Tuesday, 28 January 2020

प्रश्न - *वसंत पर्व का महत्त्व बच्चों के कैसे समझाएँ? पूजन से पूर्व उसकी भूमिका हेतु स्कूल में क्या बोलें?*

प्रश्न - *वसंत पर्व का महत्त्व बच्चों के कैसे समझाएँ? पूजन से पूर्व उसकी भूमिका हेतु स्कूल में क्या बोलें?*

उत्तर- सर्वप्रथम देव मंच इत्यादि सजा दें व पूजन की पूर्व व्यवस्था बना लें। प्रारंभिक गायत्रीमंत्र बोलकर और व्यास पीठ के मन्त्र बोल लें। स्वयं को मन ही मन गुरुदेव का निमित्त मानकर गुरुचेतना का निज जिह्वा में, विचारों में और हृदय में मन ही मन आह्वाहन करें।

*फिर वसन्तपर्व भूमिका में बच्चों को निम्नलिखित बातें एक कथा के माध्यम से बोलें:-*

एक बार भगवान कृष्ण समस्त रानियों, दरबारियों, ऋषिमुनियों, देवताओं सहित एक बगीचे में धर्म चर्चा कर रहे थे। वसंत का मौसम था, पुराने पत्ते झड़ने के बाद नए नए पत्ते व हरियाली मन मोहक थी।

नारद जी ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा, प्रभु मनुष्य के जीवन में भी वसंत आये व वह भी आनन्द को प्राप्त हो इसलिए कोई उपाय बताइये।

तब श्री भगवान बोले:- मनुष्य की मनुष्यता बुद्धि के सही प्रयोग से ही प्राप्त होती है। मनुष्य का वसंत उसके ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहने से ही सम्भव होगा। मनुष्य के दुःखों का कारण अज्ञानता ही है। अतः आइये हम सभी माता सरस्वती का आह्वाहन करें। तब निम्नलिखित मंत्रो से भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को धर्मचर्चा के स्थान पर वसंत पंचमी को बुलाया।

ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि। - २०.८४

पुनः उनकी स्तुति में समस्त उपस्थित लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ सरस्वती माता की स्तुति की:-

ॐ मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये, मातः सदैव कुरुवासमुदारभावे।

स्वीयाखिलावयव- निर्मल, शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥

सरस्वति महाभागे, विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि, विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरंचिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिल- मनोरथदे महार्हे,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥

*माता सरस्वती ने प्रकट होकर भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और कहा - प्रभु आदेश करें क्या आज्ञा है?*

भगवान श्रीकृष्ण बोले - हे माता हम आपके जन्मोत्सव को *वसन्तपंचमी उत्सव के नाम से मनाना चाहते हैं।*

*हे सरस्वती माते, मनुष्य के जीवन में वसंत और खुशियाँ  ज्ञान से ही सम्भव है। जीवन में मधुर संगीत जीवन जीने की कला सीखने से ही सम्भव है। ज्ञान से मनुष्य जैसी चाहे वैसी स्वयं के लिए सृष्टि कर सकता है, अपने आसपास के वातारण को बदल सकता है। ज्ञान से अपने जीवन मे वसंत ला सकता है।*

आज से वसन्त पंचमी पर्व शिक्षा, साक्षरता, विद्या और विनय का पर्व होगा। ज्ञान, कला, विविध गुण, विद्या को- साधना को बढ़ाने, उन्हें प्रोत्साहित करने का पर्व है- वसन्त पंचमी पर्व होगा। हे माते, मनुष्यों में सांसारिक, व्यक्तिगत जीवन का सौष्ठव, सौन्दर्य, मधुरता उसकी सुव्यवस्था यह सब विद्या, शिक्षा तथा गुणों के ऊपर ही निर्भर करते हैं। अशिक्षित, गुणहीन, बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया हैं। ज्ञानहीन व्यक्ति स्वयं दुःख का सृजन करता है। ज्ञानवान व्यक्ति स्वयं भी सुखी रहता है और लोगों का भी मार्गदर्शन करता है। साहित्य सङ्गीत कलाविहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। इसलिए इस धरती के सभी मनुष्य अपने जीवन को इस पशुता से ऊपर उठाकर विद्या- सम्पन्न, गुण सम्पन्न- गुणवान् बनाएँगे यही प्रेरणा वसन्त पंचमी त्यौहार देगा।

