प्रश्न - *मेरे पिता का भयंकर एक्सीडेंट हुआ, डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। लेकिन भगवान की कृपा से वो बच गए। लेक़िन स्वस्थ होने के बाद उन्हें संसार से विरक्ति हो गयी। वह घर त्याग कर तपलींन होकर समाज सेवी हो गए हैं। मम्मी बहुत दुःखी व परेशान है। हम सब परेशान हैं कि कैसे वो पूर्ववत होंगे? मार्गदर्शन करें।*
उत्तर - आत्मीय बेटे,
मेरी भाव सम्वेदना तुम्हारे व तुम्हारी माता के साथ है। लेकिन जैसा कि तुम जानते हो मैं लॉजिकल कंटेंट भी समस्या के समाधान के लिए देती हूँ। बुरा न मानकर इसे स्वस्थ मन से पढो व समझो।
तुम्हारे पिता अब जाग गए हैं, क्योंकि उन्होंने मृत्यु को अत्यंत नजदीक से महसूस कर लिया है। इस एक्सिडेंट ने उनकी चेतना को संसार मिथ्या व ब्रह्म सत्य का अनुभव करवा दिया है।
मेरी बात को समझने के लिए उपनिषद का राजा जनक का स्वप्न व गुरु अष्टावक्र का सम्वाद सुनो।
https://youtu.be/WkZQkhxStdM
तुम्हारी माता क्यों दुःखी हैं? इस पर तत्व दृष्टि से विचार डालोगे तो पता चलेगा कि मनुष्य केवल उन अपनों की मृत्यु पर दुःखी होता है, जिससे उसे सुख मिल रहा होता है। जिन अपनों से कोई सुख नहीं वो उसकी मृत्यु पर दुःखी भी नहीं। तुम्हारी माता तुम्हारे पिता के जीवित होने का आनन्द उल्लास नहीं मनाएंगी तब तक, जब तक की पिता से उन्हें पूर्ववत सुख न मिले। तुम भी पिता के जीवित होने की खुशी नहीं मनाओगे, अपितु उनसे पुनः पूर्ववत सुख न मिलने का दुःख मनाओगे। लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता तुम लोग करोगे, पिता की ख़ुशी किसमें है यह परवाह तुम लोग नहीं करोगे। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है, बचपन से यही तो सीखते आये हैं रिश्तों में अपना सुख देखते व ढूंढते आये हैं। किसी के जीने या मरने से कोई सुखी दुःखी नहीं होता, उस व्यक्ति से लाभ-हानि ही सुख व दुःख तय करता है।
सभी आत्मा रिश्ते से ऋणानुबंध के कारण जुड़ी होती हैं। आपके पिता का आपसे व आपकी माता स्व ऋणानुबंध पूर्ण हो गया है। यदि वह संसार में मोहवश लौटना चाहेंगे तो जीवन से हाथ धो बैठेंगे। मृत्यु की गोद मे चले जायेंगे। ऐसी कई सत्य घटना का दृष्टांत हमने पढ़ा है। उनमें से एक को आप निम्नलिखित वीडियो में देखो, एक उद्योगपति जिसका कैंसर के कारण दो महीने ही जीवन शेष था। मोह त्याग के घर छोड़ के काशी-बनारस गया, वहाँ पुण्य अर्जन में जुटा तो आयु बढ़ गयी। कुछ महीनों बाद मोहवश पुनः संसार मे लौटना चाहा तो ट्रक एक्सीडेंट में मृत्यु को प्राप्त हुआ। क्योंकि परिवारवालों से ऋणानुबंध खत्म होने के बाद संसार मे लौटना नहीं चाहिए।
https://youtu.be/N1R6Fyf5V6M
स्वयं व माता को एक चीज़ समझाओ कि जन्म व मरण एक निश्चित विधान है। जो आया है वो जाएगा ही। ऋणानुबंध जब तक है तभी तक रिश्ता है यहां। लोन चुका तो रिश्ता ख़त्म।
यदि पिता के साथ माता रहना चाहती हैं तो अब संसार मे नहीं रह सकती हैं पूर्ववत। लेकिन उनकी सहयोगी बनकर लोककल्याण हेतु उनके साथ रह सकती हैं। तुम स्वयं को योग्य बनाकर अपना भार वहन करो, व इतनी आर्थिक अच्छी व्यवस्था है कि आप आराम से जीवन संवार सकते हो।
