Monday 7 October 2019

प्रश्न - *दशहरे के अवसर पर "श्री राम" के साथ "रावण" की प्रसंशा के गुणगान के पोस्ट भी बहुत आते हैं? इनमें से कौन श्रेष्ठ है? युवा कन्फ्यूज़ हो जाते हैं?*

प्रश्न - *दशहरे के अवसर पर "श्री राम" के साथ "रावण" की प्रसंशा के गुणगान के पोस्ट भी बहुत आते हैं? इनमें से कौन श्रेष्ठ है? युवा कन्फ्यूज़ हो जाते हैं?*

उत्तर- आत्मीय बेटे,

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ अच्छाई व कुछ बुराई होती है। मानारावण की अच्छे गुणों की लंबी लिस्ट है, उसके पिता का कुल व शिक्षण है। मगर उसकी माता कैकसी के अवगुण उसके व्यक्तित्व को दीमक की तरह खा गए।

 श्रीराम तो स्वयं अच्छाई की व मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं।

रावण के पिता उसे कुल मर्यादा के अनुसार ब्राह्मण व ज्ञानी बनाना चाहते थे, ऋषि परम्परा के अनुसार मर्यादित जीवन की शिक्षा देते थे। लेकिन रावण की माता कैकसी रावण को देवताओं व ब्राह्मणों के प्रति भड़काती, व उसे तीनों लोक में आधिपत्य स्थापित करने को प्रेरित करती।

लोग स्वयं ख़ुश रहें इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन दूसरों से ज्यादा ख़ुशी रहने के लिए दूसरों को कष्ट दें कर दुःखी करें इसमें बुराई है।  स्वयं दौड़कर टॉप 1 रैंक लाओ कोई बुराई नहीं, लेकिन दूसरों की टाँग तोड़ दो कि कोई अन्य दौड़ ही न पाए, इसमें बुराई है। रावण कैकसी के कहने पर सबसे ज़्यादा महान बनने के चक्कर में ऋषियों की हत्या करने लगा जिससे देवताओं को उनका हिस्सा न मिले वो कमज़ोर हों जाएँ। उनकी स्त्रियों व कन्याओं को जबरजस्ती हरण करके उन पर दबाव डालकर विवाह कर लेता था।

श्रीराम जब जंगलों में वनवास के दौरान जगह जगह हड्डियों के बड़े बड़े पहाड़ को देखा तो पूँछा कि यह क्या है। सभी ऋषियों ने राक्षस राज रावण की क्रूरता के किस्से सुनाए। बोला वो पिता के ब्राह्मण कुल की परमार्थ वादी परम्परा को छोड़ दिया, माता कैकसी और राक्षस मामा के मार्गदर्शन में देवत्व का विनाश कर  राक्षसीअंधकार  का राज कायम करने के लिए निम्न स्तर पर गिर गया। तब श्रीराम ने *निशिचर हीन महि करूँ* - धरती को राक्षसों से मुक्त कर दूंगा। राम ने रावण से दुश्मनी लोक कल्याण हेतु मोल ली।

रावण को इस सङ्कल्प की खबर गुप्तचर से मिल चुकी थी। सुर्पनखा रावण की ही बहन थी, राम से विवाह की इच्छा जागृत व्यक्त की, राम बोले एक पत्नी व्रत है। तो सीता की हत्या करने चल पड़ी। लक्ष्मण ने नाक कान काट दिए। रावण चाहता तो युद्ध करके सीता को जीत सकता था, लेक़िन वो वीरता की जगह कायरतापूर्ण चोरी छल का सहारा लेकर सीता को उठा ले गया। क्योंकि सीता जी को वरदान प्राप्त है, उनका पति अजेय होगा व चक्रवर्ती सम्राट रहेगा। राम को बिना सीता के सतीत्व के तप को तोड़े बिना हराया नहीं जा सकता था। राम रावण युद्ध हुआ, रावण मारा गया।

मरते वक़्त रावण से शिक्षा लेने जब लक्ष्मण पहुंचे तो रावण ने लक्ष्मण को बोला जानते हो ज्ञान में, कुल में, बल में, तप में सब तरह से मैं वनवासी राम से श्रेष्ठ था, जानते हो मैं राम से क्यूँ हारा? क्योंकि मैं धर्म से पथ भ्रष्ट हुआ व अमर्यादित हो गया, चरित्रहीन व अहंकार ने मेरे व्यक्तित्व को खा लिया। राम ने नहीं बल्कि उनकी मर्यादा, श्रेष्ठ चरित्र व लोकल्याण की भावना ने मुझे परास्त कर दिया।

*वस्तुतः यह युद्ध चरित्रहीन अमर्यादित रावण के चरित्र व चरित्रवान मर्यादापुरुषोत्तम राम के चरित्र के बीच हुआ, युद्ध में राम का चरित्र विजयी हुआ। इसलिए श्रीराम चरित्र पूजा जायेगा और मेरा रावण का चरित्र  जलाया जाएगा। यह युद्ध व्यक्ति के बल व ज्ञान के बीच नहीं हुआ था, यह युद्ध तो दो चरित्र-चिंतन-व्यवहार के बीच हुआ था।*

लक्ष्मण जी ने कहा, जो ज्ञान तुम अभी कह रहे हो, वो पहले क्यों याद न रहा। रावण बोला मेरे शरीर के रक्त के साथ मेरी माता का दूध व प्रभाव भी बह गया। अभी मेरा पिता मेरे व्यक्तित्व में झलक रहा है, जो मेरी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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*आपको व आपके परिवार को दशहरे के शुभ पर्व की बधाई, हम सबके भीतर श्रीराम चरित्र जगे यही शुभकामनाएं हैं।*
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🙏🏻श्वेता, DIYA

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