Wednesday 5 February 2020

Parent/Child Communication Technique

*Parent/Child Communication Technique*

बच्चों को सँस्कार तब ही दे सकेंगे जब वो आपको सुनेंगे। केवल आप माता पिता है और जन्म दिया है तो जो आप बोलोगे वह वही मानेगा यह सोचना भ्रम है। इस भ्रम से जितनी जल्दी बाहर आ जाएं उतना अच्छा होगा।

Rejection/Denial Mode से पहले बच्चे को Listening Mode सुनने की परिस्थिति में लाना। तब जो आप कहना चाहते हैं उसे वह सुनेगा।

उसे तथ्य-तर्क-प्रमाण से Information देना। बच्चे की कोई भी उम्र हो, उसे Respect देते हुए हर एक पहलू से अवगत कराना। Explain in detail, Why you want this will be good for you my son/daughter? जब हम क्या(What) और क्यों(Why) बच्चों को समझा देते हैं, तब यदि वो हाँ या ना कहेंगे तो इसके Response में उन्हें भी यह बताना होगा कि वो ऐसा क्यों नहीं चाहते? या वो क्या चाहते हैं?

हमें पता है कि माता-पिता जॉब में व्यस्त हैं। बच्चे बहुत सारी एक्टिविटी और पढ़ाई के लोड में दबे हैं। फिर भी माता-पिता और बच्चों के रिश्तों में दरार को हम रोक सकते हैं, यदि हम Communication skill बाल सम्वाद हेतु सीख लें।

एक बार एक मनोचिकित्सक ने Happy Parenting Workshop आयोजित की, दो ग्रुप में लोगों से टेबल बजाकर धुन निकालने को कहा, सामने ग्रुप को गाना बताना था। 99% लोग फेल हो गए। तब ट्रेनर ने कहा- जो बजा रहा था उसे मन में क्लियर था कि वह कौन सा गाना बजा रहा है। किंतु सामने वाला अनभिज्ञ था, तब जो बजा रहा व्व झल्ला रहा था कि इतनी आसान धुन भी यह समझ न पाया। अब दूसरी बार गाना पहले बताकर या उसका हिंट देकर टेबल बजाने को कहा, इस बार 70% से 80% लोग धुन समझ सके।

तब ट्रेनर ने कहा, माता पिता के रूप में आपको पता होता कि आप क्यों चिल्ला व झल्ला रहे हैं, पर बच्चा उसके पीछे के क्या(What) और (Why) उसे क्लियर जब नहीं होता तो वह कन्फ्यूज़ हो जाता है।

बच्चों से कभी यह मत कहिए - *I know what is right for you, discussion over* - बहस मत करो, मैं जानता हूँ क्या तुम्हारे लिए सही है।

अपितु कहिए - मेरा अनुभव कहता है कि जो मैं कह रहा हूँ यह आपकी समस्या का समाधान करेगा। हम इस पर डिस्कशन करके इसे बेहतर से और समझ सकते हैं, एक दूसरे का point of view इस पर क्या और क्यों है समझ सकते हैं। एक और एक ग्यारह होते हैं, हमारा और आपका दिमाग मिलकर ज्यादा बेहतरीन तरीके से समस्या समझ सकेगा। बोलो क्या कहते हो?

बच्चे को समझाएँ और उसे कन्फ्यूज न करें। उसे लाभ व हानि क्लियर समझने दें। छोटे प्रयास कारगर है, जब हम रोज थोड़ा ही सही उनसे सम्वाद करें, ज़रा पूँछे आज के दिन में क्या विशेष अनुभव रहा? क्या कुछ बात आज के दिन की आप हमसे शेयर करना चाहेंगे? दोस्त पहले बनिये और साथ मे माता पिता की जिम्मेदारी निभाइये। हम नहीं कहते बहुत समय दीजिये, थोड़ा ही सही क़्वालिटी वक्त पूर्ण अटेंशन के साथ बच्चों को दीजिये।

Think on paper तकनीक और Opposite Chair Communication तकनीक अपनाकर उनका नजरिया जीवन के प्रति व आपके प्रति क्या है, यह समझिये और तदनुसार व्यवहार कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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