Tuesday, 15 October 2019

करवाचौथ विशेष* - *मीरा और उनके सद्गुरु सन्त रैदास की कहानी

*करवाचौथ विशेष* - *मीरा और उनके सद्गुरु सन्त रैदास की कहानी*

एक बार मीरा कृष्ण की मूर्ति सहित रैदास के पास रोती हुई आई, बोली मैंने तो कृष्ण को पति माना लेकिन राणा जी से मेरा विवाह हो गया। घर वाले मुझे बहुत परेशान करते हैं, पूजन तक करने नहीं देते।

तब रैदास ने कहा- मीरा, श्री कृष्ण की मूर्ति तो पत्थर की है उसके भीतर कृष्ण का आह्वाहन कर सकती हो, तो
क्या चलते फिरते पति के भीतर कृष्ण का आह्वाहन नहीं कर सकती?  तुम्हारी कैसी भक्ति है जो पत्थर में भगवान देखती है लेकिन इंसान में भगवान नहीं देख सकती?

राणा जी की सेवा में कृष्ण सेवा नहीं ढूंढ सकती? जब वह पत्थर में भक्त के लिए उतरता है तो क्या भक्त की इच्छा पर उसके पति के भीतर प्रवेश न करेगा भला? उसे हृदय से जहां जिसमें बुलाओगी वो जरूर आएगा।

मीरा तुम सिर्फ भाव बदल लो,  फिर जहर भी कृष्ण का प्रसाद हो जाएगा, सर्प फूलों की माला और गालियां भी कीर्तन और हरिनाम हो जाएगा। तब यह सब पूजा में बाधक नहीं सहायक हो जाएगा।

मीरा, गुरु आदेश पाकर लौट पड़ी, उन्होंने आँशु पोंछे व सच्चे दिल से राणा जी मे ही कृष्ण का आह्वाहन कर, श्री कृष्ण चरणों की पूजा व सेवा शुरु कर दिया। जब तक राणा जी की श्रीकृष्ण की तरह सेवा करती रहीं।

राणा जी का तो स्वभाव ही बदल गया, सबकुछ जैसे नया नया हो गया। भक्ति की गंगा घर मे प्रवेश कर गयी। जो राणा जी मीरा के भजन से शुरू में लोगों के बहकावे में चिढ़ते थे, वही मीरा को नित्य भजन सुनाने का आग्रह करने लग गए।

 फिर तो कमाल ही हो गया, जब उन्हें पीने के लिए जहर दिया गया तो उन्होंने भक्ति पूर्वक भगवान को भोग लगाया, वो अमृत प्रसाद हो गया।

 जहरीले नाग को कमरे में भेजा गया तो वो फूल की माला में बदल गया।

जब मीरा को कोई गाली दे तो उन्हें सुनाई पड़े हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे कृष्ण।

अब सांसारिक व्यवधान उनकी आराधना में बाधक नहीं सहायक बन गए। मीरा सिद्ध हो गयी।

भक्ति हो तो मीरा बाई जैसी, जय श्रीकृष्ण🌹

🙏🏻श्वेता, DIYA

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