Saturday, 5 October 2019

प्रश्न - *मुझे षटचक्रध्यान के बारे में जानकारी दीजिये*

प्रश्न - *मुझे षटचक्र ध्यान के बारे में जानकारी दीजिये*

उत्तर- आत्मीय बहन, यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। जो ब्रह्माण्ड की शक्तियां है वो समस्त आपके भीतर हैं।

आइंस्टीन की परमाणु बम थ्योरी के अनुसार यदि एक बूँद पेट्रोल के समस्त परमाणुओं की शक्ति उद्वेलित की जाए तो उसमें इतनी शक्ति है कि एक वर्ष तक लगातार गाड़ी चलाई जा सकती है। इसी तरह कुछ धातुओं के परमाणुओं को उद्वेलित किया जा सके तो महाविस्फोट तैयार किया जा सकता है।

परमाणु बम बनाने की विधि सार्वजनिक नहीं की जा सकती, क्योंकि इसके दुरूपयोग के कारण महाविनाश को निमंत्रण देने का ख़तरा है। इसी तरह कुण्डलिनी जागरण व षट चक्र भेदन की पूर्ण प्रक्रिया सार्वजनिक किसी भी ग्रन्थ में नहीं की गई है बस केवल उनपर कुछ संकेत दिए गए हैं। विद्युत शक्ति से घर रौशन भी हो सकता है और असावधानी से घर तबाह भी हो सकता है। अतः आपकी जिज्ञासा शांत करने के लिए जानकारी तो दे रही हूँ मगर सम्पूर्ण क्रिया नहीं। गुरु के मार्गदर्शन में ही षट्चक्र भेदन साधना अत्यंत सावधानी पूर्वक करनी चाहिए।

📖 पुस्तक - सावित्री कुण्डलनी एवं तन्त्र(वांग्मय 15) ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें।

योग शास्त्रों में मनुष्य के अन्दर मौजूद षट्चक्रों का वर्णन किया गया है। यह चक्र शरीर के अलग-अलग अंगों में स्थित है तथा इनके नाम भी भिन्न है। शरीर के अन्दर यह सात चक्र है-
• मूलाधार चक्र
• स्वाधिष्ठान चक्र
• मणिपूर चक्र
• अनाहद चक्र
• विशुद्ध चक्र
• आज्ञा चक्र
• सहस्त्रार चक्र

।। *षट्चक्र विज्ञान*।।

धर्मशास्त्रों में भगवत् प्राप्ति (आत्मसाक्षात्कार) हेतु जिन विभिन्नयोग पद्धतियों (उपासना विधियों) का उल्लेख किया गया है उनमें से एक कुन्डलिनी योग  माना गया है।  इस साधना का षट्चक्र साधना के साथ अटूट सम्बन्ध है। जागृत कुन्डलिनी-शक्ति सुषुम्ना विवर में स्थित इन्हीं षट्चक्रों का भेदन करती हुई सहस्रार स्थित परमशिव से मिलने जाती है।

षट्चक्रों की साधना से पूर्व शिष्य को योग्यता टेस्ट पास करना होता है, तभी व शिष्य साधक आत्मसाक्षात्कार के लिए इस मार्ग को वरण कर सकता है। हमारे उपनिषदों तथा पुराणों के अतिरिक्तभवगत्पाद शंकराचार्य, आगमाचार्य पूर्णानन्दनाथ तथा जौनबुडूफ द्वारा भी षट्चक्रसाधना विषय पर सारगर्भित ग्रन्थ लिखेगए हैं। योगचूड़ामणि उपनिषद्, ध्यानबिन्दु उपनिषद्,योगशिखोपनिषद्, हंसोपनिषद्, योगकुन्डली उपनिषद्, षट्चक्र-साधना विषयक परम उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। पुराणों में देवीभागवत्महापुराण, लिंगपुराण तथा अग्निपुराण प्रसिद्ध हैं। श्रीशंकरांचार्य की सौन्दर्यलहरी तथा श्री पूर्णानन्दनाथ के‘षट्चक्रनिरूपण’ नामक ग्रन्थ में भी इस विषय पर पूर्ण प्रकाशडाला गया है। सर जौन वूडूफ द्वारा अपने ग्रन्थ ‘सर्पेन्टपावर’ मेंभी षट्चक्रों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।  इसी विषय पर *युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव  पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* ने *सावित्री कुंडलिनी एवं तंत्र* नामक वांग्मय 15 लिखा है। षट्चक्र-विज्ञानको समझने के लिए उससे सम्बन्धित विभिन्न अंगों केआध्यात्मिक रहस्य को समझना आवश्यक होता है। ये अंग हैं:-

