प्रश्न- *दी प्रणाम। मैं आजकल गायत्री मंत्र माला नही कर पा रहा हूँ और आजकल जब भी करता हूँ तो बार बार ऐसा महसूस होता ह की म नकलीपन ओढ़े हुए हुँ, मैं सिर्फ डर से नही मगर बहुत प्यार बहुत प्रेम से बल्कि जब मैं बहुत सुखी हों तब मैं गायत्री मंत्र करूँ या गुरुवर को याद करूँ मगर म क्या करूँ मेरे अंदर इतना प्यार नही महसूस कर पा रहा गुरुवर के प्रति।मैं मन ही मन गुरुवर से प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे इतनी सच्चाई व प्रेम दें जिससे मैं आप के सामने कभी भी झूठ न बोलूं, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। मैं क्या करूँ? क्या गुरुवर सिर्फ संस्कृत भाषा ही समझते ह???*
उत्तर - आत्मीय भाई,
यदि यह सोचोगे कि जब तैरना आयेगा तब ही पानी में उतरोगे तो जीवन में कभी तैरना न सीख सकोगे।
इसी तरह जब चित्त शुद्ध व मन निर्मल होगा तभी गायत्री जपोगे यह सोचोगे तो कभी चित्त शुद्ध न होगा।
तैरना सीखने के लिए जल में उतरो, चित्त शुद्धि के लिए जप एवं ध्यान करो। निरन्तर अभ्यास व वैराग्य से अपेक्षित परिणाम प्राप्त होगा।
यह मन आपको भड़का रहा है, पथ भ्रष्ट कर रहा है जिससे आप मन्त्र जप न करें। व्यर्थ में उलझे रहें। प्रयत्न ही छोड़ दें।
जैसे कालनेमि हनुमानजी को भड़काया था। वैसे ही मन में जमे कुसंस्कार आपको भड़का रहे हैं।
पानी में उतरे बिना तैरना नहीं सीख सकते, स्कूल गए बिना ज्ञानी नहीं बन सकते, मन्त्र जप बिना चित्त शुद्धि नहीं होगी।
अतः मन को बोलिये मैं असली हूँ या नकली तुम टेंशन मत लो,मुझे जपने दो जिससे मैं असली बन सकूँ।
अंधेरे लड़ना नहीं है, अपितु प्रकाश की व्यवस्था हेतु दिया या मोमबत्ती को जलाने की जरूरत है। दुर्गुणों से लड़ना नहीं है,अपितु सद्गुणों को नित्य अभ्यास से अपनाना है।
सद्गुरु और परमात्मा शब्द से परे है, वह भावना को समझते है और भाव से ही समझाते है।
अब यह भाव आप किसी भी भाषा में प्रार्थना करके या मन्त्र जप के व्यक्त करें, सद्गुरु व परमात्मा सब समझते है।
पढ़ने में मन लगे या न लगे नित्य पढोगे तो ज्ञान मिलने लगेगा। धीरे धीरे मन भी पढ़ने में लगने लगेगा।
इसीतरह नित्य जपिये, चाहे जपने में मन लगे या मन न लगे, जब निरन्तर आप जप करने लगेंगे तो कुछ महीनों में कुसंस्कार आपका मार्ग छोड़ देँगे, मन बकबक बन्द कर देगा। जप में मन लगने लगेगा। अपेक्षित परिणाम मिलने लगेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
यदि यह सोचोगे कि जब तैरना आयेगा तब ही पानी में उतरोगे तो जीवन में कभी तैरना न सीख सकोगे।
इसी तरह जब चित्त शुद्ध व मन निर्मल होगा तभी गायत्री जपोगे यह सोचोगे तो कभी चित्त शुद्ध न होगा।
तैरना सीखने के लिए जल में उतरो, चित्त शुद्धि के लिए जप एवं ध्यान करो। निरन्तर अभ्यास व वैराग्य से अपेक्षित परिणाम प्राप्त होगा।
यह मन आपको भड़का रहा है, पथ भ्रष्ट कर रहा है जिससे आप मन्त्र जप न करें। व्यर्थ में उलझे रहें। प्रयत्न ही छोड़ दें।
जैसे कालनेमि हनुमानजी को भड़काया था। वैसे ही मन में जमे कुसंस्कार आपको भड़का रहे हैं।
पानी में उतरे बिना तैरना नहीं सीख सकते, स्कूल गए बिना ज्ञानी नहीं बन सकते, मन्त्र जप बिना चित्त शुद्धि नहीं होगी।
अतः मन को बोलिये मैं असली हूँ या नकली तुम टेंशन मत लो,मुझे जपने दो जिससे मैं असली बन सकूँ।
अंधेरे लड़ना नहीं है, अपितु प्रकाश की व्यवस्था हेतु दिया या मोमबत्ती को जलाने की जरूरत है। दुर्गुणों से लड़ना नहीं है,अपितु सद्गुणों को नित्य अभ्यास से अपनाना है।
सद्गुरु और परमात्मा शब्द से परे है, वह भावना को समझते है और भाव से ही समझाते है।
अब यह भाव आप किसी भी भाषा में प्रार्थना करके या मन्त्र जप के व्यक्त करें, सद्गुरु व परमात्मा सब समझते है।
पढ़ने में मन लगे या न लगे नित्य पढोगे तो ज्ञान मिलने लगेगा। धीरे धीरे मन भी पढ़ने में लगने लगेगा।
इसीतरह नित्य जपिये, चाहे जपने में मन लगे या मन न लगे, जब निरन्तर आप जप करने लगेंगे तो कुछ महीनों में कुसंस्कार आपका मार्ग छोड़ देँगे, मन बकबक बन्द कर देगा। जप में मन लगने लगेगा। अपेक्षित परिणाम मिलने लगेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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