Thursday 6 February 2020

एक पहेली, बूझो तो जाने, वो कौन जो सो रहे हैं?

*एक पहेली, बूझो तो जाने*

दिन ब दिन घट रहे हैं,
फ़िर भी सो रहे हैं,
दिन ब दिन वजूद खो रहे हैं,
फिर भी मदहोशी में जी रहे हैं।

आर्यावर्त विशाल था जिसके पास,
उनके खाली हैं आज हाथ,
एक भी देश उनके धर्म का नहीं अब,
फ़िर भी सो रहे हैं,
जात पात को लेकर रो रहे हैं।

पूरे विश्व में अल्पसंख्यक बन गए हैं,
कुछ परसेंट भी नहीं रह गए हैं,
जो विश्वगुरु थे कभी,
वो अज्ञानता में जी रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

देश यही था व पार्लियामेंट भी यही था,
वादियों में 6 लाख से मात्र 600 रह गए,
फ़िर संगठित न हो रहे हैं,
जातपात को रो रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

जब तक पड़ोस में आग है,
वो चद्दर ताने सो रहे हैं,
वो अपनों की चद्दर में आग लगने का,
वो इंतज़ार कर रहे हैं,
ख़ुद के लिए चिता सज़ा रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

जात पात हेतु वोट कर रहे,
फ़्री बिजली पानी चाह रहे,
मुफ़्त की बसों में सफ़र कर रहे,
सस्ते टमाटर-प्याज़ चाह रहे,
देश रहे न रहे,
वो चादर ताने सो रहे,
हकीकत भूले,
वो तो सो रहे।

विश्व के अल्पसंख्यक,
अब गायब होने की राह देख रहे,
पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान में,
अपनों के हाल को देख के भी न चेत रहे,
वो तो सो रहे हैं,
बेफिक्र जी रहे हैं।

बूझो तो जाने,
पहचानो तो माने,
यह हैं कौन जो अपने अस्तित्व को,
लावरवाही में खो रहे,
वो कौन जो धर्मनिरपेक्षता के भ्रम में जी रहे हैं,
वह कौन जो सो रहे?

🙏🏻श्वेता, DIYA

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