नाटक - *माँ बेटे का सम्वाद - जीवनजीने की कला*
घटना- *खेलते वक्त बच्चे को चोट लग गयी*
*बेटा* - रोते हुए, मम्मी मम्मी चोट लग गई। पुनः रोते हुए।
( *सूत्रधार* - माता दौड़कर फर्स्ट एड बॉक्स लाती है और दवा लगाती है। बच्चा 8 साल का है फुटबॉल खेल कर आया है, खेलते हुए गिर गया है। घुटने छिल गए हैं। माँ चुप कराती है लेकिन वह फिर भी रोता है। बेटे को गोद में लेते हुए बोलती है।)
*माँ* - यह बताओ, क्या रोने से दर्द ठीक हो जाएगा।
*बेटा* - नहीं
*माँ* - क्या मैंने या किसी दोस्त ने तुम्हें धक्का जानबूझ कर दिया था?
*बेटा* - नहीं..
*माँ* - क्या आज के बाद तुम कभी फुटबॉल नहीं खेलोगे?
*बेटा* - खेलूँगा, जब दर्द ठीक हो जाएगा।
*माँ* - जब रोने से दर्द ठीक नहीं होगा, किसी ने धक्का नहीं दिया। और ठीक होने के बाद पुनः खेलोगे। फिर रो क्यों रहे हो। रोने की यह आदत रही तो बड़े होकर जब दिल पर चोट लगेगी या ऑफिस, जॉब, व्यवसाय में आओगे तो परिस्थिति का रोना रोवोगे। अतः रोना बन्द करके ध्यान अपना चोट के बाद उपचार पर केंद्रित करो। समस्या के बाद समाधान पर केंद्रित करो। दुबारा चोट न लगे इसके लिए प्लान ऑफ एक्शन बनाओ।
*बेटा* - दर्द हो रहा है तो रोना तो आएगा।
*माँ* - जानते हो, तुम्हारी उम्र के हमारे देश के *लौह पुरुष सरदार भाई बल्लभ पटेल ने बिना एनेस्थीसिया के नासूर का ऑपरेशन करवाया था, ऑपरेशन के वक्त वह धार्मिक पुस्तक पढ़ रहे थे*। डॉक्टर चकित थे, उन्होंने कहा - मानसिक मजबूती हो और ध्यान को केंद्रित कहीं अन्य किया जाय तो दर्द को सम्हाला जा सकता है।
देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बच्चे अंग्रेजो के कोड़े खाते थे मगर कभी भी उनके आगे नहीं झुकते थे। पीठ से रक्त बहता और वो भारत माता की जय बोलते।
हमारे देश के वीर सैनिक युद्ध के मैदान में जान की बाज़ी लगा देते हैं, घावों के बाद भी मैदान छोड़कर नहीं भागते। डटे रहते हैं कर्तव्य पथ पर।
चोट खेल का हिस्सा है, जैसे खेल एन्जॉय करते हो वैसे चोट भी एन्जॉय करो। न सुख को स्वयं पर हावी होने दो और न दुःख को स्वयं पर हावी होने दो।
*बेटा* - ठीक है माँ, नहीं रोऊंगा लेकिन दर्द से ध्यान हटाने के लिए मैं क्या करूँ।
*माँ* - दर्द को बोलो, ठीक है दर्द है। मेरे रोने से दर्द ठीक न होगा। न हंसने से दर्द बढ़ेगा। दर्द तो ठीक होने के लिए अपना वक्त लेगा। मन को बोलो - जरूरी उपचार मम्मी ने कर दिया है, अब मैं नहीं रोऊंगा।
*बेटा* - ठीक है माँ, क्या आप मुझे कहानी सुना दोगे। मैं भी सरदार वल्लभभाई पटेल की तरह लौह पुरुष बनूँगा। मैं नहीं रोऊंगा। मानसिक बजबूत बनूँगा।
*माँ* - मेरा राजा बेटा, मेरा बहादुर बेटा, अभी सुनाती हूँ कहानी।
( *सूत्रधार* - माँ गर्म हल्दी दूध दर्द के निवारण के लिए लाती है, व वीर बालको की वीरता की सच्ची कहानियां वांग्मय 57 - *"तेजस्विता मनस्विता प्रखरता" से सुनाती है।* यह माँ तो अपने बालक में वीरता गढ़ रही है, आप कैसे बच्चों की चोट पर समझा रहे हैं? उन्हें वीर बना रहे हो या कायर? स्वयं विचार करें।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
घटना- *खेलते वक्त बच्चे को चोट लग गयी*
*बेटा* - रोते हुए, मम्मी मम्मी चोट लग गई। पुनः रोते हुए।
( *सूत्रधार* - माता दौड़कर फर्स्ट एड बॉक्स लाती है और दवा लगाती है। बच्चा 8 साल का है फुटबॉल खेल कर आया है, खेलते हुए गिर गया है। घुटने छिल गए हैं। माँ चुप कराती है लेकिन वह फिर भी रोता है। बेटे को गोद में लेते हुए बोलती है।)
*माँ* - यह बताओ, क्या रोने से दर्द ठीक हो जाएगा।
*बेटा* - नहीं
*माँ* - क्या मैंने या किसी दोस्त ने तुम्हें धक्का जानबूझ कर दिया था?
