नाटक की घटना - *घर की RO मशीन का बिगड़ना व स्वयं की मनःस्थिति को सम्हालना, जीवन जीने की कला*
( *सूत्रधार* - बच्चे के वार्षिकोत्सव प्रोग्राम से सभी शनिवार रात्रि को 9 बजे घर पहुंचते हैं। सभी थके होते हैं, डिनर की व्यवस्था डिनर टेबल पर हो रही होती है कि तभी बच्चे की दादी सबको यह सूचना देती हैं कि RO मशीन बिगड़ गयी है, उसमें लाइट नहीं जल रही व पानी नहीं आ रहा। सबके चेहरे पर चिंता की रेखाएं अंकित होती हैं औऱ एक और ख़र्च। बच्चे के पापा RO सर्विस वाले को फोन करते हैं, वहाँ से सूचना मिलती है कि रविवार को इंजीनियर छुट्टी पर है, सोमवार को आएंगे ।)
*बच्चे की दादी* - हे भगवान, एक नई परेशानी। ख़र्च तो कभी कम हो ही नहीं सकते, जितना सोचो कुछ न कुछ परेशानी आ ही जाती है।
*बच्चा* - अब पानी हम लोग कल तक कैसे पियेंगे?
*बच्चे के दादा* - आज़कल इतनी महंगे महंगे RO आते हैं, पानी की अच्छी क़्वालिटी के लिए हम खरीदते हैं। इनका मेंटिनेंस कितना महंगा है अभी छह महीने पहले ही 5000 का बिल बनाया था सर्विस के नाम पर..हे भगवान समझ नहीं आता न खर्चो को कैसे कंट्रोल करेंगे।
*बच्चे के पापा* - यह सर्विस वाले भी, रविवार को इमरजेंसी सर्विस नहीं देते। अब यह भाई साहब सोमवार को आएंगे। हे भगवान! मतलब दो दिन के लिए पानी की व्यवस्था करनी है।
*बच्चे की माँ* - हम सभी समस्या को गिन रहे हैं व समाधान के पार्ट को नहीं सोच रहे। जो होना था वो हो चुका। हमारे तनावग्रस्त होने से RO मशीन शुरू नहीं होगी। न ही तनाव लेने से इंजीनियर कल RO की सर्विस देकर जाएगा। हमें तो भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि दुकान बंद होने के एक घण्टे पहले हमें समस्या पता चल गई। हम सभी के पास बुद्धि व पैसे हैं जिससे RO के न चलने पर दो दिन की समस्या का समाधान कर सकें। जब पार्टी वगैरह आयोजित करते हैं तो 20 लीटर का जल लाते हैं 80 रुपये का व उसे उपयोग करते हैं। चलो दुकान जल्दी जिससे दुकान बंद होने से पहले बिसलेरी का जल ले आये।
( *सूत्रधार* - बच्चे के पापा मम्मी दुकान जाते हैं व 20 लीटर का जल दुकान से लाते हैं। दुकान से आया सर्वेंट जल को सेट कर देता है, कंटेनर व जल की टोटी की व्यवस्था हो जाती है। सब पुनः डायनिंग टेबल पर डिनर की टेबल पर बैठते हैं।)
*बच्चे की दादी* - बहु, तुझे कभी तनावग्रस्त नहीं देखती, न ऑफिस जॉब में न घर गृहस्थी के काम में। जब भी समस्या आती है तू शांत कैसे रहती है?
*बच्चे की माँ* - माता जी, मैं गायत्री परिवार से हूँ, हमारे परम्पपूज्य गुरुदेव ने तीन पुस्तक लिखी है -📖 *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*,📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल ,📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये*। इन्हीं तीनों पुस्तको के सूत्र मैं ऑफिस हो या घर अपनाती हूँ।
*बच्चे के पापा* - जब ऑफिस में लोग ब्लेम गेम में आरोप लगाते हैं, तुम्हें गुस्सा नहीं आता?
*बच्चे की मम्मी* - गुरुदेव कहते हैं कि अगर अपने ही दृष्टिकोण से देखोगे तो झगड़ोगे और अगर दूसरे के दृष्टिकोण को भी समझोगे तो समस्या सुलझाओगे। सबको अपनी जॉब बचानी है, अतः स्वयं की गलती कोई नहीं मानेगा। कम्पनी को कोई लाभ नहीं मिलेगा किसी को दोषी साबित करने पर, कम्पनी को तो समस्या का समाधान चाहिए व काम होने से मतलब है। हम शांत दिमाग से दूसरे टीम के बंदों से चैट व कॉल में बात करते हैं उनको लाइट मूड में साथ काम करने को तैयार करते हैं। मिलकर काम करने पर समस्या का समाधान होता है, नए मित्र बनते हैं। वो भी सुखी, हम भी सुखी, कम्पनी भी सुखी।
*बच्चा* - मम्मी, आपको गुस्सा नहीं आया जब सर्विस इंजीनियर ने रविवार को सर्विस करने से मना कर दिया।
*बच्चे की माँ* - बेटा, जब तुम रविवार को स्कूल जाना पसन्द नहीं करते, तुम्हारे पापा और मैं भी रविवार को ऑफिस जाना पसंद नहीं करते तो उस सर्विस इंजीनियर को क्या परिवार व बच्चों के साथ रविवार की छुट्टी मनाने का हक नहीं है। अतः इसमें गुस्से की कोई बात नहीं।
*बच्चे की दादी* - सच बताओ, क्या RO मशीन के बिगड़ने की खबर पर गुस्सा या क्षोभ नहीं हुआ।
*बच्चे की माँ* - मम्मी जी, RO मशीन व वर्तमान परिस्थिति निर्जीव है उन पर गुस्से या प्रशन्नता से कोई लाभ नहीं, उन पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन उन पर गुस्सा करने से हमारी मनःस्थिति क्षत-विक्षिप्त जरूर होगी। *युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव कहते हैं, बुद्धिमान मनुष्य वह है जो अप्रिय घटना घटने पर उसका शोक नहीं मनाता, अपितु यह सोचता है कि अब आगे क्या करना है? इसे कैसे सम्हालना है? इस पर मेरा स्टैंड क्या होगा? मेरा प्लान ऑफ एक्शन क्या होगा?*...अच्छी भली बुद्धि पर ताला गुस्सा मार देता है। गुस्सा वह अंगार है जो दूसरे पर हम करते हैं व जलते भी हम ही हैं। अतः गुस्से से बुद्धि बन्द करने से अच्छा है, बुद्धि के इंजन को चला कर समस्या का समाधान ढूंढा जाय।
*बच्चे के दादा* - बहु, क्या आगामी RO मशीन की सर्विस पर लगने वाले खर्च से तुम चिंतित नहीं हो?
*बच्चे की माँ* - पिताजी, यदि हमारी चिंता से सर्विस वाला कोई डिस्काउंट देगा। तो हमें चिंता जरूर करनी चाहिए, यदि चिंता करने से कोई फायदा नहीं तो उसे करने का क्या फ़ायदा?
अतः पिताजी, *हमारे परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि चिंता की चिता में जलने से अच्छा है, चिंतन की बारिश में भीगना और समाधान ढूँढना*। हम यह योजना बना रहे हैं कि इस खर्च को कैसे व्यवस्थित करेंगे, व आगे क्या करना है।
*बच्चे की दादी* - तुम्हारे गुरुदेव वास्तव में अद्भुत तरीक़े के कुशल घर गृहस्थी मैनेजर गढ़ रहे हैं, तनावमुक्त गृहणी व गृहस्वामी गढ़ रहे है। जो मुसीबत में भी मुस्कुरा सकते हैं, योद्धा की तरह विजेता की तरह सोच सकते हैं।
*बच्चे की माँ* - मानव गढ़ने की टकसाल है, हमारा गायत्री परिवार। युगऋषि ने वर्षो तपस्या करके इसे बनाया है, जीवन जीने की कला सिखाने हेतु साहित्य खज़ाना दिया है। स्वर्ग किसी जगह का नाम नहीं है माँ, स्वर्ग तो मनुष्य की मनःस्थिति का नाम है।
( *सूत्रधार* - सब हंसते हैं, व भोजन करते हैं। दादा व दादी तीनों पुस्तक - मांगते है पढ़ने के लिए - 📖 *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*, 📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल , 📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये* )
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
( *सूत्रधार* - बच्चे के वार्षिकोत्सव प्रोग्राम से सभी शनिवार रात्रि को 9 बजे घर पहुंचते हैं। सभी थके होते हैं, डिनर की व्यवस्था डिनर टेबल पर हो रही होती है कि तभी बच्चे की दादी सबको यह सूचना देती हैं कि RO मशीन बिगड़ गयी है, उसमें लाइट नहीं जल रही व पानी नहीं आ रहा। सबके चेहरे पर चिंता की रेखाएं अंकित होती हैं औऱ एक और ख़र्च। बच्चे के पापा RO सर्विस वाले को फोन करते हैं, वहाँ से सूचना मिलती है कि रविवार को इंजीनियर छुट्टी पर है, सोमवार को आएंगे ।)
*बच्चे की दादी* - हे भगवान, एक नई परेशानी। ख़र्च तो कभी कम हो ही नहीं सकते, जितना सोचो कुछ न कुछ परेशानी आ ही जाती है।
*बच्चा* - अब पानी हम लोग कल तक कैसे पियेंगे?
*बच्चे के दादा* - आज़कल इतनी महंगे महंगे RO आते हैं, पानी की अच्छी क़्वालिटी के लिए हम खरीदते हैं। इनका मेंटिनेंस कितना महंगा है अभी छह महीने पहले ही 5000 का बिल बनाया था सर्विस के नाम पर..हे भगवान समझ नहीं आता न खर्चो को कैसे कंट्रोल करेंगे।
*बच्चे के पापा* - यह सर्विस वाले भी, रविवार को इमरजेंसी सर्विस नहीं देते। अब यह भाई साहब सोमवार को आएंगे। हे भगवान! मतलब दो दिन के लिए पानी की व्यवस्था करनी है।
*बच्चे की माँ* - हम सभी समस्या को गिन रहे हैं व समाधान के पार्ट को नहीं सोच रहे। जो होना था वो हो चुका। हमारे तनावग्रस्त होने से RO मशीन शुरू नहीं होगी। न ही तनाव लेने से इंजीनियर कल RO की सर्विस देकर जाएगा। हमें तो भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि दुकान बंद होने के एक घण्टे पहले हमें समस्या पता चल गई। हम सभी के पास बुद्धि व पैसे हैं जिससे RO के न चलने पर दो दिन की समस्या का समाधान कर सकें। जब पार्टी वगैरह आयोजित करते हैं तो 20 लीटर का जल लाते हैं 80 रुपये का व उसे उपयोग करते हैं। चलो दुकान जल्दी जिससे दुकान बंद होने से पहले बिसलेरी का जल ले आये।
( *सूत्रधार* - बच्चे के पापा मम्मी दुकान जाते हैं व 20 लीटर का जल दुकान से लाते हैं। दुकान से आया सर्वेंट जल को सेट कर देता है, कंटेनर व जल की टोटी की व्यवस्था हो जाती है। सब पुनः डायनिंग टेबल पर डिनर की टेबल पर बैठते हैं।)
*बच्चे की दादी* - बहु, तुझे कभी तनावग्रस्त नहीं देखती, न ऑफिस जॉब में न घर गृहस्थी के काम में। जब भी समस्या आती है तू शांत कैसे रहती है?
*बच्चे की माँ* - माता जी, मैं गायत्री परिवार से हूँ, हमारे परम्पपूज्य गुरुदेव ने तीन पुस्तक लिखी है -📖 *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*,📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल ,📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये*। इन्हीं तीनों पुस्तको के सूत्र मैं ऑफिस हो या घर अपनाती हूँ।
*बच्चे के पापा* - जब ऑफिस में लोग ब्लेम गेम में आरोप लगाते हैं, तुम्हें गुस्सा नहीं आता?