(1) मेरूदण्ड में चक्र की स्थिति
(2) चक्र के कमल का रंग
 (3)कमलदलों की संख्या
 (4) दलों के वर्णाक्षर
(5) चक्र के यंत्र काआकार
(6) यंत्र का रंग
(7) यंत्र का बीज
(8) बीज का वाहन
(9) यंत्र के देवी-देवता
(10) यंत्र से सम्बन्धित तत्व
(11) चक्रके ध्यान का फल।

*प्रत्येक चक्र से सम्बन्धित विवरण दिया जा रहा है* –

(1) *मूलाधार-चक्र।*
इस चक्र का स्थान लिंग और गुदा के मध्य ‘कन्द’ भाग में है।चक्र का कमल रक्त वर्णी हैं इसके 4-दलों पर वं शं षं सं अक्षरहैं। चक्र के यंत्र का आकार चतुष्कोण (चतुर्भज) है। यंत्र का रंगनीला तथा बीज लं है। बीज का वाहन ऐरावत हाथी है। यंत्र केदेवता तथा शक्ति ब्रह्मा और डाकिनी है। चक्र का यंत्र पृथ्वी तत्वका द्योतक है। इस चक्र के ध्यान से वाचासिद्धि, दीर्घायु तथाकार्यदक्षता प्राप्त होती है।

(2) *स्वाधिष्ठान-चक्र।*
इस चक्र का स्थान लिंगमूल के सामने है। कमलदलों कीसंख्या-6 है। जिन पर बं से लं तक अक्षर हैं। इस चक्र के यंत्र काआकार अर्धचन्द्राकार है। यंत्र का रंग शुभ्र है। बीज वं है जिसकावाहन मकर है। यंत्र के देवता तथा शक्ति विष्णु और राकिनी है।यंत्र जल तत्व का घोतक है। इस चक्र के ध्यान से स्रजन एवंपालन करने की सामर्थ्य   हो जाती है। साधक में अहंकार-शून्यता के साथ ही गद्य-पद्य रचने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

(3) *मणिपूर-चक्र*
चक्र का स्थान नाभि के पीछे है। कमलदलों की संख्या 10 है।जिन पर डं से फं तक अक्षर हैं। दलों का रंग नीला है। चक्र के यंत्र का आकार त्रिकोणात्मक है। यंत्र उगते हुए सूर्य के समान रक्तवर्णी है।  यंत्र का बीज रं है तथा वाहन मेष है। यंत्र के देवतातथा शक्ति क्रमशः रूद्र तथा लाकिनी है। यह यंत्र अग्नितत्व काघोतक है। इस चक्र के ध्यान से सरस्वती की कृपा प्राप्त होती हैतथा साधक में पालन एवं संहार की क्षमता उत्पन्न होती है।

(4) *अनाहत-चक्र।*
यह चक्र हृदय के सामने स्थित है। इसके कमलदलों का रंगलाल है। कमलदलों की संख्या 12 है जिनपर कं से ठं  तक 12अक्षर है। चक्र का यंत्र षट्कोण है तथा धूम्रवर्ण का है। यंत्र काबीज यं है जिसका वाहन मृग है। यंत्र के देवता तथा शक्तिक्रमशः ईशान तथा काकिनी है। यह यंत्र वायुतत्व का द्योतक है।इसके ध्यान से व्यक्ति सृष्टि, स्थिति तथा संहार करने की क्षमताप्राप्त कर लेता है। साधक में परकाया प्रवेश करने की क्षमता तथा वृहस्पति के समान विद्वता प्राप्त हो जाती हैं।

(5) *विशुद्धि-चक्र।*
इस चक्र की स्थिति कंठ के सामने है। कमल दलों का वर्ण धूम्रतथा संख्या 16 है जिन पर अं से अः तक अक्षर अंकित है। इसचक्र का यंत्र पूर्ण चन्द्राकार है। यंत्र का बीज हं है। जिसकावाहन हाथी है। यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः सदाशिव तथाशाकिनी हैं। यह यंत्र आकाशतत्व का द्योतक है। चक्र के ध्यानसे साधक नीरोग, दीर्घजीवी, त्रिकालदर्शी तथा समस्त लोकों काकल्याण कर सकता है।

(6) *आज्ञा-चक्र।*
यह चक्र भ्रूमध्य में स्थित है। इसके कमल दल 2 है जिनका वर्णश्वेत है। इन दलों पर हं तथा क्षं अंकित है। इस चक्र का यंत्रअर्धनारीश्वर का लिंग (इतर लिंग) है जो विद्युत की चमक केसमान प्रकाशमान है। यंत्र का बीज प्रणव है जिसका वाहन नादहैं।  यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः अर्धनारीश्वर तथा हाकिनीहैं। यह यंत्र महतत्व का द्योतक हैं। इसके ध्यान से साधकसर्वदर्शी, सर्वज्ञ तथा परोपकारी बन जाता है तथा उसमेंपरकाया प्रवेश करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

