Thursday, 23 January 2020

यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है।

*यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है।*

ध्यान करना सीखना है तो एक ग़रीब मज़दूर हाल ही के जन्मे बच्चे की माँ से सीखो- बच्चे की भूख शांत करने के लिए दिन भर मेहनत करती है, लेक़िन ध्यान - बच्चे पर केंद्रित रहता है।

बच्चे के भूखा होने पर दूध उतर जाता, बच्चे के बिन बोले सब समझ जाती है। उसे भाषा व शब्दो की जरूरत ही नहीं पड़ती वह तो बच्चे का मौन सम्वाद दूर रहकर भी समझ लेती है। वह प्रेम तन्मयता तल्लीनता से सोते जागते उठते बैठते बच्चे के ध्यान में खोई रहती है। बाहर देखने पर ऐसा लगता है कि वह रोड बनाने में मजदूरी कर रही है, यहां उपस्थित है। लेक़िन भीतर झांकोगे तो पाओगे वह अपने बच्चे के साथ ही ध्यानस्थ है।

गीता में कृष्ण भगवान जी ने जो कर्मयोग वर्णित किया है - मुझे समर्पित कर मेरे निमित्त कर्म करो। यही तो माँ भी करती है बच्चे के लिए उसके निमित्त बन कर्म करती है।

यही हमें करना है, बस उस परमात्मा के प्रेम में खोना है, पूरा जीवन ही ध्यानमय करना है। बाह्य रूप में कहीं भी उपस्थिति दर्ज हो रही हो, कुछ भी कर रहे हो। भीतर अंतर्जगत में तो प्यारे परमात्मा के संग ही उपलब्ध हो। यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है। यही ध्यान में चेतना परमात्म चेतना से  मिलती है, स्पर्श करती है, उसे धारण करती है।

👏श्वेता, DIYA

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