*कविता - मेरी सासु माता की स्तुति*
हे पति की जननी,
हे सासु माता! तुम्हारी बलिहारी है,
तुम्हारे दिए संस्कारों से,
हमारी घर गृहस्थी न्यारी है।
तुम न होती तो,
हम कुँवारे मर जाते,
भारत भूमि में अपने लिए,
वर कहाँ से लाते।
हे जननी हे! हे जगदम्बा!,
हे मेरे पति की प्यारी अम्मा,
तुम जब प्रशन्न रहती हो,
मां पार्वती सी लगती हो,
जब तुम अप्रशन्न रहती हो,
साक्षात काली -दुर्गा लगती हो।
घर की सब सुख शांति,
हे माता! तुम पर निर्भर करती है,
तुम्हारे रुसने- रूठने पर,
यह दुनियाँ बेगानी लगती है।
तुम सिर्फ माता नहीं हो,
हमारे लिए तो भारत माता हो,
हे मेरे घर की गृहमंत्री,
तुम ही गृह कानून की ज्ञाता हो।
तुमको जब प्रशन्न रखती हूँ,
तो पूरा घर मुझ पर प्रशन्न रहता है,
उस दिन पूरा घर चैन से सोता है,
यह घर स्वर्ग सा सुंदर लगता है।
भारतीय संस्कृति की खूबसूरती,
तब ही समझ में आती है,
जब एक लड़की बहु बनकर,
एक नए घर में आती है।
सास बहू में अनजाना,
एक निज पहचान का युद्ध ठनता है,
मिसेज़ के साथ सरनेम से,
जब सास बहू दोनों को जाना जाता है।
इस युद्ध के कारण को,
हे सासु माँ! चलो समझते हैं,
मिसेज़ व सरनेम को छोड़कर,
चलो अपने नाम व काम से जाने जाते हैं।
हम तुम लड़ेंगे माँ तो,
नुकसान उनको पहुंचेगा,
जो तुमको सबसे प्यारा है,
जो मुझको भी सबसे प्यारा है।
तुम्हें छोड़कर भी,
वो सुखी नहीं रह पाएगा,
मुझे छोड़कर भी,
वही दुःख सबसे ज्यादा पायेगा।
क्यों न उसकी ख़ुशी के लिए हे माँ!
हम दोनों मित्रवत हो जाएं,
सांप नेवले की दुश्मनी छोड़कर,
माँ और बेटी बन जाएं।
जैसे तुम एक दिन सबकुछ छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई थी,
वैसे ही मैं भी अपनों को छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई हूँ।
तुमने जैसे प्यार से,
यह घर परिवार को सम्हाला,
पूरी श्रद्धा निष्ठा इसको अपनाया,
मैं भी तुम्हारी तरह,
इस घर को अपनाना चाहती हूँ,
तुम्हारी स्नेह व कृपा दृष्टि में,
यहां घर संसार बसाना चाहती हूँ।
युगऋषि कहते हैं,
जिनके भीतर देवत्व जग गया,
वह जहां है वही स्वर्ग बना लेंगे,
जिनके भीतर असुरत्व जग गया,
वह जहां हैं वहीं नर्क बसा लेंगे।
आओ हम तुम मिलकर,
भगवान से प्रार्थना करें,
हे प्रभु, उनसे वह सद्बुद्धि मांग लें,
जिससे हम प्रेमपूर्वक-मित्रवत रह सकें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
सास व बहु - "भारत देश मे एक ही तरह से पुकारी जाती हैं" उदाहरण - मेरा लो तो - मिसेज़ चक्रवर्ती मुझे भी बोला जाएगा और हमारी सास जी को भी। ऐसे ही कोई शुक्ला व मिश्रा हो तो उसकी भी पहचान बनती है - मिसेज शुक्ला व मिसेज़ मिश्रा। इस तरह सासु माँ को लगता है कि मुझसे मेरी पहचान छीन रही है। बहु को लगता है यह क्या मेरी नई पहचान है। अगर लड़कियां भी सिर्फ़ अपने नाम से व काम से जानी जाएं। एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारें तो काफी घरों के युद्ध टल सकते हैं। घर नरक बनने से बच सकता है। यदि बेटे से है प्यार तो उसे जिस बहु से है प्यार उससे तुम भी करो प्यार। यदि पति से है प्यार तो उसका पहला प्यार उसकी माता से तुम भी करो प्यार। सास बहू दोनों के झगड़े में लड़के सैन्डविच बनकर पीसते हैं और उनका दम घुटता है। उन्हें बचाने की एक छोटी सी कोशिश में एक इस हास्य कविता व स्तुति में यही मैसेज दिया है।
हे पति की जननी,