हे माते, आज के दिन जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक आपकी आराधना करें और ज्ञान क्षेत्र में बढ़ने के लिए संकल्पित हो, हे माते मुझे वचन दीजिये कि आप उसकी सहायता करेंगी।

*माता सरस्वती ने प्रशन्न होकर वचन भगवान श्री कृष्ण को दिया कि - जो मनुष्य श्रद्धा भाव से मुझे आज के दिन आह्वाहित करेगा, ज्ञानवान बनने के लिए संकल्पित होगा, ज्ञानयज्ञ करेगा मैं उसकी सहायता करूंगी।*

द्वापर के उस दिन से आजतक प्रत्येक वर्ष हम सभी वसन्तपंचमी के दिन अपनी बुद्धि में माता सरस्वती का आह्वाहन करते हैं, अनवरत ज्ञान प्राप्ति हेतु संकल्पित होते हैं। इन्हीं संकल्पों का पुनः लेखा जोखा अगले वर्ष वसन्तपंचमी में करते हैं और पुनः प्रति वर्ष संकल्पित होते हैं।

*वसन्तपर्व सत्संकल्प - माता सरस्वती के साथ ज्ञानवान बनने का अनुबन्ध*

1- हे माता सरस्वती, हम आपका अपनी बुद्धि में, जिह्वा में और हृदय में आह्वाहन करते हैं।

2- ज्ञानवान बनने के लिए अनवरत प्रयास करेंगे। कुछ न कुछ बुद्धि बढाने के लिए करेंगे।

3- प्रतिदिन कम से कम <1 से 2> पेज़ अपने ज्ञान को बढ़ाने हेतु अवश्य कुछ  सम्बन्धित विषय व अध्यात्म साहित्य पढ़ेंगे।

4- प्रतिदिन कम से कम <1 से 2> पेज जरूर लिखेंगे।

5- प्रतिदिन कुछ न कुछ नया सीखेंगे।

6- बुद्धि पॉवर बढाने के लिए गायत्रीमंत्र का 108 बार जप करेंगे।

7- बुद्धि को व मन को स्थिर करने के लिए 10 मिनट उगते सूर्य का ध्यान करेंगे।

8- बुद्धि के व्यायाम व बुद्धि को ऊंचाई  पर ले जाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम और गणेश योग (सुपर ब्रेन योग) करेंगे।

9- मैं बुद्धि पर समय साधन इन्वेस्ट करूंगा। गर्दन से नीचे भोजन वस्त्र व शयन हेतु जो भी समय व धन ख़र्च करता हूँ उसी के बराबर समय व धन बुद्धि के निर्माण व ज्ञान प्राप्ति में करूंगा।

10- मैं मनुष्य हूँ, पशुवत जीवन - खाना, पीना, सोना और प्रजनन में ही लिप्त नहीं रहूँगा। अपितु मानव जीवन की गरिमा अनुसार स्वयं के शरीर को भगवान का मंदिर मानकर इसके आरोग्य की रक्षा व रखरखाव करूंगा और साथ ही ज्ञान में दिन दूनी रात चौगनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहूँगा।

उपरोक्त सङ्कल्प दिलवा कर आगे का पूजन क्रम करवाएं।

🙏🏻 इतनी भूमिका व सङ्कल्प वसन्तपर्व की गरिमा व मान को बढाने के लिए पर्याप्त है। सरस्वती माता को उनका भगवान श्रीकृष्ण को दिया वचन याद दिला दिया गया और मनुष्य को माता सरस्वती के साथ ज्ञान प्राप्ति के अनुबंध संकल्पों से बांध दिया गया।🙏🏻

रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। अतः सभी सरस्वती भक्त जो वचन लें उसका निष्ठा पूर्वक पालन करें। यदि किसी दिन न पढ़ या लिख पाएं तो दूसरे दिन उतना लिख व पढ़ लें। यदि मनुष्य अपने सङ्कल्प तोड़ेगा तो स्वतः भगवान की कृपा का अनुबंध टूट जाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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