*यज्ञ चिकित्सा(यगयोपैथी)* - युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी आयुर्वेद व यज्ञ को एक दूसरे का पूरक मानते हैं। सरल शब्दों में यदि किसी को यज्ञ चिकित्सा के बारे में कहना हो तो कह सकते हैं कि *यज्ञ चिकित्सा वह माध्यम है जिसमें रोगी को औषधि धूम्र तरङ्ग के साथ श्वांस मार्ग से पहुँचाई जाती है।*
मनुष्य केवल नाक से श्वांस नहीं लेता, वह अपितु शरीर के समस्त रोम छिद्रों से श्वांस लेता है। यदि नाक खुली हो और चासनी के लेप से मात्र शरीर के समस्त रोम छिद्र बन्द कर दिये जायें तो भी मनुष्य दम घुटने से मर जायेगा। पसीना जिस रोमछिद्र से निकलता है, उसी मार्ग से श्वसन भी रोम छिद्र द्वारा चलता है।
रोगों की जड़ पेट और मन होता है, मन भी दो प्रमुख भाग में बंटा रहता है, एक विचार क्षेत्र जिसकी स्पीड हज़ार गुना है और दूसरी भावना क्षेत्र जिसकी स्पीड बहुत कम है। विचारों की स्पीड के साथ भावनाओं को जब तक उद्वेलित न किया जाय तो अंतःस्रावी ग्रन्थियों में अपेक्षित रिसाव नहीं होता। मनुष्य का शरीर स्वयं को क्योर और हील करने की क्षमता रखता है, यह औषधि अंतः स्त्रावी ग्रन्थियों को छोड़ने के लिए विचारों और भावों का सकारात्मक उद्वेलन अनिवार्य है। शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म पुस्तक में शब्द से आष्फोट को बहुत गहराई से समझाया गया है।
लय बद्ध श्रद्धा के साथ मन्त्र जप शब्द शक्ति का वह हथियार है जिससे मनुष्यों की अंत:शक्ति तो जागृत करने की क्षमता तो है ही साथ ही वृक्षों व औषधीय वनस्पतियों की अंत:शक्ति को भी जागृत करने की क्षमता है। जिन्होंने नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वसु की रिसर्च पढ़ी होगी, वो जानते हैं कि वृक्ष वनस्पतियों में भी मनुष्यो की तरह जीवन है, मग़र मनुष्य चैतन्य ज्यादा है और वनस्पतियों की जीवन शक्ति सुषुप्त है। लेकिन उन्हें भी मन्त्र शक्ति से जगाकर उनकी उच्च क्षमता को पाया जा सकता है। मन्त्र शब्द शक्ति में जब श्रद्धा-भावना का समावेश किया जाय तो चुम्बकत्व भी पैदा किया जा सकता है, और ब्रह्मांड से भी अपेक्षित शक्ति को आकर्षित किया जा सकता है।
जड़-चेतन का यह उपरोक्त ज्ञान हमारे ऋषि मुनि बहुत गहराई से जानते थे। अतः वह रोगोपचार के लिए यज्ञ चिकित्सा का उपयोग करते थे। साधारण अग्नि को प्रथम मन्त्रों द्वारा यज्ञाग्नि में बदलते थे, अग्नि की अन्तः शक्ति जागृत करते थे। फिर चयनित रोग सम्बन्धी औषधि को पोटेंसी औऱ बढाने के लिए चन्द्र गायत्री या सूर्य गायत्री का मन्त्र जपते थे। स्वाहा शब्द की ध्वनि तरङ्ग चोट से औषधि भष्मीभूत होकर वायुभूत मन्त्र तरङ्ग युक्त होती थी। जिन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी पढ़ी है वो जानते हैं किसी भी पदार्थ को जितना सूक्ष्म स्तर परमाणु स्तर पर तोड़ेंगे उतना ही उसकी अधिक शक्ति प्राप्त कर सकेंगे। यही यज्ञ कर रहा है औषधि को मन्त्र शक्ति से सूक्ष्मतम स्तर पर तोड़कर धूम्र रूप में सीधे श्वसन मार्ग से मष्तिष्क के कोषों में पहुंचाकर उन्हें रिलैक्स करता है। साथ ही अपेक्षित अच्छे हार्मोन्स के श्राव के लिए मस्तिष्क से निर्देश देता है। तदुपरांत फेफड़े से होती हुई वायुभूत औषधि सीधे हृदय तक पहुंचकर रक्त में मिल जाती है। रक्त मार्ग से समस्त शरीर तक पहुंच जाती है। रोम छिद्रों से होती हुई औषधि तरङ्ग धूम्र सुरक्षा चक्र रोगी को प्रदान करता है।
आयुर्वेदिक औषधियाँ एलोपैथी की तरह फ़ास्ट असर नहीं करती। एलोपैथी रोग दबाता है, आयुर्वेद रोग को जड़ से ठीक करता है। थोड़ा वक्त लगता है, लेक़िन इलाज़ बेहतरीन होता है। रोगप्रतिरोधक क्षमता यज्ञ चिकित्सा से इस कदर बढ़ जाती है कि जल्दी रोग के विषाणु परेशान नहीं कर पाते।
हवा में व्याप्त संक्रमण फैलाने वाले विषाणु व रोगाणु को यह मन्त्र तरङ्ग युक्त औषधीय धूम्र नष्ट कर देता है। इस पर विभिन्न संस्थाओं ने रिसर्च किया है, डॉक्टर ममता सक्सेना की रिसर्च यगयोपैथी वेबसाइट और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी की भी रिसर्च इसी से सम्बंधित उपलब्ध है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