हे सासु माता! तुम्हारी बलिहारी है,
तुम्हारे दिए संस्कारों से,
हमारी घर गृहस्थी न्यारी है।
तुम न होती तो,
हम कुँवारे मर जाते,
भारत भूमि में अपने लिए,
वर कहाँ से लाते।
हे जननी हे! हे जगदम्बा!,
हे मेरे पति की प्यारी अम्मा,
तुम जब प्रशन्न रहती हो,
मां पार्वती सी लगती हो,
जब तुम अप्रशन्न रहती हो,
साक्षात काली -दुर्गा लगती हो।
घर की सब सुख शांति,
हे माता! तुम पर निर्भर करती है,
तुम्हारे रुसने- रूठने पर,
यह दुनियाँ बेगानी लगती है।
तुम सिर्फ माता नहीं हो,
हमारे लिए तो भारत माता हो,
हे मेरे घर की गृहमंत्री,
तुम ही गृह कानून की ज्ञाता हो।
तुमको जब प्रशन्न रखती हूँ,
तो पूरा घर मुझ पर प्रशन्न रहता है,
उस दिन पूरा घर चैन से सोता है,
यह घर स्वर्ग सा सुंदर लगता है।
भारतीय संस्कृति की खूबसूरती,
तब ही समझ में आती है,
जब एक लड़की बहु बनकर,
एक नए घर में आती है।
सास बहू में अनजाना,
एक निज पहचान का युद्ध ठनता है,
मिसेज़ के साथ सरनेम से,
जब सास बहू दोनों को जाना जाता है।
इस युद्ध के कारण को,
हे सासु माँ! चलो समझते हैं,
मिसेज़ व सरनेम को छोड़कर,
चलो अपने नाम व काम से जाने जाते हैं।
हम तुम लड़ेंगे माँ तो,
नुकसान उनको पहुंचेगा,
जो तुमको सबसे प्यारा है,
जो मुझको भी सबसे प्यारा है।
तुम्हें छोड़कर भी,
वो सुखी नहीं रह पाएगा,
मुझे छोड़कर भी,
वही दुःख सबसे ज्यादा पायेगा।
क्यों न उसकी ख़ुशी के लिए हे माँ!
हम दोनों मित्रवत हो जाएं,
सांप नेवले की दुश्मनी छोड़कर,
माँ और बेटी बन जाएं।
जैसे तुम एक दिन सबकुछ छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई थी,
वैसे ही मैं भी अपनों को छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई हूँ।
तुमने जैसे प्यार से,
यह घर परिवार को सम्हाला,
पूरी श्रद्धा निष्ठा इसको अपनाया,
मैं भी तुम्हारी तरह,
इस घर को अपनाना चाहती हूँ,
तुम्हारी स्नेह व कृपा दृष्टि में,
यहां घर संसार बसाना चाहती हूँ।
युगऋषि कहते हैं,
जिनके भीतर देवत्व जग गया,
वह जहां है वही स्वर्ग बना लेंगे,
जिनके भीतर असुरत्व जग गया,
वह जहां हैं वहीं नर्क बसा लेंगे।
आओ हम तुम मिलकर,
भगवान से प्रार्थना करें,
हे प्रभु, उनसे वह सद्बुद्धि मांग लें,
जिससे हम प्रेमपूर्वक-मित्रवत रह सकें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
सास व बहु - "भारत देश मे एक ही तरह से पुकारी जाती हैं" उदाहरण - मेरा लो तो - मिसेज़ चक्रवर्ती मुझे भी बोला जाएगा और हमारी सास जी को भी। ऐसे ही कोई शुक्ला व मिश्रा हो तो उसकी भी पहचान बनती है - मिसेज शुक्ला व मिसेज़ मिश्रा। इस तरह सासु माँ को लगता है कि मुझसे मेरी पहचान छीन रही है। बहु को लगता है यह क्या मेरी नई पहचान है। अगर लड़कियां भी सिर्फ़ अपने नाम से व काम से जानी जाएं। एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारें तो काफी घरों के युद्ध टल सकते हैं। घर नरक बनने से बच सकता है। यदि बेटे से है प्यार तो उसे जिस बहु से है प्यार उससे तुम भी करो प्यार। यदि पति से है प्यार तो उसका पहला प्यार उसकी माता से तुम भी करो प्यार। सास बहू दोनों के झगड़े में लड़के सैन्डविच बनकर पीसते हैं और उनका दम घुटता है। उन्हें बचाने की एक छोटी सी कोशिश में एक इस हास्य कविता व स्तुति में यही मैसेज दिया है।
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