माया में मत उलझो मेरे बच्चे, माया बहुत दुःखी करती है। माया क्या होती है इसे उपनिषद की इस वीडियो में देखो व समझो।
https://youtu.be/qzY2D_KAc44
बेटा, मोह माया यह संसार है। यहां कुछ भी सत्य नहीं है। जो आज है वो कल नहीं रहेगा।
*माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।*
*आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।*
*अर्थ* - कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर, मन, माया सब नष्ट हो जाता है परन्तु मन में उठने वाली आषा और तृष्णा कभी नष्ट नहीं होती। इसलिए संसार की मोह तृष्णा आदि में नहीं फंसना चाहिए। तृष्णा का कोई अंत नहीं है।
पिता ने उम्रभर आपकी खुशी का ख्याल रखा। अब जब मौत के मुंह से वो बाहर आकर वो गृह त्यागी बनकर तपलीन होकर समाजसेवी बनना चाहते हैं। उनकी सहायता करो। वो मृत्यु से मिलकर आये हैं, उन्हें जीवन जीने देना चाहते हो तो उन्हें संसार में मत खींचो। सच्चा प्रेम वह है जब हम दूसरे की खुशियों के लिए प्रयासरत रहें। पिता से तुम प्रेम करते हो तो अपनी परेशानी मत देखो, वैसे भी पत्नी बच्चों के आने के बाद व आर्थिक निर्भर होने के बाद तुम पिता के लिए उतने भावुक नहीं रहोगे जितना अभी हो। उदाहरण के लिए देखो कि बचपन मे जितना माँ से क्लोज थे अब नहीं हो, प्रेम तो माँ से है लेकिन अब तुम्हें अपनी प्राइवेसी भी चाहिए।
लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह करो। माता जी को समझाओ कि निर्णय लें कि अभी संसार मे रहना है या पति के लिए गृह त्याग करना है? दोनो ही निर्णय सही हैं। पुत्र के साथ संसार भी सही है, पति के साथ गृह त्याग भी सही है।
विवेक जागृत हो व तुम तत्व दृष्टि से घटना को समझने में सक्षम हो। यही गुरुबर से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बेटे,
मेरी भाव सम्वेदना तुम्हारे व तुम्हारी माता के साथ है। लेकिन जैसा कि तुम जानते हो मैं लॉजिकल कंटेंट भी समस्या के समाधान के लिए देती हूँ। बुरा न मानकर इसे स्वस्थ मन से पढो व समझो।
तुम्हारे पिता अब जाग गए हैं, क्योंकि उन्होंने मृत्यु को अत्यंत नजदीक से महसूस कर लिया है। इस एक्सिडेंट ने उनकी चेतना को संसार मिथ्या व ब्रह्म सत्य का अनुभव करवा दिया है।
मेरी बात को समझने के लिए उपनिषद का राजा जनक का स्वप्न व गुरु अष्टावक्र का सम्वाद सुनो।
https://youtu.be/WkZQkhxStdM
तुम्हारी माता क्यों दुःखी हैं? इस पर तत्व दृष्टि से विचार डालोगे तो पता चलेगा कि मनुष्य केवल उन अपनों की मृत्यु पर दुःखी होता है, जिससे उसे सुख मिल रहा होता है। जिन अपनों से कोई सुख नहीं वो उसकी मृत्यु पर दुःखी भी नहीं। तुम्हारी माता तुम्हारे पिता के जीवित होने का आनन्द उल्लास नहीं मनाएंगी तब तक, जब तक की पिता से उन्हें पूर्ववत सुख न मिले। तुम भी पिता के जीवित होने की खुशी नहीं मनाओगे, अपितु उनसे पुनः पूर्ववत सुख न मिलने का दुःख मनाओगे। लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता तुम लोग करोगे, पिता की ख़ुशी किसमें है यह परवाह तुम लोग नहीं करोगे। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है, बचपन से यही तो सीखते आये हैं रिश्तों में अपना सुख देखते व ढूंढते आये हैं। किसी के जीने या मरने से कोई सुखी दुःखी नहीं होता, उस व्यक्ति से लाभ-हानि ही सुख व दुःख तय करता है।
