*करवा चौथ विशेष*
प्रश्न - *करवा चौथ के व्रत में जल पीना चाहिए या नहीं? यदि हाँ तो जल ग्रहण करने के नियम क्या है?*
उत्तर- भारतीय ऋषियों द्वारा वर्णित किसी भी व्रत में यदि निर्जल व्रत हठयोग का कहीं उल्लेख है तो वह कई दिनों के सतत अभ्यास से उसे सिद्ध करते हैं। जैसे विवाह तो विवाह के दिन ही होता है लेकिन उसकी पूर्व और बाद की तैयारी करनी पड़ती है।
जिस दिन व्रत है उसके एक सप्ताह पहले से रसवाले फलों का आहार 75% भोजन में सम्मिलित कर देते हैं। जिस दिन व्रत होता है उस दिन सरगी अर्थात सूर्योदय से पूर्व का मीठे आहार में गुड़ और नीम्बू का शर्बत, या खीरे का जूस या सफेद कुम्हड़े/पेठा (white pumpkin) का एक ग्लास जूस पीते थे। जिससे आंतो को 8 से 10 घण्टे के लिए पर्याप्त तरलता मिल जाये। फल इत्यादि ग्रहण करके अंत मे खीरा खाते थे जो गले मे तरावट रखता था। मिट्टी के बने प्राकृतिक घर व आसपास लगे वृक्षों की ताज़ी हवा शरीर की आद्रता को व्यथित नहीं होने देती थी। व्रत के दिन स्वर्ण व चांदी के असली जेवर उनकी मानवीय विद्युत ऊर्जा को बढ़ाते थे, नेचरल सोर्स से बने वस्त्र ऊर्जा को निखारते थे।
व्रत की शाम को हल्के सुपाच्य आहार से पारण व नेक्स्ट पांच दिन धीरे धीरे गरिष्ठ भोजन शुरू करते थे।
अब वर्तमान युग में स्त्रियां व्रत के पांच दिन पहले कोई परहेज नहीं करती न ही रस वाले 75% फल खाती हैं। फ़ास्ट फ़ूड व मैदे की बनी चीज़े हफ़्तों तक पेट मे सड़ती रहती है और शरीर का अतिरिक्त जल सोख लेती हैं। अब बिना परहेज वाली बहने सुबह सरगी में भी गुड़, फलों का रस इत्यादि पेट भर न लेकर मनमानी से फिल्मी तरीके से तलाभुना व बाजार का खाकर रहेंगी तो बीमार पड़ना तो सम्भव होगा।
एयरकंडीशनर जल सोखता है और पसीना रोकता है। पॉलिस्टर और नकली ज्वेलरी मानवीय विद्युत ऊर्जा को घटाते हैं और पानी सोख लेते हैं। पहले जमाने मे जरी चांदी की होती थी तो मानवीय ऊर्जा बढ़ाती थी, अब नकली जरी ऊर्जा अवशोषित करती है।
अतः उत्तम होगा जलाहर व रसाहार लेकर व्रत करें यदि कम से कम पांच वृक्ष घर की दीवार के पास न हों तो...फ़ायदा कम नुकसान ज्यादा होगा।
बिन जल के कोई व्रत न रखें। पहले दुनियां में वृक्ष वनस्पति ज्यादा थे और इंसान कम। इसलिए मौसम में आद्र्ता होती थी, बरसात अच्छी होती थी, ऑक्सीज़न शुद्ध होती है। अतः जब कोई निर्जला व्रत(बिन पानी के व्रत रहता था तो परेशानी नहीं होती थी)।
प्रदूषण के इस दौर में, जहाँ इंसान और गाड़ी ज्यादा हैं और वृक्ष वनस्पति कम है, ऐसे में 24 घण्टे बिन पानी के व्रत रहने की ग़लती न करें। वरना रात तक आंते सिकुड़ने लगेगी, गैस सीने में चढ़ेगी तो सीने में भयंकर दर्द होगा और सर दर्द से चक्कर खाकर गिरने की सम्भावना अधिक है।
अब आप बोलेंगी क़ि हमारे यहां तो निर्जल ही युगों से व्रत लोग रहते हुए आ रहे हैं। तो पहले लोग चूल्हे में खाना बनाते थे, अब गैस में। पहले मन्दिर पैदल जाते थे अब गाड़ी से। टीवी फ्रीज़ सबका उपयोग कर रहे हैं। जब सब बदला तो यह भी बदलिये।
अंग्रेज की स्त्रियां कोई निर्जल व्रत नहीं करती हैं, तो भी अंग्रेजों का औसत आयु अधिक ही होती है। वहम का कोई इलाज नहीं है। अतः धर्म में विश्वास रखिये, अन्धविश्वास नहीं करिये।
*करवा चौथ में जल पीने का नियम*
त्रिकाल सन्ध्या में तीन बार पूजन करें और एक कलश के साथ एक बड़ा ग्लास में जल रखें जिसे आपको पीना है। उसमें तुलसी दल और गंगा जल थोड़ा सा मिला लें। गायत्री मन्त्र जपने के बाद कलश का जल सूर्य या तुलसी माता को चढ़ाएं। थोड़ा जल बचा कर जो ग्लास रखी थी उसमें मिला लें। और जैसे चाय पीते हैं वैसे ही घूंट घूंट करके पी लें।
शाम को जैसा करवा चौथ पूजन विधि भेजा था, उसका पालन करते हुए चन्द्र को अर्घ्य, दीपयज्ञ इत्यादि करके चन्द्र दर्शन, चलनी से पति दर्शन इत्यादि करके पति के हाथों से जल व मीठा ग्रहण करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
