*प्यार और सम्मान* के बीच फर्क समझें, *व्यवहार कुशल बनकर* रिश्ते बचाएं व रिश्तों में नया स्वास्थ्य पाएं।
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पिछले 7 साल से काउंसलिंग कर रही हूँ, यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि परिवार में लोग एक दूसरे को प्यार तो देते हैं मग़र सम्मान नहीं देते। वस्तुतः हममें से कई लोग - *प्यार और सम्मान* के बीच फर्क नहीं जानते और एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं दिखता यह समझ नहीं पाते हैं।
स्त्री व पुरुष कोई किसी भी उम्र का परिवार में हो चाहे वो बालक, किशोर, युवा या वृद्ध हो। आप उसके अहंकार पर चोट कभी भी सार्वजनिक तौर पर नहीं करेंगे। तब जब वह अपने मित्र सर्कल में हो, तब उसे अतिरिक्त सम्मान देकर बात करें। एकांत में ही टीका टिप्पणी करें।
विश्वास मानिए 90% झगड़े घर के समाप्त हो जाएंगे जब आप रिश्तों में छोटे व बड़े सबको सम्मान देना सीख जाएंगे। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ आदतें अच्छी व कुछ बुरी होती हैं। यदि अच्छी आदतों की प्रसंशा नहीं करते तो आपको हक नहीं है कि बुरी आदत पर टीका टिप्पणी करें। अच्छी आदत सूक्ष्मदर्शी रूपी सूक्ष्म अवलोकन से दिखती है, बुरी आदत पहाड़ सी दिखती है।
किसी भी व्यक्ति की तुलना किसी अन्य से करके न समझाएँ, यदि किसी व्यवहारगत समस्या को सुलझाना भी है तो समस्या व समाधान की बात करें, ऐसा बिल्कुल न कहें कि देख तेरे इस दोस्त में यह क़्वालिटी है जो तुझमे नही है। अपितु यह कहें कि यह क़्वालिटी यदि आप अपने भीतर ला लें तो आपका सम्मान हमारी नज़रों में बढ़ जाएगा। सभी आपको ज्यादा पसंद करेंगे।
शब्दों को पैसे की तरह खर्च करें, कम बोलें लेकिन जो भी बोलें वह सधे हुए अच्छे बोल होने चाहिए। चाकू के बिना किचन की कल्पना नहीं की जा सकती, सब्जियों को वही काटती है, लेकिन यही चाकू असावधानी में उंगली भी काटती है और घाव भी देती है। मुँह में विद्यमान यह जिह्वा चाकू से अधिक धारदार है, जितनी उपयोगी है, उतनी ही असावधानी में घातक है।
चाकू का घाव भर जाएगा लेकिन शब्दो का घाव जो कि हृदय में लगा है जल्दी नहीं भरता। अतः हृदय से सम्मान व प्यार देने के साथ साथ जिह्वा से मीठे शब्दों से भी प्यार व सम्मान की अभिव्यक्ति करें।
मैं तो ऐसा ही हूँ या मैं तो ऐसी ही हूँ वाले सनकी एटीट्यूड से जितनी जल्दी बाहर आ जाएं, उतना भला हो जाएगा। यह सनक आपको अकेला कर देगी।
व्यवहार कुशलता सीखें व सुखी रहें, तीन छोटी पुस्तक आपकी सहायता करेंगी इन्हें पढ़िये:-
1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढाने की कला
3- दृष्टिकोण ठीक रखिये
*ब्रह्मवाक्य सन्देश* - प्यार और सम्मान भीख में नहीं मिलता, इसे कमाना पड़ता है। साथ ही प्यार और सम्मान दिए बिना कभी स्वयं को प्राप्त नहीं हो सकता। प्यार बिना सम्मान कभी पूर्णता प्राप्त नहीं करता।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उपरोक्त पुस्तक www.awgpstore.com पर उपलब्ध है।
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पिछले 7 साल से काउंसलिंग कर रही हूँ, यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि परिवार में लोग एक दूसरे को प्यार तो देते हैं मग़र सम्मान नहीं देते। वस्तुतः हममें से कई लोग - *प्यार और सम्मान* के बीच फर्क नहीं जानते और एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं दिखता यह समझ नहीं पाते हैं।
स्त्री व पुरुष कोई किसी भी उम्र का परिवार में हो चाहे वो बालक, किशोर, युवा या वृद्ध हो। आप उसके अहंकार पर चोट कभी भी सार्वजनिक तौर पर नहीं करेंगे। तब जब वह अपने मित्र सर्कल में हो, तब उसे अतिरिक्त सम्मान देकर बात करें। एकांत में ही टीका टिप्पणी करें।
विश्वास मानिए 90% झगड़े घर के समाप्त हो जाएंगे जब आप रिश्तों में छोटे व बड़े सबको सम्मान देना सीख जाएंगे। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ आदतें अच्छी व कुछ बुरी होती हैं। यदि अच्छी आदतों की प्रसंशा नहीं करते तो आपको हक नहीं है कि बुरी आदत पर टीका टिप्पणी करें। अच्छी आदत सूक्ष्मदर्शी रूपी सूक्ष्म अवलोकन से दिखती है, बुरी आदत पहाड़ सी दिखती है।
किसी भी व्यक्ति की तुलना किसी अन्य से करके न समझाएँ, यदि किसी व्यवहारगत समस्या को सुलझाना भी है तो समस्या व समाधान की बात करें, ऐसा बिल्कुल न कहें कि देख तेरे इस दोस्त में यह क़्वालिटी है जो तुझमे नही है। अपितु यह कहें कि यह क़्वालिटी यदि आप अपने भीतर ला लें तो आपका सम्मान हमारी नज़रों में बढ़ जाएगा। सभी आपको ज्यादा पसंद करेंगे।
शब्दों को पैसे की तरह खर्च करें, कम बोलें लेकिन जो भी बोलें वह सधे हुए अच्छे बोल होने चाहिए। चाकू के बिना किचन की कल्पना नहीं की जा सकती, सब्जियों को वही काटती है, लेकिन यही चाकू असावधानी में उंगली भी काटती है और घाव भी देती है। मुँह में विद्यमान यह जिह्वा चाकू से अधिक धारदार है, जितनी उपयोगी है, उतनी ही असावधानी में घातक है।
चाकू का घाव भर जाएगा लेकिन शब्दो का घाव जो कि हृदय में लगा है जल्दी नहीं भरता। अतः हृदय से सम्मान व प्यार देने के साथ साथ जिह्वा से मीठे शब्दों से भी प्यार व सम्मान की अभिव्यक्ति करें।
मैं तो ऐसा ही हूँ या मैं तो ऐसी ही हूँ वाले सनकी एटीट्यूड से जितनी जल्दी बाहर आ जाएं, उतना भला हो जाएगा। यह सनक आपको अकेला कर देगी।
व्यवहार कुशलता सीखें व सुखी रहें, तीन छोटी पुस्तक आपकी सहायता करेंगी इन्हें पढ़िये:-
1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढाने की कला
3- दृष्टिकोण ठीक रखिये
*ब्रह्मवाक्य सन्देश* - प्यार और सम्मान भीख में नहीं मिलता, इसे कमाना पड़ता है। साथ ही प्यार और सम्मान दिए बिना कभी स्वयं को प्राप्त नहीं हो सकता। प्यार बिना सम्मान कभी पूर्णता प्राप्त नहीं करता।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उपरोक्त पुस्तक www.awgpstore.com पर उपलब्ध है।
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