Wednesday, 16 October 2019

प्रश्न - *महिलाओं को मासिक शौच में करवा चौथ व्रत व पूजन करना चाहिए या नहीं ?*

प्रश्न - *महिलाओं को मासिक शौच में करवा चौथ व्रत व पूजन करना चाहिए या नहीं ?*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।
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*करवा चौथ में मासिक आशौच है तो दिन का पूजन व संकल्प मानसिक करें व मानसिक स्तर पर शान्तिकुंज में रखे शक्ति कलश का ध्यान करके मौन मानसिक जप प्रारम्भ कर दें। रात्रि में चन्द्रोदय के ठीक आधे घण्टे पूर्व घर के किसी सदस्य से तुलसी के पेड़ के नीचे की मिट्टी, गंगाजल व गौ अर्क बाल्टी जल में मिलाकर सर धोकर नहा लें, नहाते/स्नान करते समय गंगा जी का ध्यान करते हुए बोलें:-*

*गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।*
*नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।। *

*फिर साफ सुथरे धुले वस्त्र पहन कर चन्द्र दर्शन पति के साथ करें। पति से पूजन की थाली तैयार करवा लें व दीपक प्रज्ज्वलित करवा लें। चन्द्रोदय पर चन्द्र को अर्घ्य दें, व पिछले पोस्ट में बताई विधि से चन्द्र का पूजन करें व करवा चौथ व्रत विधि सम्पन्न करें। नहाने के बाद दो घण्टे के अंदर समस्त पूजन क्रम कम्प्लीट कर लीजिए। केवल चन्द्र के समक्ष का समस्त पूजन करना है, घर के पूजन स्थल का स्थूल पूजन सुबह शाम का पतिदेव को ही करने को कहे। आप मौन मानसिक जप सम्पन्न करें।*
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*माता भगवती ने ही सृष्टि की रचना की है, स्त्री के कॉम्प्लेक्स प्रजनन सिस्टम का सॉफ्टवेयर उन्होंने ही स्थापित किया है, जिससे सृजन चलता रहे। अतः उन्हें आपकी मनःस्थिति व परिस्थितियों का भान है। आप से तो माता चेतन स्तर पर स्वयं जुड़ी हैं, शरीर पर आशौच लागू होता है, मन व आत्मस्तर पर नहीं।*

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

पीरियड्स/मासिक आशौच के दौरान व्रत करना है तो व्रत शुरू होने से पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पियें। क्योंकि पूरे दिन हाइड्रेट यानि शरीर में जल की मात्रा संतुलित रहने से आपको पीरियड्स के दौरान पेट में दर्द नहीं होगा। सुबह सरगी में सेब और नट्स जरूर खाएं। इससे पेट में गैस की समस्‍या नहीं बनेगी और आप में एनर्जी भी बनी रहेगी। कम से कम तीन बार जल सिप कर करके पी लीजिये। 

पीरियड के दौरान शरीर का एनर्जी लेवल कई गुना तक कम हो जाता है। इस वजह से शरीर में थकान और कमजोरी आना जाहिर सी बात है। अपने शरीर को रिपेयर करने के ल‍िए जरुरी है कि आप एक भरपूर नींद दोपहर को लें लें। इससे थोड़ा रिफ्रेश सा महसूस होगा। मौन मानसिक जप करते रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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