प्रश्न - *करवा चौथ के व्रत में जल पीना चाहिए या नहीं? यदि हाँ तो जल ग्रहण करने के नियम क्या है?*
उत्तर- भारतीय ऋषियों द्वारा वर्णित किसी भी व्रत में यदि निर्जल व्रत हठयोग का कहीं उल्लेख है तो वह कई दिनों के सतत अभ्यास से उसे सिद्ध करते हैं। जैसे विवाह तो विवाह के दिन ही होता है लेकिन उसकी पूर्व और बाद की तैयारी करनी पड़ती है।
जिस दिन व्रत है उसके एक सप्ताह पहले से रसवाले फलों का आहार 75% भोजन में सम्मिलित कर देते हैं। जिस दिन व्रत होता है उस दिन सरगी अर्थात सूर्योदय से पूर्व का मीठे आहार में गुड़ और नीम्बू का शर्बत, या खीरे का जूस या सफेद कुम्हड़े/पेठा (white pumpkin) का एक ग्लास जूस पीते थे। जिससे आंतो को 8 से 10 घण्टे के लिए पर्याप्त तरलता मिल जाये। फल इत्यादि ग्रहण करके अंत मे खीरा खाते थे जो गले मे तरावट रखता था। मिट्टी के बने प्राकृतिक घर व आसपास लगे वृक्षों की ताज़ी हवा शरीर की आद्रता को व्यथित नहीं होने देती थी। व्रत के दिन स्वर्ण व चांदी के असली जेवर उनकी मानवीय विद्युत ऊर्जा को बढ़ाते थे, नेचरल सोर्स से बने वस्त्र ऊर्जा को निखारते थे।
व्रत की शाम को हल्के सुपाच्य आहार से पारण व नेक्स्ट पांच दिन धीरे धीरे गरिष्ठ भोजन शुरू करते थे।
अब वर्तमान युग में स्त्रियां व्रत के पांच दिन पहले कोई परहेज नहीं करती न ही रस वाले 75% फल खाती हैं। फ़ास्ट फ़ूड व मैदे की बनी चीज़े हफ़्तों तक पेट मे सड़ती रहती है और शरीर का अतिरिक्त जल सोख लेती हैं। अब बिना परहेज वाली बहने सुबह सरगी में भी गुड़, फलों का रस इत्यादि पेट भर न लेकर मनमानी से फिल्मी तरीके से तलाभुना व बाजार का खाकर रहेंगी तो बीमार पड़ना तो सम्भव होगा।
एयरकंडीशनर जल सोखता है और पसीना रोकता है। पॉलिस्टर और नकली ज्वेलरी मानवीय विद्युत ऊर्जा को घटाते हैं और पानी सोख लेते हैं। पहले जमाने मे जरी चांदी की होती थी तो मानवीय ऊर्जा बढ़ाती थी, अब नकली जरी ऊर्जा अवशोषित करती है।
अतः उत्तम होगा जलाहर व रसाहार लेकर व्रत करें यदि कम से कम पांच वृक्ष घर की दीवार के पास न हों तो...फ़ायदा कम नुकसान ज्यादा होगा।
बिन जल के कोई व्रत न रखें। पहले दुनियां में वृक्ष वनस्पति ज्यादा थे और इंसान कम। इसलिए मौसम में आद्र्ता होती थी, बरसात अच्छी होती थी, ऑक्सीज़न शुद्ध होती है। अतः जब कोई निर्जला व्रत(बिन पानी के व्रत रहता था तो परेशानी नहीं होती थी)।
प्रदूषण के इस दौर में, जहाँ इंसान और गाड़ी ज्यादा हैं और वृक्ष वनस्पति कम है, ऐसे में 24 घण्टे बिन पानी के व्रत रहने की ग़लती न करें। वरना रात तक आंते सिकुड़ने लगेगी, गैस सीने में चढ़ेगी तो सीने में भयंकर दर्द होगा और सर दर्द से चक्कर खाकर गिरने की सम्भावना अधिक है।
अब आप बोलेंगी क़ि हमारे यहां तो निर्जल ही युगों से व्रत लोग रहते हुए आ रहे हैं। तो पहले लोग चूल्हे में खाना बनाते थे, अब गैस में। पहले मन्दिर पैदल जाते थे अब गाड़ी से। टीवी फ्रीज़ सबका उपयोग कर रहे हैं। जब सब बदला तो यह भी बदलिये।
अंग्रेज की स्त्रियां कोई निर्जल व्रत नहीं करती हैं, तो भी अंग्रेजों का औसत आयु अधिक ही होती है। वहम का कोई इलाज नहीं है। अतः धर्म में विश्वास रखिये, अन्धविश्वास नहीं करिये।
*करवा चौथ में जल पीने का नियम*
त्रिकाल सन्ध्या में तीन बार पूजन करें और एक कलश के साथ एक बड़ा ग्लास में जल रखें जिसे आपको पीना है। उसमें तुलसी दल और गंगा जल थोड़ा सा मिला लें। गायत्री मन्त्र जपने के बाद कलश का जल सूर्य या तुलसी माता को चढ़ाएं। थोड़ा जल बचा कर जो ग्लास रखी थी उसमें मिला लें। और जैसे चाय पीते हैं वैसे ही घूंट घूंट करके पी लें।
शाम को जैसा करवा चौथ पूजन विधि भेजा था, उसका पालन करते हुए चन्द्र को अर्घ्य, दीपयज्ञ इत्यादि करके चन्द्र दर्शन, चलनी से पति दर्शन इत्यादि करके पति के हाथों से जल व मीठा ग्रहण करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
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