प्रश्न - *भक्ति व परोपकार में क्या अंतर है?*
उत्तर- पहले भक्ति को समझिए,
👉🏻 *भक्ति क्या है?*
*भज्* धातु में *क्तिन्* प्रत्यय होने से *भक्ति* शब्द का निर्माण हुआ है। *भज् सेवायाम* - *भज्* धातु का अर्थ है *समर्पण के साथ सेवा करना*।
जिसको आराध्य माना है उसकी सेवा करना। उदाहरण - ईश्वर भक्ति, मातृ भक्ति, पितृ भक्ति, गुरु भक्ति, देश भक्ति, स्वामी भक्ति इत्यादि। आराध्य की जो इच्छा होगी तदनुसार उसकी इच्छा पूरी करने में जुट जाना, उसकी सेवा में खो जाना, उसके लिए मरने मिटने में पीछे न हटना भक्ति का अंग अवयव है। निःश्वार्थ भाव भक्त का होता है, उसके द्वारा किया परोपकार भी भक्ति का एक अंग है। भक्ति में यदि कोई भक्त जन सेवा व परोपकार भी करता है तो उसके पुण्यफ़ल को वह अपने आराध्य को अर्पित कर देता है।
भगवान कृष्ण ने ईश्वरीय - नवधा भक्ति हेतु कहा है:-
*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*
1.श्रवण 2. कीर्तन, 3. स्मरण, 4. पादसेवन, 5. अर्चन, 6. वंदन, 7. दास्य, 8. सख्य और 9.आत्मनिवेदन
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
अब परोपकार को समझिए
👉🏻 *परोपकार* दो शब्दों से मिलकर बना है - *पर* + *उपकार*
*पर* - जो स्वयं से परे दूसरा है उसके भले के लिए उसका श्रम,साधन,अंशदान,समयदान, प्रतिभादान द्वारा उस पर *उपकार* अर्थात भला करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के बदले पुण्यफ़ल मिलता है। परोपकार स्वार्थ भाव और निःश्वार्थ भाव अर्थात दोनों भाव से किया जाता है।
*परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।*
*परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥*
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
*परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।*
*जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥*
परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है ।
परोपकार करने वाला आस्तिक व नास्तिक दोनों हो सकता है। परोपकार में उस पुण्यफ़ल को व्यक्ति स्वयं ग्रहण करता है। परोपकार करने वाला भक्त न हुआ तो परोपकार के बाद मिली प्रसंशा उसे अहंकारी भी बनाती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- पहले भक्ति को समझिए,
👉🏻 *भक्ति क्या है?*
*भज्* धातु में *क्तिन्* प्रत्यय होने से *भक्ति* शब्द का निर्माण हुआ है। *भज् सेवायाम* - *भज्* धातु का अर्थ है *समर्पण के साथ सेवा करना*।
जिसको आराध्य माना है उसकी सेवा करना। उदाहरण - ईश्वर भक्ति, मातृ भक्ति, पितृ भक्ति, गुरु भक्ति, देश भक्ति, स्वामी भक्ति इत्यादि। आराध्य की जो इच्छा होगी तदनुसार उसकी इच्छा पूरी करने में जुट जाना, उसकी सेवा में खो जाना, उसके लिए मरने मिटने में पीछे न हटना भक्ति का अंग अवयव है। निःश्वार्थ भाव भक्त का होता है, उसके द्वारा किया परोपकार भी भक्ति का एक अंग है। भक्ति में यदि कोई भक्त जन सेवा व परोपकार भी करता है तो उसके पुण्यफ़ल को वह अपने आराध्य को अर्पित कर देता है।
भगवान कृष्ण ने ईश्वरीय - नवधा भक्ति हेतु कहा है:-
*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*
1.श्रवण 2. कीर्तन, 3. स्मरण, 4. पादसेवन, 5. अर्चन, 6. वंदन, 7. दास्य, 8. सख्य और 9.आत्मनिवेदन
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अब परोपकार को समझिए
👉🏻 *परोपकार* दो शब्दों से मिलकर बना है - *पर* + *उपकार*
*पर* - जो स्वयं से परे दूसरा है उसके भले के लिए उसका श्रम,साधन,अंशदान,समयदान, प्रतिभादान द्वारा उस पर *उपकार* अर्थात भला करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के बदले पुण्यफ़ल मिलता है। परोपकार स्वार्थ भाव और निःश्वार्थ भाव अर्थात दोनों भाव से किया जाता है।
*परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।*
*परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥*
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
*परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।*
*जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥*
परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है ।
परोपकार करने वाला आस्तिक व नास्तिक दोनों हो सकता है। परोपकार में उस पुण्यफ़ल को व्यक्ति स्वयं ग्रहण करता है। परोपकार करने वाला भक्त न हुआ तो परोपकार के बाद मिली प्रसंशा उसे अहंकारी भी बनाती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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