Friday, 25 October 2019

प्रश्न - *धनतेरस पर धन पूजा क्यों करते हैं, दीपावली में बच्चों को कैसे समझाएं??*

प्रश्न - *धनतेरस पर धन पूजा क्यों करते हैं, दीपावली में बच्चों को कैसे समझाएं??*

उत्तर - कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

भारतीय दर्शन कहता है:-
धन गया तो कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य गया तो थोड़ा सा गया,
अगर चरित्र गया तो सब कुछ चला गया।

जीवन लक्ष्य देवता - *नारायण*
धन देवता - *लक्ष्मी*
स्वास्थ्य देवता - *धन्वंतरि*
चरित्र व बुद्धि के देवता - *गणेश*
धन प्रबन्धन देवता - *कुबेर*

अर्थात तीनों धनों को संवारने की सद्बुद्धि देने के देवता गणेश और तीनों धनों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की हम सब पूजा करते हैं।

माता लक्ष्मी की पूजा (जिनको धन की देवी के नाम से जाना जाता है) को बहुत आदर-सम्मान से धनतेरस व दिवाली के पर्व पर पूरे भारत-वर्ष में पूजा जाता है।

 *नर से नारायण बनना हम सबका जीवन लक्ष्य है। लक्ष्मी जी उन तक पहुँचने का एक साधन और गणेश उस लक्ष्य तक पहुँचाने हेतु सद्बुद्धि व चरित्र निर्माण के स्रोत हैं। भगवान कुबेर धन प्रबन्धन को प्रेरित करते हैं- धन कब कहाँ कैसे क्यों उपयोग लेना है? भगवान धनवंतरी जो आयुर्वेद के देवता हैं उनकी उत्तपत्ति भी समुद्रमंथन से हुई थी। धन्वंतरि कहते हैं कि - स्वास्थ्य पाने हेतु भी प्राथमिकता दी जाए*।

*अष्टलक्ष्मी नाम*

1-आदि लक्ष्मी
२-धन लक्ष्मी
3- विद्या लक्ष्मी
4- धान्य लक्ष्मी
5- धैर्य लक्ष्मी
6- संतान लक्ष्मी
7- विजय लक्ष्मी
8- राज(सौभाग्य) लक्ष्मी

ये आठ प्रकार के धन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं प्रत्येक व्यक्ति में इन आठ धन अधिक या कम मात्रा में होते हैं। हम उन्हें कितना सम्मान करते हैं, उनका उपयोग करते हैं, हमारे ऊपर निर्भर है। इन आठ लक्ष्मी की अनुपस्थिति को- अष्ट दरीद्रता कहा जाता है। चाहे लक्ष्मी है या नहीं, नारायण को अभी भी अनुकूलित किया जा सकता है। नारायण दोनों के हैं - लक्ष्मी नारायण और दरिद्र नारायण!
दरिद्र नारायण परोसा जाता है और लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। पूरे जीवन का प्रवाह दरिद्र नारायण से लक्ष्मी नारायण तक - दुख से समृद्धि तक, जीवन में सूखेपन से दैवीय अमृत तक जा रहा है।

स्वर्ण या चाँदी की वस्तु जो सौभाग्य सूचक है वह लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। समुद्रमंथन में लक्ष्मी जी स्वर्ण,चांदी व मनीमणिक्य लेकर प्रकट हुई थी, अतः यह सब उन्हीं का स्वरूप माना गया। अतः इनका प्रतीक पूजन कर उनका आभार व्यक्त किया जाता है।

उपरोक्त ज्ञान का सार ही त्रिपदा गायत्री मंत्र है, जो नर से नारायण बनने का मार्गदर्शन है।

गायत्री मंत्र : *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥*

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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