प्रश्न - *श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति हेतु मन्त्र बताइये*
उत्तर - निम्नलिखित मन्त्र का रोज पूजन में सुसन्तति की शीघ्रता से प्राप्ति के पूजन में शामिल कर लीजिए। षट कर्म व देवावाहन के बाद एक बार इन मन्त्रो का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करना है।
॥ स्वस्तिवाचनम्॥ - स्वस्ति + वचन
स्वस्ति का तात्पर्य है कल्याणकारी, वाचन अर्थात् वचन बोलना ।। सभी के कल्याण की कामना करते हुये मन्त्र के वचन बोलना। मन्त्र वह शब्दों का गुंथन होता है और एक प्रकार का चुम्बक की तरह कार्य करता है। जो जैसा मन्त्र पढ़ता है उसके आसपास ब्रह्मांड से वैसे ही शक्तियां आकृष्ट होकर उसके आसपास आ जाती हैं।मनोवान्छित फल देती है। इसे आकर्षण का सिद्धांत (Law of attraction) कहते हैं। जैसे शॉप में जो ऑर्डर करोगे वही मिलेगा वैसे ही ब्रह्माण्ड में जैसा मन्त्र भावपूर्वक पढोगे वैसी शक्तियाँ आकर्षित होंगी।
*ॐ गणानां त्वा गणपति * हवामहेप्रियाणां त्वा प्रियपति * हवामहेनिधीनां त्वा निधिपति * हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥* -२३.१९
*अर्थात्-* हे गणों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गणपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे प्रियों के बीच रहने वाले प्रियपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे निधियों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ निधिपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे जगत् को बसाने वाले! आप हमारे हों। आप समस्तजगत् को गर्भ में धारण करते हैं, पैदा (प्रकट) करते हैं, आपकी इस क्षमता को हम भली प्रकार जानें। आप आएं और हमें सद्बुद्धि दें।
*ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।* *स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योअरिष्टनेमिःस्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।*- २५.१९
*अर्थात्* - महान् ऐश्वर्यशाली, इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सब कुछ जानने वाले पूषादेवता हमारा कल्याण करें, अनिष्ट का नाश करने वाले गरुड़ देव हमारा कल्याण करें तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करें। हम सबका भला करें।
*ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽ ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्*॥- १८.३६
*अर्थात्*- हे अग्ने! आप इस पृथ्वी पर समस्त पोषक रसों को स्थापित करें। ओषधियों में जीवन रूपी रस को स्थापित करें। द्युलोक में दिव्य रसको स्थापित करें। अन्तरिक्ष में श्रेष्ठ रस को स्थापित करें। हमारे लिए ये सब दिशाएँ एवं उपदिशाएँ अभीष्ट रसों को देने वाली हों। आप हमारा पोषण करें।
*ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा*॥- ५.२१
*अर्थात्*- भगवान् विष्णु (सर्वव्यापी परमात्मा) का प्रकाश फैल रहा है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जगत् स्थिर है तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है, सम्पूर्ण जगत् परमात्मा से व्याप्त है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जड़- चेतन दो प्रकार का जगत् उत्पन्न हुआ है, उन्हीं भगवान् विष्णु के लिए यह देवकार्य किया जा रहा है। वह भगवान विष्णु प्रशन्न हों और हमारी चेतना को जागृत करें।
*ॐ अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता॥* -१४.२०
*अर्थात्*- अग्निदेवता, वायुदेवता, सूर्यदेवता, चन्द्रमादेवता, आठों वसु- देवता, ग्यारह रुद्रगण, बारह आदित्यगण, उनचास मरुद्गण, नौ विश्वेदेवागण, बृहस्पतिदेवता, इन्द्रदेवता और वरुणदेवता आदि सम्पूर्ण दिव्य शक्तिधाराओं को हम अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के लिए स्थापित करते हैं। ये सभी शक्तियां यहां आए और हमारे प्रयोजन/कार्य को पूर्ण करने में सहायक बनें।
*ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष * शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥* -३६.१७
*अर्थात्*- द्युलोक (स्वर्ग), अन्तरिक्षलोक तथा पृथिवीलोक हमें शान्ति प्रदान करे। जल शान्ति प्रदायक हो, ओषधियाँ तथा वनस्पतियाँ शान्ति प्रदान करने वाली हों। विश्वेदेवागण शान्ति प्रदान करने वाले हों। ब्रह्म (सर्वव्यापी परमात्मा) सम्पूर्ण जगत् में शान्ति स्थापित करे, शान्ति ही शान्ति हो, शान्ति भी हमें परम शान्ति प्रदान करे। सर्वत्र शांति हो।
*ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।यद्भद्रं तन्न ऽ आ सुव, ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ सर्वारिष्टसुशान्ति:र्भवतु।*- ३०।३
*अर्थात्*- हे सर्व- उत्पादक सवितादेव! आप हमारी समस्त बुराइयों (पाप कर्मों) को दूर करें तथा हमारे लिए जो कल्याणकारी हो, उसे प्रदान करें। ॥
हम बुराई छोड़े और अच्छाई ग्रहण करें।
साथ ही नित्य 3 या 5 गायत्री मंत्र के साथ साथ 11 मन्त्र या एक माला निम्नलिखित दोनों मन्त्र की जपो
*ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः*
*या देवी सर्वभूतेषु सन्तान लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥*
यदि रख सकें तो 16 सोमवार का व्रत भगवान शंकर-पार्वती का या 16 शुक्रवार व्रत सन्तान लक्ष्मी का रहना लाभदायक है।
जिस प्रकार की आत्मा को गर्भ में आवाहित करना चाहती हैं वैसा माहौल अपने घर का कर लीजिए। नित्य गायत्रीमंत्र जप व यज्ञ करेंगी तो उसके धूम्र व मन्त्र तरंग से श्रेष्ठ आत्मा आपके गर्भ की ओर आकृष्ट होगी।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - निम्नलिखित मन्त्र का रोज पूजन में सुसन्तति की शीघ्रता से प्राप्ति के पूजन में शामिल कर लीजिए। षट कर्म व देवावाहन के बाद एक बार इन मन्त्रो का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करना है।
॥ स्वस्तिवाचनम्॥ - स्वस्ति + वचन
स्वस्ति का तात्पर्य है कल्याणकारी, वाचन अर्थात् वचन बोलना ।। सभी के कल्याण की कामना करते हुये मन्त्र के वचन बोलना। मन्त्र वह शब्दों का गुंथन होता है और एक प्रकार का चुम्बक की तरह कार्य करता है। जो जैसा मन्त्र पढ़ता है उसके आसपास ब्रह्मांड से वैसे ही शक्तियां आकृष्ट होकर उसके आसपास आ जाती हैं।मनोवान्छित फल देती है। इसे आकर्षण का सिद्धांत (Law of attraction) कहते हैं। जैसे शॉप में जो ऑर्डर करोगे वही मिलेगा वैसे ही ब्रह्माण्ड में जैसा मन्त्र भावपूर्वक पढोगे वैसी शक्तियाँ आकर्षित होंगी।
*ॐ गणानां त्वा गणपति * हवामहेप्रियाणां त्वा प्रियपति * हवामहेनिधीनां त्वा निधिपति * हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥* -२३.१९
*अर्थात्-* हे गणों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गणपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे प्रियों के बीच रहने वाले प्रियपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे निधियों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ निधिपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे जगत् को बसाने वाले! आप हमारे हों। आप समस्तजगत् को गर्भ में धारण करते हैं, पैदा (प्रकट) करते हैं, आपकी इस क्षमता को हम भली प्रकार जानें। आप आएं और हमें सद्बुद्धि दें।
*ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।* *स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योअरिष्टनेमिःस्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।*- २५.१९
