प्रश्न - *क्या हमारे पूर्वज जो किसी त्योहार या तिथि को खत्म हुए थे उनके साथ ही कहा जाता है कि वह त्योहार भी खत्म हो गया। अब उस त्योहार को मनाना चाहिए या नहीं।*
उत्तर- जिस दिन मृत्यु होती है उसी दिन पर सूतक लग जाता है, तो उस वर्ष वह त्योहार स्थगित हो जाता है। दूसरे वर्ष उसी पुण्यतिथि पर बरसी मनाने का उपक्रम वरीयता से किया जाता है। अतः जब तक बरसी का पूजन न हो जाये और यज्ञपूर्णाहूति न हो जाये तबतक त्योहार का उत्सव नहीं मनाया जा सकता। तो कुल मिलाकर दो वर्ष आप उस त्योहार को पूर्णतया नहीं मना सकते।
यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण नहीं किया तो हर वर्ष पुण्यतिथि पर उनकी शांति की प्रार्थना करनी पड़ेगी और त्यौहार को पूर्णतया नहीं मना सकते। यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण कर दिया तो हरवर्ष की पुण्यतिथि को बरसी की तरह बड़े स्तर पर मनाने की आवश्यकता नहीं है।
त्यौहार के दिन दो छोटी सी थाली में सभी भोजन-पकवान को अत्यंत थोड़ा रखें, एक देवताओ को अर्पित कर दें व दूसरी पितरों को किचन के कोने में रख दें या घर के बाहर गमले के पास रख के अर्पित कर दें। यज्ञ में देवताओ के साथ साथ तीन पितर के लिए भी आहुति दे दें।
श्राद्ध-तर्पण के बाद उस त्यौहार को पूर्व की तरह पूर्ण मनाना चाहिए। कोई रोक टोक नहीं है। मृतक श्राद्ध-तर्पण के बाद पितर बन जाते हैं जो कि पूजनीय हो जाते हैं, यज्ञाहुति लेने में समर्थ हो जाते हैं और उनका का आशीर्वाद मिलता है। अपने बच्चों के आनन्द के लिए त्यौहार की तिथि को वो मुक्त कर देते हैं। अतः त्यौहार पूरी तैयारी के साथ खुशियों सहित मनाइए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- जिस दिन मृत्यु होती है उसी दिन पर सूतक लग जाता है, तो उस वर्ष वह त्योहार स्थगित हो जाता है। दूसरे वर्ष उसी पुण्यतिथि पर बरसी मनाने का उपक्रम वरीयता से किया जाता है। अतः जब तक बरसी का पूजन न हो जाये और यज्ञपूर्णाहूति न हो जाये तबतक त्योहार का उत्सव नहीं मनाया जा सकता। तो कुल मिलाकर दो वर्ष आप उस त्योहार को पूर्णतया नहीं मना सकते।
यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण नहीं किया तो हर वर्ष पुण्यतिथि पर उनकी शांति की प्रार्थना करनी पड़ेगी और त्यौहार को पूर्णतया नहीं मना सकते। यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण कर दिया तो हरवर्ष की पुण्यतिथि को बरसी की तरह बड़े स्तर पर मनाने की आवश्यकता नहीं है।
त्यौहार के दिन दो छोटी सी थाली में सभी भोजन-पकवान को अत्यंत थोड़ा रखें, एक देवताओ को अर्पित कर दें व दूसरी पितरों को किचन के कोने में रख दें या घर के बाहर गमले के पास रख के अर्पित कर दें। यज्ञ में देवताओ के साथ साथ तीन पितर के लिए भी आहुति दे दें।
श्राद्ध-तर्पण के बाद उस त्यौहार को पूर्व की तरह पूर्ण मनाना चाहिए। कोई रोक टोक नहीं है। मृतक श्राद्ध-तर्पण के बाद पितर बन जाते हैं जो कि पूजनीय हो जाते हैं, यज्ञाहुति लेने में समर्थ हो जाते हैं और उनका का आशीर्वाद मिलता है। अपने बच्चों के आनन्द के लिए त्यौहार की तिथि को वो मुक्त कर देते हैं। अतः त्यौहार पूरी तैयारी के साथ खुशियों सहित मनाइए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
No comments:
Post a Comment