Thursday 23 January 2020

महिलाओं को मासिक शौच में 40 दिवसीय अनुष्ठान में व्रत व जप करना चाहिए या नहीं ?

प्रश्न - *प्रणाम दी*
*महिलाओं को मासिक शौच में 40 दिवसीय अनुष्ठान में व्रत व जप करना चाहिए या नहीं ?*
*कितने दिन तक नहीं करना चाहिए या कितने दिन बाद करना चाहिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में दूसरी माला लेकर जप कर सकते हैं ताकि नियमितता नहीं छूटे इसलिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में यज्ञादि कर सकते हैं?*
*यज्ञ के कार्यक्रम में सहयोग कर सकते हैं या नहीं ?*
*मन्त्र लेखन करना चाहिए या नहीं ?*
*कृपया समाधान किजिए।*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*40 दिवसीय अनुष्ठान के यदि प्रारम्भ में ही मासिक आशौच है तो अनुष्ठान का संकल्प मानसिक ले लें व मानसिक स्तर पर शान्तिकुंज में रखे शक्ति कलश का ध्यान करके मौन मानसिक जप प्रारम्भ कर दें। यदि 40 दिवसीय अनुष्ठान  के अंत में मासिक आशौच है तो उतने दिन का ब्रेक समझें, मानसिक एक पूर्णाहुति शान्तिकुंज यज्ञ स्थल पर कर लें। स्वच्छता के बाद किसी भी दिन घर पर यज्ञ द्वारा पूर्णाहुति कर लें। व्रत इत्यादि नियम पालन के 40 ही दिन करना है चाहे मासिक आशौच हो या नहीं। बचा हुआ जप पूर्णाहुति के बाद अवश्य कर लें। यदि मासिक असौच एक साइकल(5 दिन) या दो बार साइकल(10 दिन) इन 40 दिनों में पड़ रहा है, तो उतने दिन का स्थूल पूजन ब्रेक(छुट्टी) होगी। गायत्री माता जी ने यह सिस्टम स्त्री को दिया है अतः वह सब जानती हैं। आपको टेंशन लेने की जरूरत नहीं है।*

*मासिक अशौच(5 दिन ब्रेक) के दिनों में अनुष्ठान चल रहा हो तो उसे उतने दिन के लिए स्थूल पूजन व माला जो बन्द करके ब्रेक(छुट्टी) ले लें, 5 दिन की निवृत्ति के बाद, जिस गणना से छोड़ा था, वहीं से फिर आरम्भ किया जा सकता है। कलश भी शुद्धि के बाद बीच में भी स्थापित किया जा सकता है, और निवृत्ति  के बाद भी उठाया जा सकता है।  बिना माला का मानसिक जप-ध्यान किसी भी स्थिति में करते रहा जा सकता है, तो मासिक अशौच में भी कर सकते हैं, बस ट्विस्ट यह है कि यह अनुष्ठान की संकल्पित संख्या में काउंट नहीं होगा, क्योंकि अनुष्ठान के लिए उपांशु जप(होठ हिलते रहें मग़र शब्द बाहर न निकले) और घृत दीपक के समक्ष देवाहवाहन के साथ किया मान्य होता है।*

*माता भगवती ने ही सृष्टि की रचना की है, स्त्री के कॉम्प्लेक्स प्रजनन सिस्टम का सॉफ्टवेयर उन्होंने ही स्थापित किया है, जिससे सृजन चलता रहे। अतः उन्हें आपकी मनःस्थिति व परिस्थितियों का भान है। आप से तो माता चेतन स्तर पर स्वयं जुड़ी हैं, शरीर पर आशौच लागू होता है, मन व आत्मस्तर पर नहीं। आत्म स्तर पर किया मौन मानसिक जप आपके कल्याण में सहायक होगा।*

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

Reference Book - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल - अशौच प्रतिबन्ध

👇🏻👇🏻👇🏻 *यदि 40 दिवसीय अनुष्ठान के बीच में एक बार मासिक असौच पड़ रहा और आप जप को 40 दिन के भीतर ही पूरा करने की इच्छुक है तो*
👇🏻
जिनको अनुष्ठान के बीच मे केवल एक बार 5 दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी वो 36 माला रोज कर लें व 5 दिन उन दिनों की छुट्टी से परेशान न हों। 36 माला से 35 दिन में 1 लाख 26 हज़ार जप हो जाएगा

👇🏻👇🏻 *यदि 40 दिन के बीच दो बार  मासिक अशौच पड़ने की संभावना है तो*

जिनको अनुष्ठान के बीच मे दो बार 5 - 5 दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी, अर्थात टोटल 10 दिन की छुट्टी, वो 42 माला रोज कर लें व 10 दिन उन दिनों की छुट्टी से परेशान न हों। 42 माला से 30 दिन के जप में 1 लाख 26 हज़ार जप हो जाएगा।

यदि कुछ जप बच जाए किन्ही कारण वश तो उतना जप गुरुदेव से उधार लेकर पूर्णाहुति के दिन पूर्णाहुति कर लें। पूर्णाहुति के बाद उतना जप करके गुरुदेव को समर्पित कर लोन चुका दें। बैंक सिस्टम की तरह तीन माला एक्स्ट्रा का ब्याज भी जपकर दे दीजियेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...