Wednesday, 2 October 2019

कविता - *तुम जो देख व सुन रहे हो,* *वस्तुतः तुम वही भीतर से बन रहे हो*

कविता - *तुम जो देख व सुन रहे हो,* *वस्तुतः तुम वही भीतर से बन रहे हो*

मेरे बेटे,
आज गाँधी जी के जन्मदिन पर,
कुछ बालनिर्माण के सूत्र,
तुम्हें बताना चाहती हूँ,
कुछ सच्चाईयों से तुम्हें,
अवगत करवाना चाहती हूँ।
मेरे बेटे! तुम जो देख व सुन रहे हो,
वस्तुतः वही तुम भीतर से बन रहे हो।

गाँधी जी ने बचपन में,
हरिश्चन्द्र एक नाटक देखा,
बालमन में उनके,
उसका प्रभाव पड़ा,
सत्य अहिंसा अपनाने का,
एक मन में सङ्कल्प उभरा,
एक नाटक ने उन्हें,
जीवन की एक दिशा दी,
साधारण इंसान से उठाकर,
एक राष्ट्रपिता की पहचान दी।

मेरे बेटे!
तुम क्या देख रहे हो,
ज़रा इसपर विचार करो,
इन कार्टूनों से तुम क्या सीख रहे,
इस तथ्य की पहचान करो,
यह कार्टून तुम्हें भी,
एक कार्टून बना रहे हैं,
बे सर पैर की कल्पना वाली,
एक उड़ान उड़ा रहे हैं।
तुम जो देख व सुन रहे हो,
वस्तुतः वही तुम भीतर से बन रहे हो।

न पढ़ने वाले बच्चे,
प्रत्येक कार्टून के हीरो हैं,
न पढ़ने के बहाने,
वे सीरियल में ढूंढ रहे हैं,
दूध के दांत टूटे नहीं,
और गर्लफ्रैंड के चक्कर में है,
सबके घर में एक सुपरहीरो,
डोरेमॉन या हथौड़ी साथ में हैं।

कभी किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर,
क्या किसी सुपरहीरो को तुमने रहते देखा?
बिन पढ़े किसी को भी,
क्या तुमने कभी पास होते देखा?
भोजन की कल्पना करके,
क्या किसी का पेट भरते देखा?

मेरे बेटे,
रियल लाइफ़ के हीरो को जानो,
उनके जीवन के संघर्षों को पहचानो,
कैसे वे असली ज़िन्दगी में महान बने,
कैसे वो अपनी योग्यता को पहचान सके,
असली ज़िन्दगी में क्या क्या होता है यह पहचानो,
उनसे निपटने के सूत्र महापुरुषों से जानो।

मेरे बेटे,
यह ज़िन्दगी खूबसूरत बनाने से बनती है,
निज प्रयासों से ही उड़ान भरनी पड़ती है,
अच्छा देखो व अच्छा पढ़ो,
अपना व्यक्तित्व अच्छा गढ़ो,
अच्छी पुस्तकों से दोस्ती करो,
अपनी ज़िन्दगी को बेहतर करो,
अतः सावधान रहो,
अच्छा देखो व अच्छा सुनो,
क्योंकि तुम जो देख व सुन रहे हो,
वस्तुतः वही तुम भीतर से बन रहे हो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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