Tuesday, 26 November 2019

प्रश्न- *जी, अगर अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थिविसर्जन, श्राद्ध-तर्पण कर्म न करके, केवल मृत शरीर को चील, कौओं के आगे डाल दिया जाए तो क्या होगा? पर्यावरण की दृष्टि से भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी क्या होगा कृपया बताएं* , *यह भी बताएं कि आपने अपनी मृत्यु के बारे में क्या सोचा है?*

प्रश्न- *जी, अगर अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थिविसर्जन, श्राद्ध-तर्पण कर्म न करके, केवल मृत शरीर को चील, कौओं के आगे डाल दिया जाए तो क्या होगा? पर्यावरण की दृष्टि से भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी क्या होगा कृपया बताएं* , *यह भी बताएं कि आपने अपनी मृत्यु के बारे में क्या सोचा है?*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य यदि जीवित अवस्था में मुक्त व दानी न हुआ तो वह आत्मा भटकेगी। अतः उसके भटकाव को रोकने के लिए अंत्येष्टि क्रिया करवाई जाती है। उसके नाम पर दान पुण्य करके, कथा श्रवण व स्वाध्याय करके उसे मुक्ति की ओर अग्रसर किया जाता है।

जीवित अवस्था में मनुष्य की जाति व परम्परा अलग अलग हो सकती है। मरने के बाद कोई अंतर नहीं होता। सबको संस्कृत मन्त्र से श्रद्धा अर्पण करो या उर्दू-फ़ारसी आयतों से श्रद्धा दो या अंग्रेजी में बाइबल के वाक्यों से श्रद्धा दो। मृतात्मा को परिवार की श्रद्धा चाहिए ही होती है जिससे उसे तृप्ति मिले।

सांसारिक मृतात्मा का मोह शरीर से भंग नहीं होता, वह 13 दिन तक शरीर के आसपास ही मंडराती रहती है। उसे यह कतई पसन्द नहीं होता कि उसके परिवार वाले उसके शरीर का निरादर करें। जब विधिवत फूलों से सजा के अर्थी निकलती है और पूर्ण विधि विधान से उसकी अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थि विसर्जन व श्राद्ध-तर्पण न हुआ तो आत्मा भड़क उठती है व प्रतिशोध भावना से कुपित हो जाती है। जिसे पितृदोष कहते हैं।

सिद्ध योगियों व मुक्त आत्माओं को केवल अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थि विसर्जन व श्राद्ध-तर्पण की जरूरत नहीं होती। इसलिए योगियों के शरीर को पत्थर से बॉन्ध कर गंगा जल में डुबो दिया जाता है, जिसे मछलियाँ ख़ाकर धीरे धीरे नष्ट कर देती हैं।

मनुष्य के शरीर को खुले में चील कौवों को डालना उचित इसलिए नहीं है कि मनुष्य का समस्त शरीर रोगों का घर होता है, आत्मा निकलते ही तेजी से सड़ता है यदि दो दिन के अंदर वह पूर्णतया पक्षियों के द्वारा खाया न गया तो हवा में शरीर की सड़न से उत्तपन्न विषाणु आसपास के इलाके के पशु, पक्षी व इंसानों को रोगी व कोढ़ी बना देंगे।

कैसे प्रेतात्मा मृत शरीर व उससे जुड़ी घटनाओं को देखती व समझती है, यह निम्नलिखित वीडियो में स्वयं सुने। एक लेदर का सामान बेंचने वाले मृतात्मा प्रेत ने जो घटनाक्रम बताया था उसे स्वयं सुने।

https://youtu.be/OYyh12rL6mU

अतः बिना किसी व्यक्ति की अनुमति के उसका शरीर दान हॉस्पिटल में न करें, न ही उसके मृत शरीर का अपमान करें। श्रद्धा के साथ उसकी अंतिम विदाई करें।

जब जिस व्यक्ति ने पूर्ण होश हवास में देह भाव से परे होकर आत्म स्थित अवस्था मे स्वयं के देहदान का फार्म भरा हो, उसी व्यक्ति की मृत्यु पर हॉस्पिटल में फोन कर उसका देह समर्पित करें।

*उदाहरणस्वरुप आप यह जानना चाहते हैं* - *हम क्या करेंगे? मृत्यु के सम्बंध में हमारी तैयारी क्या है?* तो भाई हमने अपना श्राद्ध व तर्पण  स्वयं कर लिया है। विधिवत शान्तिकुंज से वानप्रस्थ ले रखा है। अपनी देहदान नहीं करेंगे, हम केवल अपने समस्त अंगदान करेंगे। मृत्यु के पश्चात हमारे समस्त उपयोगी अंग हॉस्पिटल लेकर बचे अनुपयोगी शरीर की अस्थि व चमड़ी को सिलकर मेरे परिवार वालों को दे देंगे। मेरे परिवार वाले उसका अंत्येष्टि सँस्कार करेंगे जिससे मेरे शरीर का अंतिम चिता यज्ञ पूर्ण हो। उसके बाद वो अपनी श्रद्धा अनुसार जो दान पुण्य करना चाहे करें। मैंने स्वयं के लिए अक्षय पुण्य की व्यवस्था स्वरूप वृक्षारोपण कर रखा है, सरकारी लाईब्रेरी व स्कूलों में साहित्य दान की व्यवस्था कर रखी है, बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट के ब्याज़ से अनवरत दान होता रहेगा। तो मैं जियूँ या मरूँ दान पुण्य ऑटोमेटिक मेरे नाम पर चलता रहेगा।

जिन भाई बहनों को गुरुचेतना से जोड़ा है, उनके द्वारा किये पुण्य का भी एक अंश मिलता रहेगा। साथ ही समस्या समाधान की समस्त पोस्ट इंटरनेट, फेसबुक व ब्लॉग में सुरक्षित हैं, उनसे भी जिन जिन लोगों का भला होगा, उससे भी पुण्य मिलता रहेगा।

🙏🏻 *जिस तरह जीने की तैयारी होती है, बुद्धिमान व्यक्ति मरने की भी पूरी तैयारी रखता है😇 मृत्यु से डरता नहीं है।* 🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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