Saturday, 30 November 2019

प्रश्न - *मन्त्रलेखन व मंत्रजप में कौन श्रेष्ठ है। छपरा बिहार में एक बाबूजी हैं वो मन्त्रलेखन की जगह जप करने को श्रेष्ठ बताते हैं।

प्रश्न - *मन्त्रलेखन व मंत्रजप में कौन श्रेष्ठ है। छपरा बिहार में एक बाबूजी हैं वो मन्त्रलेखन की जगह जप करने को श्रेष्ठ बताते हैं। वो कहते हैं कि गुरुजी ने करोड़ो जप किया था न कि मन्त्रलेखन किया था।*

उत्तर - अध्यात्म एक परा चेतना मनोविज्ञान है, जो सूक्ष्म नाड़ियों में ऊर्जा तरंग के प्रवाह व उनके जहां जहां मिलन होता है उन ऊर्जा चक्र की ऊर्जा को प्रदीप्त कर अपेक्षित लाभ लेने का विधिव्यस्था है।

योग के सन्दर्भ में  *नाड़ी* वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है। इनमें भी तीन प्रमुख का उल्लेख बार-बार मिलता है -  *ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना*। *ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं।  इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है।* अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं।

*ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा* का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है।
*पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है*। इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है।
*पिंगला* का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि ईडां का बाएँ भाग से।

यह प्राण ऊर्जा प्रवाहिनी नाड़ियां नासिका से चार से आठ अंगुल बाहर तक फैली होती है। वैसे तो यह टोटल 114 जगहों पर मिलकर ऊर्जा चक्र बनाती हैं, जिनमें से 112 शरीर के भीतर व 2 शरीर के बाहर अवस्थित हैं। छः मुख्य जो क्रमशः इस प्रकार हैं:-

1- *मूलाधार चक्र* - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। उससे ऊपर आने पर क्रम से

2- *स्वाधिष्ठान चक्र*

3- *मणिपुर चक्र*

4- *अनाहत चक्र*

5- *विशुद्धि चक्र*

6- *आज्ञा चक्र* - मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे।

7- *सहस्त्रार चक्र* - कई विद्वान इसे इस लिए चक्र नहीं मानते कि इसमें ईड़ा और पिंगला का प्रभाव नहीं पड़ता।

भगवान शिव ने *विज्ञान भैरव तंत्र* में स्पष्ट कहा है कि यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियाँ  मनुष्य के भीतर विद्यमान है, वह अभी निष्क्रिय हैं, जिसे साधना मार्ग से सक्रिय किया जा सकता है। चेतना की गहराइयों में जाकर आत्मतत्व को जानने के 112 मार्ग शिव ने विभिन्न शिष्यों को समय समय पर सिखाया है।

वेदों का सार गायत्रीमंत्र है, यह महामंत्र है, इसके मन्त्र अक्षरों का गुम्फन व चयन परा चेतना मनोविज्ञान पर आधारित है। गायत्री मंत्र जप के लगातार घर्षण होठ तालु द्वारा मुंह के अग्निचक्र  से इनमें ऊर्जा उद्दीप्त की जाती है। जैसे श्रद्धा व भाव लेकर मनुष्य साधना करेगा वैसे ही चुम्बकीय तरंग उतपन्न होगी। ब्रह्माण्ड से ये नाड़ियां प्राण ऊर्जा तरंग खींचने लगती है साथ ही ब्रह्माण्ड इच्छित भाव अनुसार साधक के साथ घटनाएं होने लगती है। शरीर के भीतर के दिव्य ऊर्जा चक्र जागृत होते हैं।

उपरोक्त उपलब्धि पाने के हज़ारों मार्ग , मन्त्र व यौगिक क्रियाएं है। जिनमें से सर्वश्रेष्ठ मन्त्र मार्ग गायत्रीमंत्र को गुरुदेव ने इस जन्म में सिद्ध किया व शिष्यों के लिए  उपलब्ध करवाया। इसमें भी गुरुदेव ने कई प्रकार के प्रयोग चेतना स्तर पर किये। उन सबके टेस्ट रिज़ल्ट के आधार पर कर्मकाण्ड व अन्य अनुष्ठान विधियां लिखी। जिनमें से *गायत्रीमंत्र लेखन* भी है।

अब छपरा बिहार वाले बाबूजी कितने रिसर्च में गुरुजी के साथ थे व कितने मार्ग जानते हैं? चेतन स्तर पर उनकी क्या योग्यता है? कितने ग्रन्थों का उन्होंने स्वाध्याय किया है? यह मुझे पता नहीं, यह तो शास्त्रार्थ करके ही जाना जा सकता है।

मग़र उनके कथन अनुसार ऐसा मेरा मानना है कि वह गुरुदेव के विराट स्वरूप के केवल एक अंश साधना प्रयोग से परिचित हैं - जिसे उपांशु जप अनुष्ठान कहते हैं। अब इस मार्ग में भी उन्हें चेतन स्तर पर कितनी गहराई से समझा है यह भी पता नहीं। अतः वो अपनी बुद्धि क्षमता व अनुभव अनुसार सलाह दे रहे हैं। उदाहरण- जिसने जितनी शिक्षा ली होगी वो उतने ही स्तर की सलाह दे पाएगा।

आप इतना समझिए कि मन्त्रलेखन व मंत्रजप दोनों ही दो मार्ग हैं। दोनों ही साधना की मंज़िल तक पहुंचाने में सक्षम है।  मन्त्रलेखन मंत्रजप से ज्यादा फ़लदायी होता है, क्योंकि दोनों आंखों से सूक्ष्म नाड़ियाँ गांधारी व हस्तिजिह्वा, दोनों कानों से पूषा व यशस्विनी और मुंह अलंबुषा नाड़ी अर्थात पाँचो नाड़ियाँ सक्रीय हो जाती हैं। 24000 गायत्रीमंत्र जप का फ़ल 2400 मन्त्रलेखन से ही मिल जाता है।

अतः बाबूजी की बात से कन्फ्यूज़ न हो, जिस साधना मार्ग में मन लगे उसे चुने व साधना करें। गुरुदेव के लिखी पुस्तक - *गायत्री महाविज्ञान* व *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* पढ़े।

सफ़ेद बाल किसी के ज्ञानी होने की निशानी नहीं होते, दीक्षा मात्र लेने से कोई साधक नहीं बनता, मेडिकल कॉलेज में एडमिशन किसी को चिकित्सक नहीं बनाता । युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव बनने की योग्यता व उनकी कही बातों को काटने की क्षमता नहीं रखता। अतः यदि शान्तिकुंज से प्रकाशित मन्त्रलेखन की महत्ता को छपरा बिहार के बाबूजी मना कर रहे हैं तो यह उनकी अपनी राय है ऐसा मानिए, जिसका उनके पास कोई ठोस आधार उपलब्ध नहीं है।

जो जितने अंशो में गुरु के प्रति समर्पित होकर भाव साधना के साथ पूर्व श्रद्धा-विश्वास से जिस भी साधना मार्ग का चयन करेगा उसमें उसकी सफ़लता निश्चित है। जो जितनी मेहनत करेगा वो उतने अंशो में सफ़ल होगा। साधना की सिद्धि का मूल श्रद्धा-विश्वास-समर्पण ही है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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