मनुष्य केवल नाक से श्वांस नहीं लेता, वह अपितु शरीर के समस्त रोम छिद्रों से श्वांस लेता है। यदि नाक खुली हो और चासनी के लेप से मात्र शरीर के समस्त रोम छिद्र बन्द कर दिये जायें तो भी मनुष्य दम घुटने से मर जायेगा। पसीना जिस रोमछिद्र से निकलता है, उसी मार्ग से श्वसन भी रोम छिद्र द्वारा चलता है।
रोगों की जड़ पेट और मन होता है, मन भी दो प्रमुख भाग में बंटा रहता है, एक विचार क्षेत्र जिसकी स्पीड हज़ार गुना है और दूसरी भावना क्षेत्र जिसकी स्पीड बहुत कम है। विचारों की स्पीड के साथ भावनाओं को जब तक उद्वेलित न किया जाय तो अंतःस्रावी ग्रन्थियों में अपेक्षित रिसाव नहीं होता। मनुष्य का शरीर स्वयं को क्योर और हील करने की क्षमता रखता है, यह औषधि अंतः स्त्रावी ग्रन्थियों को छोड़ने के लिए विचारों और भावों का सकारात्मक उद्वेलन अनिवार्य है। शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म पुस्तक में शब्द से आष्फोट को बहुत गहराई से समझाया गया है।
लय बद्ध श्रद्धा के साथ मन्त्र जप शब्द शक्ति का वह हथियार है जिससे मनुष्यों की अंत:शक्ति तो जागृत करने की क्षमता तो है ही साथ ही वृक्षों व औषधीय वनस्पतियों की अंत:शक्ति को भी जागृत करने की क्षमता है। जिन्होंने नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वसु की रिसर्च पढ़ी होगी, वो जानते हैं कि वृक्ष वनस्पतियों में भी मनुष्यो की तरह जीवन है, मग़र मनुष्य चैतन्य ज्यादा है और वनस्पतियों की जीवन शक्ति सुषुप्त है। लेकिन उन्हें भी मन्त्र शक्ति से जगाकर उनकी उच्च क्षमता को पाया जा सकता है। मन्त्र शब्द शक्ति में जब श्रद्धा-भावना का समावेश किया जाय तो चुम्बकत्व भी पैदा किया जा सकता है, और ब्रह्मांड से भी अपेक्षित शक्ति को आकर्षित किया जा सकता है।
जड़-चेतन का यह उपरोक्त ज्ञान हमारे ऋषि मुनि बहुत गहराई से जानते थे। अतः वह रोगोपचार के लिए यज्ञ चिकित्सा का उपयोग करते थे। साधारण अग्नि को प्रथम मन्त्रों द्वारा यज्ञाग्नि में बदलते थे, अग्नि की अन्तः शक्ति जागृत करते थे। फिर चयनित रोग सम्बन्धी औषधि को पोटेंसी औऱ बढाने के लिए चन्द्र गायत्री या सूर्य गायत्री का मन्त्र जपते थे। स्वाहा शब्द की ध्वनि तरङ्ग चोट से औषधि भष्मीभूत होकर वायुभूत मन्त्र तरङ्ग युक्त होती थी। जिन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी पढ़ी है वो जानते हैं किसी भी पदार्थ को जितना सूक्ष्म स्तर परमाणु स्तर पर तोड़ेंगे उतना ही उसकी अधिक शक्ति प्राप्त कर सकेंगे। यही यज्ञ कर रहा है औषधि को मन्त्र शक्ति से सूक्ष्मतम स्तर पर तोड़कर धूम्र रूप में सीधे श्वसन मार्ग से मष्तिष्क के कोषों में पहुंचाकर उन्हें रिलैक्स करता है। साथ ही अपेक्षित अच्छे हार्मोन्स के श्राव के लिए मस्तिष्क से निर्देश देता है। तदुपरांत फेफड़े से होती हुई वायुभूत औषधि सीधे हृदय तक पहुंचकर रक्त में मिल जाती है। रक्त मार्ग से समस्त शरीर तक पहुंच जाती है। रोम छिद्रों से होती हुई औषधि तरङ्ग धूम्र सुरक्षा चक्र रोगी को प्रदान करता है।
आयुर्वेदिक औषधियाँ एलोपैथी की तरह फ़ास्ट असर नहीं करती। एलोपैथी रोग दबाता है, आयुर्वेद रोग को जड़ से ठीक करता है। थोड़ा वक्त लगता है, लेक़िन इलाज़ बेहतरीन होता है। रोगप्रतिरोधक क्षमता यज्ञ चिकित्सा से इस कदर बढ़ जाती है कि जल्दी रोग के विषाणु परेशान नहीं कर पाते।
हवा में व्याप्त संक्रमण फैलाने वाले विषाणु व रोगाणु को यह मन्त्र तरङ्ग युक्त औषधीय धूम्र नष्ट कर देता है। इस पर विभिन्न संस्थाओं ने रिसर्च किया है, डॉक्टर ममता सक्सेना की रिसर्च यगयोपैथी वेबसाइट और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी की भी रिसर्च इसी से सम्बंधित उपलब्ध है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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