प्रश्न - *दी, चित्त क्या है? इसकी शुद्धि व रूपांतरण क्या सम्भव है?*
उत्तर- आत्मीय भाई, मन के कुल सोलह आयाम योग में कहे गए हैं। मन के ये आयाम पूरी तरह से मस्तिष्क में स्थित नहीं होते, ये कुछ भौतिक तो कुछ अभौतिक सिस्टम में होते हैं। तो ये आठ तरह की स्मृतियां, बुद्धि के ये पांच आयाम और अहंकार यानी पहचान के दो आयाम व चित्त कुल मिलाकर मन के सोलह हिस्से होते हैं। चित्त चूंकि असीमित होता है, इसलिए यह सिर्फ एक ही होता है।
मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है।
चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। अगर आपका मन सचेतन हो गया, अगर आपने चित्त पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लिया, तो आपकी पहुंच अपनी चेतना तक हो जाएगी।
मन जहां रस लेने लगता है वहीं मन रमने लगता है व चित्त स्थिर होने लगता है। चित्त में वस्तुतः चित्र चाहत का बन जाता है, यह अच्छा व बुरा दोनों हो सकता है।
ज्ञान पिपासु का चित्त पढ़ने व अन्वेषण में रमता है, भक्त का भक्ति में रमता है, चोर का धन में चित्त लगा रहता है और व्यभिचारी का व्यभिचार में चित्त लगा रहता है।
चित्त शुद्धि व चित्त की चंचलता का रूपांतरण मन्त्र जप व गहन ध्यान से सम्भव है। इसके लिए ध्यान की गहराई में जाकर चित्त की शुद्धि करके मनचाही स्थिरता पाई जा सकती है। चंचल चित्त का रूपांतरण गहन समाधि में किया जा सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* पुस्तक पढ़िये।
👇🏻
http://beta.literature.awgp.in/book/antarjagat_kee_yatra_ka_jnanvijnan/v3.41
👇🏻 ध्यान वीडियो
https://youtu.be/O2Ty3E83lzs
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई, मन के कुल सोलह आयाम योग में कहे गए हैं। मन के ये आयाम पूरी तरह से मस्तिष्क में स्थित नहीं होते, ये कुछ भौतिक तो कुछ अभौतिक सिस्टम में होते हैं। तो ये आठ तरह की स्मृतियां, बुद्धि के ये पांच आयाम और अहंकार यानी पहचान के दो आयाम व चित्त कुल मिलाकर मन के सोलह हिस्से होते हैं। चित्त चूंकि असीमित होता है, इसलिए यह सिर्फ एक ही होता है।
मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है।
चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। अगर आपका मन सचेतन हो गया, अगर आपने चित्त पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लिया, तो आपकी पहुंच अपनी चेतना तक हो जाएगी।
मन जहां रस लेने लगता है वहीं मन रमने लगता है व चित्त स्थिर होने लगता है। चित्त में वस्तुतः चित्र चाहत का बन जाता है, यह अच्छा व बुरा दोनों हो सकता है।
ज्ञान पिपासु का चित्त पढ़ने व अन्वेषण में रमता है, भक्त का भक्ति में रमता है, चोर का धन में चित्त लगा रहता है और व्यभिचारी का व्यभिचार में चित्त लगा रहता है।
चित्त शुद्धि व चित्त की चंचलता का रूपांतरण मन्त्र जप व गहन ध्यान से सम्भव है। इसके लिए ध्यान की गहराई में जाकर चित्त की शुद्धि करके मनचाही स्थिरता पाई जा सकती है। चंचल चित्त का रूपांतरण गहन समाधि में किया जा सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* पुस्तक पढ़िये।
👇🏻
http://beta.literature.awgp.in/book/antarjagat_kee_yatra_ka_jnanvijnan/v3.41
👇🏻 ध्यान वीडियो
https://youtu.be/O2Ty3E83lzs
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment