Tuesday, 1 October 2019

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण सत्संकल्प 18 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण सत्संकल्प 18 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

उत्तर-  युग निर्माण सत्संकल्प 18 वे सूत्र की व्याख्या:-

18- *"हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।*

कहानी - एक *सविता* नाम की कन्या का विवाह ऐसे घर में हुआ जहां महाभारत युद्ध आये दिन होता था। उसके पति तीन भाई व एक बहन थे। दोनों जेठ, जिठानी, ननद, सास, ससुर बात बात पर लड़ते झगड़ते। उनके बच्चे भी आपस में लड़ते थे । कपड़ो का व्यवसाय था जिसे सब भाई व पिता मिलकर चलाते थे। घर में सबका काम बंटा था, फ़िर भी युद्ध होता।

 *सविता* पग फेरे के लिए मायके आई, माँ से लिपटकर फूटफूटकर रोने लगी। बोली जबतक मेरे पति अलग नहीं रहेंगे मैं उसघर में वापस नहीं जाऊंगी। वो घर नहीं नर्क है। किसी को किसी की परवाह नहीं, सभी हृदय शून्य हैं।

*सविता की माता* गायत्री परिवार की साधिका थीं, उन्होंने बेटी को दूसरे दिन प्यार से बुलाया और एक पुस्तक उसके हाथ में दिया जिसका नाम था - *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* । इसे पढ़कर अमल कर ले, तू गंगा की तरह समस्त परिवार को पवित्र कर सकेगी।

बेटा, युगनिर्माण का आधारशिला इस सूत्र पर है - "हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा".. हम बदलेंगे व सुधरेंगे तो परिवार बदलेगा व सुधरेगा। तुझे उस घर का सूर्य बनना है और वहाँ से घृणा-द्वेष-वैमनस्य का अंधेरा मिटाना है। प्यार व आत्मियता का भाव जगाना है। उनकी आत्मा मरी नहीं है मात्र मूर्छित है, भाव सम्वेदना के जल पड़ते ही जागृत होगी।

लेकिन बेटे, सूर्य की तरह चमकना है तो तुझे जलना होगा। बीज से पौधा बनना है तो तुझे गलना होगा। पति के परिवार को नरक से स्वर्ग में बदल के,
पति को  तू जीवन का सर्वोत्तम उपहार दे सकती है।

चयन तुझे करना है कि पीठ दिखा के कायरों की तरह मैदान छोड़कर भागना है, या परिस्थिति का सामना करना है। पति को उसके माता पिता से अलग करके उसे और दुःखी करना है या उसके माता-पिता के आशीष व प्रेम भरे परिवार देकर सर्वसुखी करना है। वैसे बेटा, यदि तू देवता बन सकी तो उनका उद्धार हो जाएगा। तेरे ससुर जी ने बड़ी उम्मीद से तुझे हमसे माँगा था कि गायत्री परिवार से है, तू उनके परिवार का उद्धार अवश्य करेगी। तू उन्हें व हमें निराश नहीं करेगी।

सविता ने पूरी रात *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* पुस्तक पढ़ी, सुबह मुस्कुराते हुए मायके से विदा ली व ससुराल पहुँची।

सुबह 4 बजे उठकर पूजन रूम में दिया जलाकर दस माला गायत्री मंत्र की जपी। शक्ति व सामर्थ्य परिवार के उद्धार के लिए मांगा।

किचन पहुंचकर आलू के परांठे व चटनी नाश्ते में बनाकर बर्तन मांज कर रख दिये। साथ ही थोड़ा गुड़ मिलाकर एक छोटा मीठा परांठा बनाकर उससे *बलिवैश्व देव यज्ञ* कर दिया। दोनों जिठानी बड़बड़ करते हुए किचन पहुंची, बड़ी जिठानी की ड्यूटी नाश्ते की थी, और छोटी की बर्तन मांजने की। आते ही दोनो बोली सविता यह तो हमारा काम था, तुमने क्यों किया? तुम्हारा काम तो झाड़ू पोछा है।

सविता बोली, सुबह सब सो रहे थे। अतः वो काम तो उठने के बाद हो सकता है। किचन ख़ाली था, इसलिए इसे कर लिया। वैसे भी आप लोगों की *सेवा का सौभाग्य* गुरुदेव ने हमें दिया है, इस अवसर को हाथ से कैसे जाने दे सकती थी। कुछ चुटकुले से उन्हें हंसा भी दिया।

घर वाले आश्चर्य चकित थे कि आज सुबह के 8 बज गए और कड़वे वचनों को बोलकर मुर्गे घर मे न लड़े। किसी की तबियत तो ख़राब नहीं। अरे यह क्या नाश्ता तैयार और घर की तीनों बहुये हंस रही है। क़माल हो गया, सब खाये व टिफ़िन लेकर चले गए। बच्चों के परांठो पर चटनी से थोड़ी ड्राइंग बना दी सविता ने तो बच्चे खुश हो गए।