*बेटा* - नहीं..
*माँ* - क्या आज के बाद तुम कभी फुटबॉल नहीं खेलोगे?
*बेटा* - खेलूँगा, जब दर्द ठीक हो जाएगा।
*माँ* - जब रोने से दर्द ठीक नहीं होगा, किसी ने धक्का नहीं दिया। और ठीक होने के बाद पुनः खेलोगे। फिर रो क्यों रहे हो। रोने की यह आदत रही तो बड़े होकर जब दिल पर चोट लगेगी या ऑफिस, जॉब, व्यवसाय में आओगे तो परिस्थिति का रोना रोवोगे। अतः रोना बन्द करके ध्यान अपना चोट के बाद उपचार पर केंद्रित करो। समस्या के बाद समाधान पर केंद्रित करो। दुबारा चोट न लगे इसके लिए प्लान ऑफ एक्शन बनाओ।
*बेटा* - दर्द हो रहा है तो रोना तो आएगा।
*माँ* - जानते हो, तुम्हारी उम्र के हमारे देश के *लौह पुरुष सरदार भाई बल्लभ पटेल ने बिना एनेस्थीसिया के नासूर का ऑपरेशन करवाया था, ऑपरेशन के वक्त वह धार्मिक पुस्तक पढ़ रहे थे*। डॉक्टर चकित थे, उन्होंने कहा - मानसिक मजबूती हो और ध्यान को केंद्रित कहीं अन्य किया जाय तो दर्द को सम्हाला जा सकता है।
देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बच्चे अंग्रेजो के कोड़े खाते थे मगर कभी भी उनके आगे नहीं झुकते थे। पीठ से रक्त बहता और वो भारत माता की जय बोलते।
हमारे देश के वीर सैनिक युद्ध के मैदान में जान की बाज़ी लगा देते हैं, घावों के बाद भी मैदान छोड़कर नहीं भागते। डटे रहते हैं कर्तव्य पथ पर।
चोट खेल का हिस्सा है, जैसे खेल एन्जॉय करते हो वैसे चोट भी एन्जॉय करो। न सुख को स्वयं पर हावी होने दो और न दुःख को स्वयं पर हावी होने दो।
*बेटा* - ठीक है माँ, नहीं रोऊंगा लेकिन दर्द से ध्यान हटाने के लिए मैं क्या करूँ।
*माँ* - दर्द को बोलो, ठीक है दर्द है। मेरे रोने से दर्द ठीक न होगा। न हंसने से दर्द बढ़ेगा। दर्द तो ठीक होने के लिए अपना वक्त लेगा। मन को बोलो - जरूरी उपचार मम्मी ने कर दिया है, अब मैं नहीं रोऊंगा।
*बेटा* - ठीक है माँ, क्या आप मुझे कहानी सुना दोगे। मैं भी सरदार वल्लभभाई पटेल की तरह लौह पुरुष बनूँगा। मैं नहीं रोऊंगा। मानसिक बजबूत बनूँगा।
*माँ* - मेरा राजा बेटा, मेरा बहादुर बेटा, अभी सुनाती हूँ कहानी।
( *सूत्रधार* - माँ गर्म हल्दी दूध दर्द के निवारण के लिए लाती है, व वीर बालको की वीरता की सच्ची कहानियां वांग्मय 57 - *"तेजस्विता मनस्विता प्रखरता" से सुनाती है।* यह माँ तो अपने बालक में वीरता गढ़ रही है, आप कैसे बच्चों की चोट पर समझा रहे हैं? उन्हें वीर बना रहे हो या कायर? स्वयं विचार करें।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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