*बच्चे की मम्मी* - गुरुदेव कहते हैं कि अगर अपने ही दृष्टिकोण से देखोगे तो झगड़ोगे और अगर दूसरे के दृष्टिकोण को भी समझोगे तो समस्या सुलझाओगे। सबको अपनी जॉब बचानी है, अतः स्वयं की गलती कोई नहीं मानेगा। कम्पनी को कोई लाभ नहीं मिलेगा किसी को दोषी साबित करने पर, कम्पनी को तो समस्या का समाधान चाहिए व काम होने से मतलब है। हम शांत दिमाग से दूसरे टीम के बंदों से चैट व कॉल में बात करते हैं उनको लाइट मूड में साथ काम करने को तैयार करते हैं। मिलकर काम करने पर समस्या का समाधान होता है, नए मित्र बनते हैं। वो भी सुखी, हम भी सुखी, कम्पनी भी सुखी।
*बच्चा* - मम्मी, आपको गुस्सा नहीं आया जब सर्विस इंजीनियर ने रविवार को सर्विस करने से मना कर दिया।
*बच्चे की माँ* - बेटा, जब तुम रविवार को स्कूल जाना पसन्द नहीं करते, तुम्हारे पापा और मैं भी रविवार को ऑफिस जाना पसंद नहीं करते तो उस सर्विस इंजीनियर को क्या परिवार व बच्चों के साथ रविवार की छुट्टी मनाने का हक नहीं है। अतः इसमें गुस्से की कोई बात नहीं।
*बच्चे की दादी* - सच बताओ, क्या RO मशीन के बिगड़ने की खबर पर गुस्सा या क्षोभ नहीं हुआ।
*बच्चे की माँ* - मम्मी जी, RO मशीन व वर्तमान परिस्थिति निर्जीव है उन पर गुस्से या प्रशन्नता से कोई लाभ नहीं, उन पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन उन पर गुस्सा करने से हमारी मनःस्थिति क्षत-विक्षिप्त जरूर होगी। *युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव कहते हैं, बुद्धिमान मनुष्य वह है जो अप्रिय घटना घटने पर उसका शोक नहीं मनाता, अपितु यह सोचता है कि अब आगे क्या करना है? इसे कैसे सम्हालना है? इस पर मेरा स्टैंड क्या होगा? मेरा प्लान ऑफ एक्शन क्या होगा?*...अच्छी भली बुद्धि पर ताला गुस्सा मार देता है। गुस्सा वह अंगार है जो दूसरे पर हम करते हैं व जलते भी हम ही हैं। अतः गुस्से से बुद्धि बन्द करने से अच्छा है, बुद्धि के इंजन को चला कर समस्या का समाधान ढूंढा जाय।
*बच्चे के दादा* - बहु, क्या आगामी RO मशीन की सर्विस पर लगने वाले खर्च से तुम चिंतित नहीं हो?
*बच्चे की माँ* - पिताजी, यदि हमारी चिंता से सर्विस वाला कोई डिस्काउंट देगा। तो हमें चिंता जरूर करनी चाहिए, यदि चिंता करने से कोई फायदा नहीं तो उसे करने का क्या फ़ायदा?
अतः पिताजी, *हमारे परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि चिंता की चिता में जलने से अच्छा है, चिंतन की बारिश में भीगना और समाधान ढूँढना*। हम यह योजना बना रहे हैं कि इस खर्च को कैसे व्यवस्थित करेंगे, व आगे क्या करना है।
*बच्चे की दादी* - तुम्हारे गुरुदेव वास्तव में अद्भुत तरीक़े के कुशल घर गृहस्थी मैनेजर गढ़ रहे हैं, तनावमुक्त गृहणी व गृहस्वामी गढ़ रहे है। जो मुसीबत में भी मुस्कुरा सकते हैं, योद्धा की तरह विजेता की तरह सोच सकते हैं।
*बच्चे की माँ* - मानव गढ़ने की टकसाल है, हमारा गायत्री परिवार। युगऋषि ने वर्षो तपस्या करके इसे बनाया है, जीवन जीने की कला सिखाने हेतु साहित्य खज़ाना दिया है। स्वर्ग किसी जगह का नाम नहीं है माँ, स्वर्ग तो मनुष्य की मनःस्थिति का नाम है।
( *सूत्रधार* - सब हंसते हैं, व भोजन करते हैं। दादा व दादी तीनों पुस्तक - मांगते है पढ़ने के लिए - 📖 *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*, 📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल , 📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये* )
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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