झाड़ू पोछा करके, ननद की ड्यूटी कपड़े धोने की थी उसकी मदद करने सविता चली गयी। अरे सविता भाभी आप क्यों आये, सुबह से नाश्ता से लेकर इतना काम किया अब यह भी। सविता बोली मेरी प्यारी ननद की *सेवा का सौभाग्य* कैसे छोड़ दूँ? बस दोनों बातें करते हुए कब कपड़े फैला दिए गए पता ही नहीं चला। जानती हो भाभी आजतक मुझसे घर में किसी ने इतने प्यार से बात नहीं की, जैसे आप करते हो।

सास जी जिन सामानों को ढूंढने व मांगने में रोज चिल्लाया करती थीं, आश्चर्य वो सब वस्तुएं उनके पास रखी थीं। उनका पूजन गृह सफाई हो रखी थी, जल पुष्प वगैरह थाल में सज़ा था, कम्बल का सुंदर आसन बिछा था। पूजन रूम में मन्त्र बॉक्स धीरे धीरे बज रहा था। मन आनन्द से भर गया।

ज्यादा कार्य से *सविता* थक जाती, सविता का पति कहता यह घर नहीं सुधरने वाला तुम क्यों इतनी टेंशन ले रही हो। क्या तुम बाई हो जो इतना काम करोगी? तुम मालकिन हो यह याद रखो। सबके बराबर तुम्हारा हिस्सा है। इस घर में कलह के कारण कोई मेड टिकती नहीं। सविता बोली, मेरे प्यारे पतिदेव तुम बस मेरा साथ दो सब सुधरेंगे। मम्मी बोली है सूर्य की तरह चमकना है तो जलना पड़ेगा। परिवार को मेहनती बनाकर सुधारना है तो मुझे मेहनत करना होगा, सुधरना होगा। आचरण से शिक्षण देना होगा। सबने सोचा दो चार दिन कोई अच्छी बहु की एक्टिंग कर सकता है लेकिन अब तो महीने होने को आये मगर सविता तो ज्यों की त्यों कार्य कर रही थी। ननद सबसे पहले बदली, वो सुबह उठकर भाभी के साथ जप करके किचन में हाथ बंटवाने लगी। दूसरा बदलाव ससुर जी मे आया। तीसरे नम्बर पर पति बदल गए। चौथे महीने सास बदल गयी। पांचवे व छठे नम्बर पर बच्चे बदल गए और घर मे बाल सँस्कार शाला चलने लगी। बच्चे सविता से सुनी नैतिक शिक्षा की कहानी माता-पिता को सुनाने लगे। अब तो जिठानियाँ भी छठे महीने बदल गईं। घर से शोर व झगड़ा ख़त्म हुआ तो पति लोग भी आनन्दित रहने लगे। सविता का पति सविता की तरह व्यवसाय में सबसे ज्यादा मेहनत करने लगा। उसे देखकर बड़े भाई भी मेहनती हो गए। एक वर्ष में व्यवसाय दुगुना हो गया।

लेकिन अब घर में दूसरे तरह के प्रेममय झगड़े शुरू हुए, *सेवा का सौभाग्य* व *आनंद* में सब इतने मगन हुए कि कोई कार्य सविता के लिए न बचा। सुबह उठी तो देखा सास जी ने पूजन घर सम्हाल लिया। किचन पहुंची तो बर्तन साफ़ व नाश्ता रेडी। कपड़े के पास पहुंची तो वो भी हो गया। अरे यह क्या एक मेड घर में झाड़ू पोछा कर रही थी।

सविता हैरान थी, खुद से पूंछ रही थी कि अब मैं क्या करूँ? तब उसने जिठानी के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया व आसपास के बच्चों को बुलाकर बाल सँस्कार शाला शुरू की, जिसमें ननद, दोनो जिठानी व सास भी सहयोग करती।

एक दिन सविता की माँ मिलने सविता के घर आई, सविता माँ के चरणों मे लिपट गयी। सारा ससुराल सविता की प्रशंसा की कसीदें पढ़ रहा। ससुर कृतज्ञ था। सविता का पति भी सविता के माता के चरणों को स्पर्श किया, अरे बेटा दामाद हमारे घर पैर नहीं छूते। सविता के पति ने कहा, आप देवी हो माँ, आपने साक्षात लक्ष्मी मुझे दी है। इसने घर के साथ साथ हमारा व्यवसाय भी उन्नत बना दिया।

सविता की माता ने कहा, धन्यवाद तो हमारे गुरुदेव युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव का है - जिन्होंने हम सबमें देवत्व जगाया है। जिन्होंने बताया कि *"हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है*। अब हमें गुरु का ऋण चुकाना है और यही क्रांति समाज मे लानी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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