Wednesday 11 March 2020

विद्यार्थियों के लिए पँचकोशिय साधना - बालसँस्कारशाला, भाग 2

*विद्यार्थियों के लिए पँचकोशिय साधना - बालसँस्कारशाला, भाग 2* 👇

जैसा कि हमने पिछली क्लास में डिसकस किया कि संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी है वह द्रव्य एवं ऊर्जा (Matter and energy) का संगम है। समस्त दृश्य एवं अदृश्य इन्ही दोनो के संयोग से घटित होता है। हम और हमारा मस्तिष्क इसके अपवाद नहीं हैं। सृष्टि के मूलभूत कणों के विभिन्न अनुपात में संयुक्त होने से परमाणु और क्रमशः अणुओं का निर्माण हुआ है।

आइये थोड़ा मष्तिक रूपी कम्प्यूटर के हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर की थोड़ी जानकारी लेते हैं।

मस्तिष्क एवं इसके विभिन्न भाग, सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं भंडारण के लिए इन्हीं अणुओं पर निर्भर रहते हैं। यह विशेष अणु न्यूरोकेमिकल कहलाते हैं। मस्तिष्क एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं से मिल कर बना होता है जिन्हें तंत्रिका कोशा (Neuron) कहते हैं। ये मस्तिष्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होतीं हैं। इनकी कुल संख्या 1 खरब से भी अधिक होती है। संरचनात्मक रूप से मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग होते हैं। अग्र मस्तिष्क (Fore Brain), मध्य मस्तिष्क(Mid Brain) एवं पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)। प्रमस्तिष्क(Cerebram) एवं डाइएनसीफेलॉन (Diencephalon) अग्र मस्तिष्क के भाग होते हैं। मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क(Cerebellum) पश्च मस्तिष्क के भाग होते हैं। मध्य मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क मिल कर मस्तिष्क स्तंभ (Brain Stem) का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क स्तंभ मुख्यतः शरीर की जैविक क्रियाओं एवं चैतन्यता (Awareness) का नियंत्रण करता है। प्रमस्तिष्क गोलार्ध(Cerebral Hemisphere) प्रमस्तिष्क के दो सममितीय भाग होते हैं और आपस में मध्य में कॉर्पस कैलोसम (Corpus Callosum) द्वारा जुड़े होते हैं। इनकी सतह का भाग प्रमस्तिष्क वल्कुट(Cerebral Cortex) कहलाता है। मस्तिष्क के इन विभिन्न भागों की क्रियात्मक समरूपता वाली कोशिकाएं तंत्रिका संजाल (Neural Network) का निर्माण करती हैं। विभिन्न संजाल मिल कर प्रतिचित्र(Topographical Map) का निर्माण करते हैं।
मस्तिष्क में प्रतिचित्र के स्तर पर शरीर के सभी अंगो का संरचनात्मक निरूपण होता है। प्रमस्तिष्क वल्कुट का भाग समस्त संरचनात्मक निरूपण के लिए उत्तरदाई होता है। यह निरूपण प्रतिपार्श्विक(Contraleteral) अर्थात शरीर सममिति के दाहिने अक्ष का निरूपण बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्ध एवं बाएं अक्ष का निरूपण दाहिनी ओर होता है। चित्र में शरीर की विरूपता इसके विभिन्न भागों एवं अंगो के मस्तिष्क में निरूपित भाग को प्रदर्शित करती है। मस्तिष्क में इस निरूपण के चिकित्सकीय प्रमाण भी मिलते हैं। जब मस्तिष्क का कोई भाग चोट या किसी अन्य कारण से प्रभावित हो जाता है तो उससे संबंधित अंग या अंग तंत्र भी स्पष्टतः प्रभावित होता है। यह घटना प्रायः पक्षाघात (Paralysis) के रूप में देखने को मिलती है।

मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर इन सूचनाओं का संकलन एवं परिमार्जन किया जाता है। उदाहरण के लिए हम दृश्य (Vision) परिघटना को ले सकते हैं। किसी भी दृश्य का दिखाई देना उस पर पड़ रही प्रकाश की किरणों के प्रत्यावर्तन के कारण होता है। इस प्रत्यावर्तित प्रकाश की किरणें जब हमारी रेटिना पर पड़ती हैं तो उस दृश्य का एक उल्टा एवं द्विवीमीय प्रतिबिंब बनता है (क्योंकि रेटिना एक द्विवीमीय फोटोग्राफिक प्लेट की तरह कार्य करती है। परंतु जब मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्र में रेटिना द्वारा प्राप्त संकेतो की व्याख्या होती है तो हम एक वास्तविक त्रिविमीय दृश्य का अनुभव करते हैं। ऐसा मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर संयोजन, परिमार्जन एवं संसाधन (Processing) के कारण होता है।

*मनोविज्ञान-मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण*

मानसिक संक्रियाएँ व्यवहार के रूप में परिलक्षित होतीं हैं और व्यवहार मन से उत्पन्न होता है। मनोविज्ञान में मानसिक संक्रियाओं और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। मन का अध्ययन सदैव एक अबूझ पहेली रहा है। सबसे कठिनतम तो इसे परिभाषित करना ही है। सामान्यतः मन को मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण मान लेते हैं। मन की तीन मुख्य क्रियाएँ होतीं हैं सोचना, अनुभव करना एवं चाहना (Thinking, Feeling and Willing)। संज्ञानात्मक क्रियाएँ जैसे कि स्मृति, अधिगम, मेधा, ध्यान, दृष्टि, श्रवण, स्वाद, गंध, स्पर्श इत्यादि मन के विभिन्न प्रभाग होते हैं।

मन और पेट आपस मे जुड़े हुए हैं, स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन का वास होता है, स्वस्थ मन ही शरीर को आरोग्यता प्रदान करता है। मन खराब हो तो पेट को भूख नहीं लगती। पेट खराब हो तो कहीं भी मन नहीं लगता। अतः अन्नमय कोश व मनोमय कोश वस्तुतः एक दूसरे के पूरक हैं। इसलिए जानते हो मन को साधने के उपक्रम में व्रत-उपवास का समावेश भी किया जाता है। इसे आगे की कक्षा में और भी ज्यादा समझेंगे।

पँचकोशिय साधना में हम आपसे कोई चमत्कार का वादा नहीं कर रहे, यहां तो हम मष्तिष्क की प्रोग्रामिंग सीखेंगे, मष्तिष्क का बेहतरीन प्रयोग सीखेंगे। बुद्धि(IQ), स्मृति (Memory), प्रतिभा(Talent), दक्षता (Skills) बढ़ाने हेतु आध्यात्मिक प्रोग्रामिंग करेंगे। सबसे महत्त्वपूर्ण आत्मबल(Will power) और आध्यात्मिक शक्ति (Spiritual power) को प्राप्त करने हेतु विभिन्न साधनाएं करेंगे।

पँचकोशिय साधना से प्रत्यक्ष चमत्कार रूप से छप्पर फाड़कर कोई धन संपदा या बुद्धिकुशलता नहीं मिलती, जादूगरी की तरह हथेली पर सरसों नहीं उगता।

 अपितु इसकी साधना से हम सबके अंदर वह गुण, प्रतिभा, क्षमता, दक्षता व विभूतियां विकसित होती हैं, जो स्वयंमेव सुख-सम्पदा अर्जित करने की कला में हमें माहिर बनाता है। हमें सरसों की खेती करना सिखाता है।

लौकिक प्रत्यक्ष लाभ जो मिलेगा वह है:-
1- सद्बुद्धि, सद्ज्ञान
2- स्वास्थ्य में सुधार, तन व मन स्वस्थ
3- उत्साह व स्फूर्ति
4- सहयोग एवं मित्रता की अभिवृद्धि
5- अभावों की पूर्ति , साहस एवं तृप्ति

क्रमशः..
Reference - 📚गायत्री की पँचकोशी साधना एवं उपलब्धियां, पेज 1.7

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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