(7) *सहस्रार-चक्र।*
मेरूदण्ड के सबसे ऊपरी सिरे (स्थान) पर एक हजारकमलदलों वाला श्वेतवर्णी सहस्रारचक्र स्थित है। स्वरों तथा व्यजनों अ से क्ष तक (संख्या-50) को 20 बार लिखकर इसेपूर्ण किया गया है। इस चक्र में परमशिव विराजमान रहते हैंजिनसे मिलने के लिए मूलाधारस्थित कुन्डलिनी-शक्ति सदैवआतुर रहती है। मूलाधार से कुण्डलिनी का उत्थापन करकेषट्चक्रों का भेदन करते हुए सहस्रार में विद्यमान परमशिव सेमिलाना ही शक्ति उपासक का चरम लक्ष्य होता है। इस कमलकी कर्णिका में सम्पूर्ण चन्द्रमण्डल विद्यमान रहता है, इसमण्डल के मध्य में त्रिकोण है जिसके मध्य में शून्य (बिन्दु)अवस्थित हैं। यहॉं पहुँचकर साधक को जीवात्मा तथा परमात्माका अभेदज्ञान प्राप्त हो जाता है। यही शक्ति साधना का अन्तिमसोपान है।

*उपरोक्त विवरण ‘षट्चक्र निरूपण’नामक ग्रन्थ पर आधारित है*।प्राचीन ग्रन्थों में मूलाधार से सहस्रार तक के देवी-देवता क्रमशः,गणेश-सिद्धि, बुद्धि, ब्रह्मा-सरस्वती, विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती,जीव-प्राणशक्ति तथा आज्ञा में गुरू तथा ज्ञान शक्ति है।

*मेरूदण्ड में स्थित विभिन्न चक्रों के सम्बन्ध में जो विवरण दिया गया है उससे जिज्ञासु व्यक्ति के मन में सन्देह उत्पन्न होना स्वाभाविक है क्योंकि यदि मानव शरीर की चीरफाड़ तथामेरूदण्ड की सूक्ष्म जॉंच-पड़ताल की जायेगी तो विभिन्न चक्रों के स्थानों पर कमलदल, दलों पर लिखे अक्षर तथा हाथी, मकर,भेड़ आदि पशु भी नहीं दिखाई देंगे। वास्तविकता यह है कि योगका यह विषय अत्यन्त रहस्यमय है जिसकी थाह केवल उत्कटयोग-साधना से अर्जित विशुद्ध ज्ञानचक्षुओं से ही पाई जा सकती है। सामान्य व्यक्तियों के लिए जो विषय अविश्वसनीय है वहीयोगी-साधक के लिए योगक्षेम का कारण बन जाता है क्योंकि कुण्डलिनी शक्ति-जागरण तथा षट्चक्रों का रहस्य समझने के लिए गहन साधना व योग्यता की आवश्यकता होती है। पीएचडी में प्रवेश के लिए पोस्ट ग्रेड्यूएशन की योग्यता तो चाहिए ही, इसी तरह यह सब ज्ञान समझने के लिए गहन साधनात्मक शरीर, ध्यानी व स्वाध्यायी मन की योग्यता चाहिए।*
सत्गुरूओं द्वारा बताया गया है कि षट्चक्रों के सम्बन्ध में दिया गया विवरण विभिन्न विज्ञानों यथा शरीर विज्ञान, रसायन विज्ञान,तत्वविज्ञान तथा ध्यान विज्ञान की क्रियाओं तथा प्राप्त परिणामों पर आधारित है जिनकी सत्यता पर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता है। विभिन्न चक्रों के सम्बन्ध में कुछ क्रियाओं के परिणाम इस प्रकार है -

(अ) *चक्रों के कमलदल प्रतीकात्मक है* - शरीर-विज्ञानी चक्रों को 'प्लेक्सस' कहते हैं। जिन भागों से विभिन्न नाड़ी पुंज निकलते हैं उन्ही स्थानों पर षट्चक्रों की स्थिति भी है। अतःषट्चक्रों के चित्रों में कमलदलों के अगले भाग से निकले हुए नाड़ी समूहों को दिखाया जाता है। कहा जा सकता है कि योगशास्त्र के कमल-दल ही शरीरशास्त्र के नाड़ीपुंज (प्लेक्सस)हैं।

(आ) *कमलदलों के विभिन्न रंग* - मानवरक्त में विभिन्न तत्वों(पृथ्वीतत्व से आकाशतत्व तक) के मिश्रण से जो नया रंग उत्पन्न होता है वही रंग उस तत्वस्थान स्थित कमलदल का मानाजाता है। जैसे रक्त में मिटृी मिलाने से उसका रंग मटमैला लगताहै। मणिपूरक चक्र अग्नितत्व का द्योतक है। रक्त को आग मेंगरम करने पर उसका रंग, हल्का नीला हो जाता है। अतः इसचक्र के कमलदलों का रंग भी हल्कानीला माना गया है। इसीप्रकार अन्य चक्रों पर भी यही प्रक्रिया लागू होती है तथा वैसे हीरंगो के कमलदल भी मान लिए गए हैं।