सभी आत्मा रिश्ते से ऋणानुबंध के कारण जुड़ी होती हैं। आपके पिता का आपसे व आपकी माता स्व ऋणानुबंध पूर्ण हो गया है। यदि वह संसार में मोहवश लौटना चाहेंगे तो जीवन से हाथ धो बैठेंगे। मृत्यु की गोद मे चले जायेंगे। ऐसी कई सत्य घटना का दृष्टांत हमने पढ़ा है। उनमें से एक को आप निम्नलिखित वीडियो में देखो, एक उद्योगपति जिसका कैंसर के कारण दो महीने ही जीवन शेष था। मोह त्याग के घर छोड़ के काशी-बनारस गया, वहाँ पुण्य अर्जन में जुटा तो आयु बढ़ गयी। कुछ महीनों बाद मोहवश पुनः संसार मे लौटना चाहा तो ट्रक एक्सीडेंट में मृत्यु को प्राप्त हुआ। क्योंकि परिवारवालों से ऋणानुबंध खत्म होने के बाद संसार मे लौटना नहीं चाहिए।
https://youtu.be/N1R6Fyf5V6M
स्वयं व माता को एक चीज़ समझाओ कि जन्म व मरण एक निश्चित विधान है। जो आया है वो जाएगा ही। ऋणानुबंध जब तक है तभी तक रिश्ता है यहां। लोन चुका तो रिश्ता ख़त्म।
यदि पिता के साथ माता रहना चाहती हैं तो अब संसार मे नहीं रह सकती हैं पूर्ववत। लेकिन उनकी सहयोगी बनकर लोककल्याण हेतु उनके साथ रह सकती हैं। तुम स्वयं को योग्य बनाकर अपना भार वहन करो, व इतनी आर्थिक अच्छी व्यवस्था है कि आप आराम से जीवन संवार सकते हो।
माया में मत उलझो मेरे बच्चे, माया बहुत दुःखी करती है। माया क्या होती है इसे उपनिषद की इस वीडियो में देखो व समझो।
https://youtu.be/qzY2D_KAc44
बेटा, मोह माया यह संसार है। यहां कुछ भी सत्य नहीं है। जो आज है वो कल नहीं रहेगा।
*माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।*
*आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।*
*अर्थ* - कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर, मन, माया सब नष्ट हो जाता है परन्तु मन में उठने वाली आषा और तृष्णा कभी नष्ट नहीं होती। इसलिए संसार की मोह तृष्णा आदि में नहीं फंसना चाहिए। तृष्णा का कोई अंत नहीं है।
पिता ने उम्रभर आपकी खुशी का ख्याल रखा। अब जब मौत के मुंह से वो बाहर आकर वो गृह त्यागी बनकर तपलीन होकर समाजसेवी बनना चाहते हैं। उनकी सहायता करो। वो मृत्यु से मिलकर आये हैं, उन्हें जीवन जीने देना चाहते हो तो उन्हें संसार में मत खींचो। सच्चा प्रेम वह है जब हम दूसरे की खुशियों के लिए प्रयासरत रहें। पिता से तुम प्रेम करते हो तो अपनी परेशानी मत देखो, वैसे भी पत्नी बच्चों के आने के बाद व आर्थिक निर्भर होने के बाद तुम पिता के लिए उतने भावुक नहीं रहोगे जितना अभी हो। उदाहरण के लिए देखो कि बचपन मे जितना माँ से क्लोज थे अब नहीं हो, प्रेम तो माँ से है लेकिन अब तुम्हें अपनी प्राइवेसी भी चाहिए।
लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह करो। माता जी को समझाओ कि निर्णय लें कि अभी संसार मे रहना है या पति के लिए गृह त्याग करना है? दोनो ही निर्णय सही हैं। पुत्र के साथ संसार भी सही है, पति के साथ गृह त्याग भी सही है।
विवेक जागृत हो व तुम तत्व दृष्टि से घटना को समझने में सक्षम हो। यही गुरुबर से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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