प्रश्न - *सतत स्वाध्याय से अब जानता हूँ क्या सही व क्या गलत है? दीदी, ये स्थिति बुरी है जब यह महसूस होता है कि क्या स्वयं को भी न बदल पाने का कलंक लिये ही मर जाऊंगा, एक मनुष्य होकर भी मैं अपनी लत को नहीं छोड़ पा रहा हूँ। मैं यह भी न कर पाया तो किस बात का मनुष्य हूँ?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
एक कहानी सुनों, एक मंत्री गायत्री मंत्र जप साधना में अपने पूजन गृह में बैठा था। तभी उसके राज्य के महाराज उसके घर आये। पत्नी ने कहा महाराज वो गायत्रीमंत्र जप में है। थोड़ा वक्त लगेगा। महाराज आश्चर्य चकित थे कि उनके मंत्री ने अपनी साधना के बारे में कभी क्यों नहीं बताया। मंत्री जब पूजन करके आया तो राजा ने मंत्री से गायत्री मंत्र जप के बारे में पूँछा।
मंत्री ने कहा- *गायत्री कलियुग की कामधेनु है, इसकी साधना से इहलोक व परलोक दोनों सुधरते हैं, व आत्मा प्रकाशित होती है।*
ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम्।।
राजा ने मंत्री से कहा मुझे तुम गायत्रीमंत्र की दीक्षा दो, मंत्री ने कहा मेरे सवा करोड़ गायत्री जप नहीं हुए हैं और साथ ही मैं वशिष्ठ व विश्वामित्र की शर्तें पूरी नहीं कर सका हूँ। इसलिए आपको दीक्षा नहीं दे सकता। हमारे राज्य में एक सद्गुरु है आप उनसे दीक्षा ले लें।
राजा को यह अपमान लगा, वो रास्ते में एक गरीब ब्राह्मण के घर जाकर गायत्रीमंत्र सीखकर आ गया। जपने लगा।
मंत्री जब राजमहल पहुंचा तो राजा ने गायत्रीमंत्र उसे सुनाया। बोला तुम तो यूँ ही कह रहे थे कि जो अधिकारी गुरु होगा वही गायत्रीमन्त्र दीक्षा देगा तो ही मन्त्र शीघ्रता से फ़लित होगा। इसे अब प्रमाणित करो।
मंत्री ने वहाँ खड़े सैनिकों को राजा की ओर इशारा करते हुए हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* कई बार बोला मग़र किसी भी सैनिक ने उसकी बात नहीं मानी।
राजा को मंत्री की धृष्टता पर गुस्सा आ गया, राजा ने मंत्री की ओर इशारा करते हुए सैनिकों को हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* एक बार बोलने पर ही सैनिकों ने तुरंत मंत्री को बंदी बना लिया।
मंत्री मुस्कुराते हुए राजा से क्षमा मांगते हुए बोला - महाराज मैंने प्रमाणित कर दिया।
एक ही वाक्य सैनिकों को - *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* हमने और आपने दोनों ने बोला। मैं अधिकारी नहीं था तो वह बेअसर निकला। आप अधिकारी थे तो वह तुरन्त अमल में आया।
इसीतरह *गायत्री मन्त्रशक्ति का उत्कीलन और शक्तिस्रोत को शिष्य के लिए खोलने का दीक्षा के वक़्त उपक्रम मन्त्र कोई भी बोल सकता है। लेकिन उत्कीलन व शक्तिस्रोत ब्रह्माण्ड के सैनिक तभी करेंगे जब वह गुरु अधिकारी होगा। वह गरीब ब्राह्मण ने आदेश मेरी तरह ब्रह्माण्ड के सैनिक हो दिया होगा लेकिन उसके हुक्म की तामील नहीं हुई होगी क्योंकि वह अधिकारी न था।*
राजा को बात समझ आयी और वह सद्गुरु की शरण में गया जिससे मंत्री ने गुरुदीक्षा लेने को कहा था।
अतः तुम शोक का त्याग करके गुरुभक्ति में लीन होकर गायत्री साधना करो। क्योंकि हमारे गुरु सवा करोड़ से ज्यादा जप कर चुके हैं, वशिष्ठ व विश्वामित्र शर्ते पूरी करते हैं। पूरे ब्रह्याण्ड में गायत्रीमंत्र की शक्तिधाराओ के उत्कीलन और एक्टिवेशन में सर्वसमर्थ है। वे वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ व गायत्रीमंत्र के दृष्टा है उनकी शरण में जाओ तुम्हारा कल्याण होगा।
गुरुगीता का अनुष्ठान करो, गुरुसेवा करो। गुरूकृपा अर्जित करो।
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् । मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ।।
जप, तप, ध्यान, योग, स्वाध्याय इत्यादि सब आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करते हैं। लेकिन आत्मसाक्षात्कार तुम्हें गुरूकृपा से ही होगा। जब स्वयं को जानोगे व आत्मा प्रकाशित होने लगेगी तो सभी बुरी लत का क्षय स्वयंमेव होने लगेगा। सूर्य उदित होते ही अंधकार भला कैसे टिकेगा।
बुरी लत से कब मुक्ति मिलेगी इस चिंतन में समय व्यर्थ मत करो। गुरुभक्ति में लीन रहकर गायत्रीमंत्र की साधना करो, जानते हो स्थूल हृदय बाएं तरफ होता है और सूक्ष्म हृदय दाहिने तरफ़ होता है। जहाँ प्रभु का वास होता है। गुरु गीता की साधना से तुम्हें दाहिने सूक्ष्म हृदय में कुछ स्फुरणा महसूस होगी। जो तुम्हें प्रकाशित कर देगी। गुरु के चरणों के ध्यान में रहो सब स्वतः ठीक हो जाएगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय भाई,