(इ) *चक्रों के यंत्र* (त्रिकोण, चतुष्कोण आदि) - विभिन्न यंत्रो के आकार उस चक्र से सम्बन्धित नाडि़यों पर वायु के आघात सेबनते हैं। अर्थात प्रत्येक चक्र पर विद्यमान तत्व के स्थान पर हवाके दबाव से नाडि़यां जो आकार धारण कर लेती हैं वही आकारउस चक्र का यंत्र माना गया है। उदाहरणार्थ मणिपूरचक्र अग्नितत्व का द्योतक है। जलती हुई आग पर वायु का धक्कालाने से उसका रूप त्रिकोणाकार हो जाता है जिसका शीर्ष(मुख) ऊपर की तरफ होता है। इसी तरह अन्य चक्रों पर भीसमझना चाहिए।

(ई) *बीजों का वाहन*-  जिन चक्रों पर वायु की गति जिनपशुओं की गति के समान पाई जाती है उस चक्र पर उसी पशुको वाहन मान लिया गया हैं। उदाहरणार्थ मूलाधार में पृथ्वी तत्वके भार के कारण वायु की गति धीमी रहती है तो उसकी तुलनाहाथी की गति से की गई है। अनाहत चक्र में वायु तत्व विद्यमानहैं। वायुतत्व में वायु की गति मिल जाने से वहॉं पर वायु की गतिहिरन की तरह तीव्रता से उछाल मारती सी प्रतीत होती है।

इसी प्रकार कमलदलों के अक्षरों, यंत्रो के तत्वों तथा तत्वों केबीजों के सम्बन्ध में भी समझा जा सकता है। विस्तारभय सेयहॉं पर उनका वर्णन नहीं किया गया है। षट्चक्रों का यह विषयअत्यन्त विस्तृत है जिसका सम्यक ज्ञान समुचित योगाभ्यास सेही प्राप्त हो सकता हैं। षट्चक्र एक योगी के लिए ‘मील कापत्थर' (माइलस्टोन) की तरह होते हैं जहॉं पर पहुँचकर वहआश्वस्त हो जाता है कि उसने अबतक मंजिल की तरफ कितनीदूरी तय करली है तथा कितनी दूरी तय करनी शेष रह गई हैं।साधक का यह क्रम जन्म- जन्मान्तरों तक तब तक चलतारहता है जब तक वह सहस्रार में ‘कुण्डलिनी’ का  ‘शिव’ के साथसंयोग नहीं करा देता।

बरगद व पीपल इत्यादि के बीज लेकर कोई तर्क-कुतर्क करे कि इससे कई फुट बड़ा व विशाल वृक्ष निकल ही नहीं सकता, इसे तोड़कर दिखाओ, एक्स-रे करके दिखाओ। सम्भव ही नहीं है। किसान जानता है कि बीज को वृक्ष बनाने के लिए उसकी खेती कैसे करनी है। इसी तरह बीज रूप में विद्यमान शक्ति चक्र को चीरफाड़ व तर्क कुतर्क से नहीं जाना जा सकता। सद्गुरु जानते हैं कि उसकी खेती-बाड़ी ध्यान प्रक्रिया से कैसे करनी है।

अंतर्जगत की खेती में केवल धारणा करते हुए सम्बन्धित चक्र पर ध्यान करने के अलावा अन्य कोई बाह्य तरीका नहीं है। ध्यान द्वारा आप शरीर के किसी भी अंग के अणुओं-परमाणुओं में विष्फोट करके ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। अंतर्जगत की चेतन प्रयोगशाला में जो कुछ भी होगा वह मात्र ध्यान के माध्यम से होगा, जिसमें अत्यंत एकाग्रता धारणा(बीज) पर करना फिर उस पर ध्यान(पौधा) स्वतः घटित होना फिर समाधि(फल) तक पहुंचा जा सकता है।
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🙏🏻 *सबसे आसान तरीका समस्त षट्चक्रों के भेदन, कुंडलिनी जागरण का है गुरूकृपा प्राप्त करना*:-

*ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् ।*
 *मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ।।*

हम सबसे सरल मार्ग गुरुकृपा का अवलम्बन कर रहे हैं, मेला में पिता साथ जाए तो न भय होता है न पैसे खुद खर्चने की जरूरत पड़ती है। ऐसे की जब साधना में सद्गुरु कृपा हो तो न भय होता है और न ही कठिन साधना करने की आवश्यकता होती है। गुरुचरणों के ध्यान से सबकुछ प्राप्य है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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