प्रश्न - *प्रणाम दी, कल बेटे ने पूछा - हमेशा यज्ञ के बाद जय घोष क्यों लगाते है ?क्या कारण है ?*
उत्तर - आत्मीय बेटे, जय शब्द का अर्थ है कि हम जिसकी जय बोल रहे हैं उसके सर्वोच्च सत्ता को मानते हैं, उसकी कीर्ति और यश सर्वत्र फैले यह कामना करते हैं, जिसकी जय बोल रहे हैं उसके अनुशासन को मानेंगे, उसकी ध्वजा को सर्वत्र फैलाएंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।
अब यदि हमने किसी राजा या व्यक्ति की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि वह राजा व व्यक्ति की कीर्ति सर्वत्र फैले व हम उसका अनुशासन पालन करेंगे। उसके लिए सदैव समर्पित रहेंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।
युगऋषि मनुष्य की सच्ची कर्तव्य निष्ठा और समर्पण ईश्वर, धर्म, सत्य और राष्ट्र के प्रति लोगों की नियोजित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यज्ञ के बाद जो जयघोष का मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक क्रम लिखा है वह बहुत गूढ़ व रहस्यमय है। सभी के मनोभावों की प्रोग्रामिंग युगनिर्माण की ओर कर रहा है।
अब हमने गायत्री, यज्ञ, गुरु, भारत माता, धर्म व सत्य की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि इन सभी देवशक्तियों की कीर्ति सर्वत्र फैले, धर्म स्थापना सर्वत्र हो व हम सब उसका अनुशासन पालन करेंगे। उनके लिए सदैव समर्पित रहें। उनके लिए समर्पित होकर उनपर श्रद्धा- निष्ठा रखते हुए उनके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करें।
बेटे, जानते हों, हम जैसे लाखों लोग जयघोष बोलते हैं, मग़र इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक आध्यात्मिक प्रभाव को अत्यंत स्वल्प लोग ही जानते हैं।
युगऋषि कितने बड़े अध्यात्म व मनोवैज्ञानिक है, उनके प्रत्येक कर्मकांड भाष्कर में क्या क्या प्रोग्रामिंग कर रखी है, वो जो समझता है वह नतमस्तक हो जाता है। यह मात्र कर्मकांड नहीं है यह तो जीवन का विज्ञान है। आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक तंत्र खड़ा कर दिया है।
बहुत अच्छा लगा कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने के माध्यम से यह विज्ञान का मर्म जय घोष के पीछे का विज्ञान जन जन तक पहुँचेगा।
प्रश्न पूँछकर, उत्तर लिखकर गुरुसन्देश जन जन तक पहुंचाने हेतु, मुझे गुरु की सेवा का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बेटे, जय शब्द का अर्थ है कि हम जिसकी जय बोल रहे हैं उसके सर्वोच्च सत्ता को मानते हैं, उसकी कीर्ति और यश सर्वत्र फैले यह कामना करते हैं, जिसकी जय बोल रहे हैं उसके अनुशासन को मानेंगे, उसकी ध्वजा को सर्वत्र फैलाएंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।
अब यदि हमने किसी राजा या व्यक्ति की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि वह राजा व व्यक्ति की कीर्ति सर्वत्र फैले व हम उसका अनुशासन पालन करेंगे। उसके लिए सदैव समर्पित रहेंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।
युगऋषि मनुष्य की सच्ची कर्तव्य निष्ठा और समर्पण ईश्वर, धर्म, सत्य और राष्ट्र के प्रति लोगों की नियोजित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यज्ञ के बाद जो जयघोष का मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक क्रम लिखा है वह बहुत गूढ़ व रहस्यमय है। सभी के मनोभावों की प्रोग्रामिंग युगनिर्माण की ओर कर रहा है।
अब हमने गायत्री, यज्ञ, गुरु, भारत माता, धर्म व सत्य की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि इन सभी देवशक्तियों की कीर्ति सर्वत्र फैले, धर्म स्थापना सर्वत्र हो व हम सब उसका अनुशासन पालन करेंगे। उनके लिए सदैव समर्पित रहें। उनके लिए समर्पित होकर उनपर श्रद्धा- निष्ठा रखते हुए उनके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करें।
बेटे, जानते हों, हम जैसे लाखों लोग जयघोष बोलते हैं, मग़र इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक आध्यात्मिक प्रभाव को अत्यंत स्वल्प लोग ही जानते हैं।
युगऋषि कितने बड़े अध्यात्म व मनोवैज्ञानिक है, उनके प्रत्येक कर्मकांड भाष्कर में क्या क्या प्रोग्रामिंग कर रखी है, वो जो समझता है वह नतमस्तक हो जाता है। यह मात्र कर्मकांड नहीं है यह तो जीवन का विज्ञान है। आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक तंत्र खड़ा कर दिया है।
बहुत अच्छा लगा कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने के माध्यम से यह विज्ञान का मर्म जय घोष के पीछे का विज्ञान जन जन तक पहुँचेगा।
प्रश्न पूँछकर, उत्तर लिखकर गुरुसन्देश जन जन तक पहुंचाने हेतु, मुझे गुरु की सेवा का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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