एक कहानी सुनों, एक मंत्री गायत्री मंत्र जप साधना में अपने पूजन गृह में बैठा था। तभी उसके राज्य के महाराज उसके घर आये। पत्नी ने कहा महाराज वो गायत्रीमंत्र जप में है। थोड़ा वक्त लगेगा। महाराज आश्चर्य चकित थे कि उनके मंत्री ने अपनी साधना के बारे में कभी क्यों नहीं बताया। मंत्री जब पूजन करके आया तो राजा ने मंत्री से गायत्री मंत्र जप के बारे में पूँछा।
मंत्री ने कहा- *गायत्री कलियुग की कामधेनु है, इसकी साधना से इहलोक व परलोक दोनों सुधरते हैं, व आत्मा प्रकाशित होती है।*
ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम्।।
राजा ने मंत्री से कहा मुझे तुम गायत्रीमंत्र की दीक्षा दो, मंत्री ने कहा मेरे सवा करोड़ गायत्री जप नहीं हुए हैं और साथ ही मैं वशिष्ठ व विश्वामित्र की शर्तें पूरी नहीं कर सका हूँ। इसलिए आपको दीक्षा नहीं दे सकता। हमारे राज्य में एक सद्गुरु है आप उनसे दीक्षा ले लें।
राजा को यह अपमान लगा, वो रास्ते में एक गरीब ब्राह्मण के घर जाकर गायत्रीमंत्र सीखकर आ गया। जपने लगा।
मंत्री जब राजमहल पहुंचा तो राजा ने गायत्रीमंत्र उसे सुनाया। बोला तुम तो यूँ ही कह रहे थे कि जो अधिकारी गुरु होगा वही गायत्रीमन्त्र दीक्षा देगा तो ही मन्त्र शीघ्रता से फ़लित होगा। इसे अब प्रमाणित करो।
मंत्री ने वहाँ खड़े सैनिकों को राजा की ओर इशारा करते हुए हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* कई बार बोला मग़र किसी भी सैनिक ने उसकी बात नहीं मानी।
राजा को मंत्री की धृष्टता पर गुस्सा आ गया, राजा ने मंत्री की ओर इशारा करते हुए सैनिकों को हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* एक बार बोलने पर ही सैनिकों ने तुरंत मंत्री को बंदी बना लिया।
मंत्री मुस्कुराते हुए राजा से क्षमा मांगते हुए बोला - महाराज मैंने प्रमाणित कर दिया।
एक ही वाक्य सैनिकों को - *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* हमने और आपने दोनों ने बोला। मैं अधिकारी नहीं था तो वह बेअसर निकला। आप अधिकारी थे तो वह तुरन्त अमल में आया।
इसीतरह *गायत्री मन्त्रशक्ति का उत्कीलन और शक्तिस्रोत को शिष्य के लिए खोलने का दीक्षा के वक़्त उपक्रम मन्त्र कोई भी बोल सकता है। लेकिन उत्कीलन व शक्तिस्रोत ब्रह्माण्ड के सैनिक तभी करेंगे जब वह गुरु अधिकारी होगा। वह गरीब ब्राह्मण ने आदेश मेरी तरह ब्रह्माण्ड के सैनिक हो दिया होगा लेकिन उसके हुक्म की तामील नहीं हुई होगी क्योंकि वह अधिकारी न था।*
राजा को बात समझ आयी और वह सद्गुरु की शरण में गया जिससे मंत्री ने गुरुदीक्षा लेने को कहा था।
अतः तुम शोक का त्याग करके गुरुभक्ति में लीन होकर गायत्री साधना करो। क्योंकि हमारे गुरु सवा करोड़ से ज्यादा जप कर चुके हैं, वशिष्ठ व विश्वामित्र शर्ते पूरी करते हैं। पूरे ब्रह्याण्ड में गायत्रीमंत्र की शक्तिधाराओ के उत्कीलन और एक्टिवेशन में सर्वसमर्थ है। वे वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ व गायत्रीमंत्र के दृष्टा है उनकी शरण में जाओ तुम्हारा कल्याण होगा।
गुरुगीता का अनुष्ठान करो, गुरुसेवा करो। गुरूकृपा अर्जित करो।
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् । मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ।।
जप, तप, ध्यान, योग, स्वाध्याय इत्यादि सब आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करते हैं। लेकिन आत्मसाक्षात्कार तुम्हें गुरूकृपा से ही होगा। जब स्वयं को जानोगे व आत्मा प्रकाशित होने लगेगी तो सभी बुरी लत का क्षय स्वयंमेव होने लगेगा। सूर्य उदित होते ही अंधकार भला कैसे टिकेगा।
बुरी लत से कब मुक्ति मिलेगी इस चिंतन में समय व्यर्थ मत करो। गुरुभक्ति में लीन रहकर गायत्रीमंत्र की साधना करो, जानते हो स्थूल हृदय बाएं तरफ होता है और सूक्ष्म हृदय दाहिने तरफ़ होता है। जहाँ प्रभु का वास होता है। गुरु गीता की साधना से तुम्हें दाहिने सूक्ष्म हृदय में कुछ स्फुरणा महसूस होगी। जो तुम्हें प्रकाशित कर देगी। गुरु के चरणों के ध्यान में रहो सब स्वतः ठीक हो जाएगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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