Tuesday, 4 February 2020

अपनों से महाभारत लड़ने से बचो, एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करो

*एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करो*

एक बार दो बच्चों ने निर्णय लिया,
चलो टिफ़िन शेयर करेंगे,
मिलकर खाएंगे,
कुछ दिन ख़ुशी हुई,
मग़र यह ख़ुशी,
चंद रोज ही टिक सकी।

झगड़े शुरू हुए,
तुम्हारी मम्मी,
बहुत सादा खाना टिफ़िन में देती है,
और तुम्हारी मम्मी,
बहुत तीखा खाना टिफ़िन में देती है।

अरे मुझे तो तीखा पसन्द है,
अरे मुझे तो सादा पसन्द है,
क़रार टिफ़िन शेयर का भूल गया,
दोनों का मन रूठ गया,
क्या तुम्हारी मम्मा थोड़ा चटपटा नहीं बना सकती,
क्या तुम्हारी मम्मा थोड़ा मिर्च मसाला कम नहीं कर सकती,
फ़िर दोनो पुनः लड़ने लगे,
अपनी अपनी मम्मी को,
बेहतर साबित करने लगे।

झगड़ा सुन टीचर आई,
दोनों के मुद्दों की हुई सुनवाई,
टीचर ने कहा,
जैसे तुम दोनों की मम्मी है,
वैसे ही तुम्हारी नानियाँ,
तुम्हारी मम्मियों की मम्मी है,
उन्होंने जैसा बेटियों को,
खाना बनाना सिखाया,
जैसा खाना उन्हें बचपन से खिलाया,
वो ही सँस्कार व आहार उनमें रचबस गया,
अब वह उनके जीवन का अंग बन गया,
अतः जिसका टिफ़िन जैसा है,
वैसा स्वीकार करो,
अच्छा लगे तो खाओ,
वरना प्यार से इंकार करो,
कोई भी मम्मी,
तुम्हारे टिफ़िन शेयर के लिए,
अपने भोजन की आदत को नहीं बदलेगी,
अतः दोस्ती के लिए,
दोनों के अलग अस्तित्व, सँस्कार व आहार को स्वीकार करो,
पसन्द आये तो खाओ,
नहीं तो प्यार से इंकार करो,
टिफ़िन के लिए,
दोस्ती मत तोड़ो,
दोस्ती के लिए,
टिफ़िन को छोड़ो।

👇
शादी के बाद टिफ़िन की तरह,
जीवन दो बड़े युवा शेयर करते हैं,
कुछ दिन तो सब अच्छा लगता है,
फिर बच्चों की तरह झगड़ते हैं।

दोनों के मम्मियों के संस्कारों के बीच,
फिर महाभारत होता है,
एक दूसरे के सुधारने का,
फ़िर कवायद होता है,
भूल जाते हैं,
दोनों अपनी जगह सही हैं,
वो जो हैं,
वह अपनी मम्मियों की मात्र परवरिश है।

समझौता विवाह की प्रथम शर्त है,
समझौते में तो लड़ना ही व्यर्थ है,
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारना है,
खुद को दूसरे के साथ,
कैसे एडजस्ट करना है,
यह गहराई से सोचना है,
कब कितना किसको हावी होने देना है?
कब किसे किस हद के बाद "No" बोलना है,
स्वयं के अस्तित्व के साथ,
दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारना है,
किसी को किसी के अस्तित्व को,
कभी मिटाने नहीं देना है।

टीचर स्कूल में आती है,
असली जिंदगी में सदगुरु आता है,
उसे पुकारो और ध्यानस्थ हो,
उससे जीवन की समस्या का समाधान मांगो,
स्वयं के अस्तित्व और जीवनसाथी के अस्तित्व में,
सूझबूझ से सामंजस्य बिठा लो।

जब गुलाब को कमल बनने के लिए नहीं कहते,
जब सेब को संतरा बनने के लिए नहीं कहते,
फिर जीवनसाथी को उसके घर के सँस्कार को छोड़,
अपने सँस्कार में बदलने की जिद क्यों करते हो?

जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करो,
उसकी प्रकृति समझो व व्यवहार करो,
दोस्ती भरे रिश्ते नींव डालो,
अलग अलग अस्तित्व स्वीकार लो,
जीवन भर एक साथ चलो,
एक दूसरे को समझो,
तद्नुसार व्यवहार करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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