Sunday 6 October 2019

कविता - *दूसरे के दोष मत गिनना, स्वयं बुद्ध बनने में जुटना*

कविता - *दूसरे के दोष मत गिनना, स्वयं बुद्ध बनने में जुटना*

मेरे बेटे,
दूसरे के दोष मत गिनना,
स्वयं बुद्ध बनने में जुटना,
करुणा दृष्टि जगाकर के,
आत्मियता-विस्तार करते रहना।

पाप से घृणा जरूर करना,
पापी से घृणा मत करना,
शत्रु को समाप्त करने की जगह,
शत्रु का भाव को समाप्त करना।

डाकू अंगुलिमाल के दोष मत गिनना,
बल्कि स्वयं में बुद्धत्व जगाने में जुटना,
जब तुम बुद्ध बन जाओगे,
अंगुलिमाल को भी अहिंसक भिक्षु में बदल पाओगे।

राजा विश्वरथ के दोष व अहंकार मत गिनना,
बल्कि स्वयं को ऋषि वशिष्ठ बनाने में जुटना,
जिस दिन तुम ऋषि वशिष्ठ बन जाओगे,
राजा विश्वरथ को ऋषि विश्वामित्र में बदल पाओगे।

मेरे बेटे,
जब तक तुम्हारे भीतर चोर है,
तुम्हें सबमें चोर दिखेगा,
जब भीतर का चोर मर जायेगा,
तब कहीं कोई चोर तुम्हें न मिलेगा।

मेरे बेटे, याद रखो,
यदि तुम टकसाल बन गए,
तो तुमसे मिलकर ही,
लोगों का हृदय बदल जायेगा,
यदि तुम पारस बन गए,
तो तुम्हारे दर्शन से जंग लगा व्यक्तित्व भी,
स्वर्ण सा निखर जाएगा।

मेरे बेटे,
सूरज ने आज़तक,
अंधेरा नहीं देखा,
सच्चे साधु ने आज़तक,
लुटेरा नहीं देखा।

क्योंकि सूरज के निकलते ही,
अंधकार मिट जाता है,
क्योंकि सच्चे साधु के मिलते ही,
लुटेरा अहिंसक बन जाता है।

मेरे बेटे,
यदि तुझे बाहर अंधेरा मिल रहा है,
तो तेरे सूरज बनने में अभी कमी है,
यदि तुझे कोई लुटेरा दिख रहा है,
तो तेरी साधना अभी कच्ची है।

मेरे बेटे,
समझ गया न तू,
युगऋषि की अमरवाणी,
जो दूसरों का दोष गिनाए,
वो शिष्य है कितना अज्ञानी।

मेरे बेटे,
हम सुधरेंगे, तो युग सुधरेगा,
हम बदलेंगे, तो युग बदलेगा,
स्वयं सूरज बनेंगे, तो अंधकार मिटेगा,
स्वयं बुद्ध बनेंगे, तो अंगुलिमाल अहिंसक बनेगा,
स्वयं सीमेंट बनेंगे, तो संगठन टिकेगा,
स्वयं का अहंकार गलेगा, तो ईश्वर मिलेगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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