं पाई गई।
मेरे देखे वर्तमान समय में इस प्रकार के नियमों को उनके वास्तविक रूप में देखने की आवश्यकता है। यह नियम यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित होकर यदि केवल रक्त संबंधियों तक ही सीमित रहे तो बेहतर है किंतु देखने में आता है कि सगोत्र विवाह निषेध के नाम पर ऐसे रिश्तों को भी नकार दिया जाता है जिनसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी में कोई रक्त संबंध नहीं रहा है।
आपने बच्चे के सामने तथ्य तर्क प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए, साथ ही किसी चिकित्सक की भी सलाह नहीं ली। यदि कन्या 7 पीढ़ी के अंदर नहीं आती थी, तो यह विवाह करना जायज़ था, कोई नुकसान न होता।
यदि आपने विवाह इसलिए नहीं करवाया कि हमारे यहां एक गोत्र में विवाह करने की परम्परा नहीं तो आपने रूढ़िवादी परम्परा को बिना जाने बोला। तर्क तथ्य व प्रमाण जब नहीं होते तो माता पिता अपनी बात मनवाने के लिए अपशब्दों का उपयोग व इमोशनल अत्यचार का सहारा लेते हैं। धमकी स्वरूप कहते है कि यदि इस लड़की से शादी की तो मेरा मरा मुंह देखोगे इत्यादि इत्यादि। हमें व उस लड़की में से किसी एक को चुनना पड़ेगा इत्यादि इत्यादी।
लड़का भीतर ही भीतर टूट जाता है, हृदय घावों से भर जाता है, क्योंकि उसे यह क्लियर ही नहीं कि उसके माता पिता सजातीय गोत्र में विवाह क्यों नहीं करने दे रहे।
विवाह तो कर लेता है दबाव में आकर, लेक़िन उसके बाद यदि वर्तमान पत्नी से विचार नहीं मिले और बात न बन पाई। तो स्वयं की जिंदगी की तबाही के लिए वो माता पिता को दोषी मानता है।
*बेटे के भीतर प्रश्न उठते हैं:-*
1- क्या मैंने कहा था कि मुझे पैदा करो? अपनी खुशी के लिए मुझे पैदा किया न कि मेरी ख़ुशी के लिए, मुझे पैदा किया गया।
2- बचपन से लेकर बड़े होने तक कुछ बनने के लिए पढो पढ़ो मानसिक दबाव बनाया। क्या कभी मेरी खुशी जाननी चाही कि मैं क्या चाहता हूँ?
3- मेरे जीवन का अहम निर्णय की मैं मेरा पूरा जीवन किसके साथ बिताऊंगा, वो भी मुझे नहीं लेने दिया। यहाँ भी मेरी ख़ुशी की परवाह नहीं की।
4-जब मेरे माता-पिता मुझे और मेरी खुशियों की परवाह करते नहीं, तो फिर मैं उनसे क्यों बात करूं? आपके बेटे का नफरत व क्रोध में भरा हुआ है। मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया।
*माता पिता के भीतर प्रश्न उठते हैं*
1- बचपन से लेकर कितने कष्ट उठाये इसके पालन पोषण में
2- खुद से पहले इसकी खुशी सोची
3- अरे इसके भले के लिए ही इसकी शादी सजातीय गोत्र में नहीं करने दी। दबाव बनाकर एक अच्छी लड़की से करवाई
4- अब इतनी छोटी सी बात के लिए माता-पिता से कोई नाराज होता है भला
👉🏻 खुद सोचिए, माता-पिता व सन्तान में मिलन हो तो कैसे?
*उपाय :-* सबसे पहले उसे फोन करके या मेसेज करके या पत्र लिखकर बेटे से माफी माँगिये। माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता।
गहन ध्यान में जाकर बेटे की आत्मा का आह्वाहन करके गुरुदेव की समाधि पर ले जाइए। गुरु से प्रार्थना कीजिये कि जो होना था वो तो हो गया। हमें क्षमा कीजिये व हम पिता पुत्र में फिर से सम्वाद करवा दीजिये।
मित्रभाव स्वयं में सही तरीके से जगाने के ज्ञान विज्ञान को समझने लिए निम्नलिखित दो पुस्तक पढ़िए:-
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढाने की कला
👉🏻 *आध्यात्मिक उपाय* - नित्य 3 माला गायत्री की जपें और साथ ही कम से कम 24 मन्त्र व अधिकतम एक माला निम्नलिखित *मित्रभाव बढ़ाने* वाले मन्त्र की जपें।
ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’
(यजुर्वेद 36/18 )
‘हमें विश्व के सारे प्राणी मित्र दृष्टि से नित देखें,
और सभी जीवों को हम भी मित्र दृष्टि से नित पेखें।
प्रभो!आप ऐसी सद्बुद्धि व विवेक हमें प्रदान करने की कृपा करें कि हम समस्त विश्व को अपना गुरु बना सकें।
(वेदार्थ पदांजलि,पृ.82)
👉🏻 24 मन्त्र गुरु मंत्र जपें, जिससे आपके भीतर आनन्द व आत्मियता का भाव उभरे
*ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*
👉🏻 पूजा के बाद सुबह शाम निम्नलिखित मन्त्र सबके कल्याण के लिए अवश्य बोलें
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
*अर्थ*- "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।" सर्वत्र शांति ही शांति हो।
👉🏻 भोजपत्र मिले तो अच्छी बात है, नहीं मिले तो साधारण पेपर में बेटे व बहु दोनों का नाम लाल या गुलाबी रंग के बॉल पेन से लिखें, जिनसे आप दोनों के बीच उपजी शत्रुता समाप्त हो जाये। फिर वह कागज एक शहद की डिब्बी में अंदर तक डुबो दें। भाव करें कि बेटे के साथ मित्रवत शहद जैसे मधुर रिश्ते बनेंगे। हाथ मे जल लेकर सङ्कल्प करें कि इन दोनो को जाने अंजाने में जो मैंने कष्ट दिए व दिल दुखाया उसके लिए यह सभी आत्माएं व लोग मुझे क्षमा करें। इन दोनों ने मुझे जाने अनजाने में जो दिल दुखाया व मुझे कष्ट दिया इन्हें मैं हृदय क्षमा करता हूँ। हे परमात्मा! मेरे बच्चों से सच्ची निःश्वार्थ मित्रता करवा दीजिये। यह सभी सुखी व आनन्दित रहें, और हमें सुख दें। हम भी सुखी व आनन्दित रहें व इन्हें सुख दें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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