*अर्थात्* - महान् ऐश्वर्यशाली, इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सब कुछ जानने वाले पूषादेवता हमारा कल्याण करें, अनिष्ट का नाश करने वाले गरुड़ देव हमारा कल्याण करें तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करें। हम सबका भला करें।
*ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽ ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्*॥- १८.३६
*अर्थात्*- हे अग्ने! आप इस पृथ्वी पर समस्त पोषक रसों को स्थापित करें। ओषधियों में जीवन रूपी रस को स्थापित करें। द्युलोक में दिव्य रसको स्थापित करें। अन्तरिक्ष में श्रेष्ठ रस को स्थापित करें। हमारे लिए ये सब दिशाएँ एवं उपदिशाएँ अभीष्ट रसों को देने वाली हों। आप हमारा पोषण करें।
*ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा*॥- ५.२१
*अर्थात्*- भगवान् विष्णु (सर्वव्यापी परमात्मा) का प्रकाश फैल रहा है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जगत् स्थिर है तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है, सम्पूर्ण जगत् परमात्मा से व्याप्त है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जड़- चेतन दो प्रकार का जगत् उत्पन्न हुआ है, उन्हीं भगवान् विष्णु के लिए यह देवकार्य किया जा रहा है। वह भगवान विष्णु प्रशन्न हों और हमारी चेतना को जागृत करें।
*ॐ अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता॥* -१४.२०
*अर्थात्*- अग्निदेवता, वायुदेवता, सूर्यदेवता, चन्द्रमादेवता, आठों वसु- देवता, ग्यारह रुद्रगण, बारह आदित्यगण, उनचास मरुद्गण, नौ विश्वेदेवागण, बृहस्पतिदेवता, इन्द्रदेवता और वरुणदेवता आदि सम्पूर्ण दिव्य शक्तिधाराओं को हम अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के लिए स्थापित करते हैं। ये सभी शक्तियां यहां आए और हमारे प्रयोजन/कार्य को पूर्ण करने में सहायक बनें।
*ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष * शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥* -३६.१७
*अर्थात्*- द्युलोक (स्वर्ग), अन्तरिक्षलोक तथा पृथिवीलोक हमें शान्ति प्रदान करे। जल शान्ति प्रदायक हो, ओषधियाँ तथा वनस्पतियाँ शान्ति प्रदान करने वाली हों। विश्वेदेवागण शान्ति प्रदान करने वाले हों। ब्रह्म (सर्वव्यापी परमात्मा) सम्पूर्ण जगत् में शान्ति स्थापित करे, शान्ति ही शान्ति हो, शान्ति भी हमें परम शान्ति प्रदान करे। सर्वत्र शांति हो।
*ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।यद्भद्रं तन्न ऽ आ सुव, ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ सर्वारिष्टसुशान्ति:र्भवतु।*- ३०।३
*अर्थात्*- हे सर्व- उत्पादक सवितादेव! आप हमारी समस्त बुराइयों (पाप कर्मों) को दूर करें तथा हमारे लिए जो कल्याणकारी हो, उसे प्रदान करें। ॥
हम बुराई छोड़े और अच्छाई ग्रहण करें।
साथ ही नित्य 3 या 5 गायत्री मंत्र के साथ साथ 11 मन्त्र या एक माला निम्नलिखित दोनों मन्त्र की जपो
*ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः*
*या देवी सर्वभूतेषु सन्तान लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥*
यदि रख सकें तो 16 सोमवार का व्रत भगवान शंकर-पार्वती का या 16 शुक्रवार व्रत सन्तान लक्ष्मी का रहना लाभदायक है।
जिस प्रकार की आत्मा को गर्भ में आवाहित करना चाहती हैं वैसा माहौल अपने घर का कर लीजिए। नित्य गायत्रीमंत्र जप व यज्ञ करेंगी तो उसके धूम्र व मन्त्र तरंग से श्रेष्ठ आत्मा आपके गर्भ की ओर आकृष्ट होगी।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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