Tuesday, 3 December 2019

प्रश्न - *मेरा बेटा गायत्री साधक है, परन्तु ऑफिस की एक सिख धर्म की लड़की से प्रेम करता है। समझ नहीं आता क्या करूँ?*

प्रश्न - *मेरा बेटा गायत्री साधक है, परन्तु ऑफिस की एक सिख धर्म की लड़की से प्रेम करता है। समझ नहीं आता क्या करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन,

बेटे का विवाह उसकी मर्ज़ी की पसन्द से करवा दीजिये। विवाह से पूर्व उन दोनों को 2400 मन्त्रलेखन करने को कहिए व पुस्तक *गृहस्थ एक तपोवन* और *गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व जिम्मेदारी समझें* पढ़ने को बोलिये।

हिंदू धर्म की विशालता यह है कि यहां एक ही घर में अलग अलग इष्ट देवी-देवता को मानने वाले बड़े आराम से रहते हैं। यहाँ हिटलरशाही नहीं है न आतंकवाद है कि जबरन हम जिसे पूजते हैं उसे ही पूजो।

यह नर से नारायण बनने की विधिव्यस्था है। जिस धर्म के जिस आध्यात्मिक पद्धति के पालन से मन में सेवा भाव जगे, मन आनन्दित-प्रफुल्लित हो व सुकून-शांति के साथ रह सको वह ही आध्यात्मिक पद्धति श्रेष्ठ है।

वेदों में कहीं भी वर्तमान जाति व्यवस्था का वर्णन नहीं है। यह जन्मजात जाति व्यवस्था मनुष्यों द्वारा बनाई गई है, तो मनुष्यो द्वारा तोड़ी भी जा सकती है।

प्राचीन समय में घरवाले लड़की 16 से 17 साल की और लड़का 19 से 20 साल में शादी कर देते थे। क्योंकि लड़के लड़की आर्थिक आत्मनिर्भर नहीं होते थे, पारिवारिक दबाव में परिवार की मर्ज़ी की लड़की से शादी कर लेते थे। थोड़े संस्कारी थे तो बड़ो को पलट के जवाब भी नहीं देते थे। कम उम्र कच्ची मिट्टी की तरह होता है जिधर मोड़ो मुड़ जाता था। एक तरह से रिश्ता निभ जाता था।

अब 21 वर्ष से बड़ी उम्र की मैच्योर लड़की और 23 वर्ष से अधिक उम्र का मैच्योर लड़का साथ ही दोनों आर्थिक आत्मनिर्भर हों, उन पर पारिवारिक दबाव बनाकर उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ विवाह करवाना मात्र बेवकूफ़ी साबित होगा। वो अब पक चुके हैं आपकी मर्जी से मुड़ेंगे नहीं अपितु स्वयं भी टूटेंगे, रिश्ते टूटेंगे व आपको भी छोड़ देंगे। अगर आपने अपनी मौत का भय दिखाकर किसी भी तरह जबरन विवाह करवाने में सफलता प्राप्त भी कर ली तो विवाह पश्चात वो आपसे बातचीत बन्द कर देंगे।

हम मनुष्य जन्मजात स्वार्थी हैं, हम लोग बेटे की ख़ुशी थर्ड प्रायॉरिटी में रखते हैं, प्रथम प्रायॉरिटी लड़की अपनी जात बिरादरी में ऐसे उच्च खानदान की हो कि लोगो को गर्व से दिखा सकें(घर समाज मे दिखावे की रेस में फ़र्स्ट आना है)। सेकंड प्रायरिटी  होती है कि लड़की ससुराल में एडजस्ट हो सके व घर सम्हाल सके। थर्ड प्रायॉरिटी है कि बेटे को वह लड़की पसन्द हो।

*मोह सकल व्याधिन कर मूला* व *सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग* - लोगों को दिखाने का मोह व अपनी सेवा चाहने का मोह ग़लत नहीं है तो सही भी नहीं है। अपनी मर्ज़ी की शादी करनी है तो लड़के लड़की की जॉब लगने से पहले कर दें। अन्यथा जॉब लगने के बाद उनकी मर्जी से ही विवाह करें।

कुशल मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए सलाह दें, कि बेटा जिसे भी पसन्द कर रहे हो उसके बारे में भली भांति जानकारी इकट्ठा करो। केवल शरीर की सुंदरता या उसकी सैलरी देखकर विवाह मत करना क्योंकि बच्चों के जन्म के बाद व उम्र निकलने पर यह शरीर बदलेगा, सैलरी भी ऊपर नीचे हो सकती है व फ़िर रिश्ता टूटेगा।

स्थायी वैवाहिक रिश्ते के लिए एक दूसरे के मन, स्वभाव व विचारों का अध्ययन करो कि एक दूसरे को कितना समझते हो, जब कभी कोई मत भेद होगा तो उसे कैसे हैंडल करोगे? जीवन के उतार-चढ़ाव में एक दूसरे को कैसे सम्हालोगे? तुम दोनों अनाथ तो हो नहीं, अतः एक दूसरे के परिवार के प्रति उत्तरदायित्व कैसे निभाओगे? सब कुछ प्लान करो, फ़िर सोच समझकर विवाह करो। जो भी तुम्हारा निर्णय होगा वह हमें स्वीकार्य होगा। हम बस यह चाहते हैं कि तुम सुखी रहो। हमारी फर्स्ट प्रायॉरिटी तुम्हारी ख़ुशी है, अतः तुम सदैव जिससे विवाह करके खुश रह सको उससे विवाह करो, हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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