Tuesday, 3 March 2020

होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

*होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?*

यह प्रश्न एक बच्चे ने अपनी माँ से पूँछा।

माँ इस त्यौहार के माध्यम से बच्चे को जीवनदर्शन व जीवन की कठिनाइयों से जूझने का संदेश दिया। माँ ने बताया...

वसन्त का मौसम चल रहा है, पेड़ो में देखो नई नई कोपलें आ रही है। पूरी प्रकृति आनन्द उत्सव मना रही है। यह देखो सरसों के पीले पीले फूलों से भरे खेत यह गुनगुना रहे हैं। गेहूं की बालियां मुस्कुरा रही हैं।

ऐसे में मनुष्य भी प्रकृति के साथ यह उत्सव मनाता है, जो फ़ाल्गुन पूर्णिमा से अष्टमी तक विविध रूपों में चलता है।

ऋषि जानते हैं कि ऋतु परिवर्तन रोगों को निमंत्रण देता है। इसलिए रोगों के रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए ऐसे समय में होलिका दहन रूपी सामूहिक यज्ञ किया जाता है। इसमें औषधियों की हवन सामग्री, चन्दन, अगर, तगर, चिरायता, गिलोय, तेजपत्र, कपूर, गुग्गल, देशी गाय का घी इत्यादि जलाते हैं। सामूहिक रूप से लोग पूजन करते है और लोगों के श्वसन मार्ग से यह औषधियाँ भीतर प्रवेश करती हैं। भीतर के रोगाणु यह एंटीबायोटिक एंटीबैक्टीरियल धुंआ नष्ट करता है, साथ ही बाहर वातावरण में व्याप्त रोगाणुओं को भी नष्ट करता है। वायु प्रदूषण दूर करता है।

*नोट:*- यदि बिना औषधि के होलिका जलाई गई तो लाभ नहीं मिलता।

रंगों का त्योहार होली सभी के घर मे खुशियां लेकर आता है। यही वजह है कि इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार दिन में सूर्य की रौशनी में खुले आसमान के नीचे प्राकृतिक रंगों से मनाया जाता था। जो कि सामूहिक कलर थैरेपी(रँग चिकित्सा) करता था। सभी खुशी को विकेन्द्रित साथ करते थे, इसलिए यह रोग व विषाद मिटाकर साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट मनःस्थिति को देता है। विभिन्न आमोद प्रमोद, गाने लोगों को खुशियों से भर देते हैं।

*नोट:-* नकली व अप्राकृतिक रँग नुकसानदेह हैं।

*जीवन दर्शन सिखाती होली की पौराणिक कथा*

जैसे खेल के मैदान में चुनौती न हो तो खेलने का मज़ा नहीं आता, वैसे ही मनुष्य के जीवन में चुनौती(समस्या) न हो तो उसका जीवन उबाऊ(बोरिंग) हो जाता है। होली की पौराणिक कहानी जिंदगी में बहादुरी से लड़ना सिखाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस प्रवृत्ति वाला हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान के प्रति भक्ति को देखकर बहुत परेशान था। उसने प्रह्लाद का ध्यान ईश्वर से हटाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन उसे इसमें सफलता नहीं मिली। प्रह्लाद के गुरु नारद जी थे, उन्होंने जो सत्य ज्ञान व प्राणी मात्र के कल्याण की शिक्षा उसे दी थी। उस पर प्रह्लाद अडिग था। ईश्वर भक्ति उसकी अडिग थी। जिस राक्षस हिरण्यकश्यप से दुनियां डरती थी, उससे वह नहीं डरा। उसने कहा पिताजी मरना तो सबको एक दिन है, मैं कायरों की भांति जीना नहीं चाहता। मैं अपने गुरु के सिखाये सिद्धांत व निष्ठा से पीछे नहीं हटूंगा। आपको भी गरीब जनता को पीड़ा पहुंचाने नहीं दूंगा। आपको गलत नहीं करने दूंगा।

अंततः हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का फैसला किया। उसने इसके लिए अपनी बहन होलिका से आग्रह किया। ऐसा कहा जाता है कि होलिका को भगवान भोलेनाथ ने यह वरदान में एक शाल दी थी जिसे पहनने से वो कभी भी आग में नहीं जलेगी।
इस वरदान को पाने वाली होलिका ने सोचा कि वह  प्रह्लाद को आग में जाएगी और खुद शाल ओढ़ लेगी। इस तरह प्रह्लाद की जलने से मृत्यु हो जाएगी जबकि शाल उसको सुरक्षित रखेगा।

हालांकि हुआ इसके ठीक विपरीत – ऐन मौके पर भगवान विष्णु ने हवा का ऐसा झोंका चलाया कि शाल उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गयी। भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका का दहन हो गया। भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। प्रह्लाद की सच्ची निष्ठा, भक्ति व लोककल्याण की भावना ने उसकी रक्षा की। धर्म उसकी रक्षा करता है जो धर्म पालन में अडिग रहता है।

इस तरह सभी ने अच्छाई पर बुराई की जीत के प्रतीक स्वरूप मिठाइयां बांटी और होली के त्योहार की शुरुआत हुई। होली के दिन गिले शिकवे भुलाकर सभी एक दुसरे को रंग लगाकर और मिठाई खिलाकर इस त्योहार को मनाते हैं। एक दूसरे को धर्म मार्ग के अनुसरण को प्रेरित करते हुए प्रतीक स्वरूप रँग लगाया जाता है, मिठाईयां खिलाई जाती है।

हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वर मांगा था कि *वह  न दिन में मरे, न रात में मरे, न घर के अंदर मरे, न घर के बाहर मरे, न धरती पर मरे, न आकाश में मरे, न अस्त्र से मरे न ही प्राकृतिक आपदा से मरे, न देवता से मरे, न मनुष्य से मरे और न ही पशु मार सकें।* इसलिए स्वयं को अमर समझता था।

बेटा, जीवन मे ऐसी कई सारी समस्या तुम्हे दिखेंगी, लगेगा इसका तो कोई सॉल्यूशन हो ही नहीं सकता। तब यह कहानी याद रखना और पुनः विचार करना। जब समस्या सोचोगे तो समाधान नहीं दिखेगा। जब समाधान पर ध्यान केंद्रित करोगे तो समस्या नहीं बचेगी।

भगवान विष्णु को समाधान केंद्रित सोच के लिए जाना जाता है। उन्होंने इसका तोड़ निकाला। आधे नर और आधे सिंह रूप में प्रकट हुये। उसे अपने नाखूनों से अपनी गोद मे रखकर शाम के वक्त घर की देहरी में मारा। उसके अत्याचार का अंत किया। कभी भी हार न मानने का पर्व होली है। चुनौतियों से लड़ने का पर्व होली है। बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली है।


*यह त्योहार किसानों के रबी की फसल के तैयार होने के कारण भी मनाया जाता है।*

होली को मनाने का दूसरा मुख्य उद्देश्य केवल एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाना और प्रेम और भाईचारे के साथ रहना है।

जीवन के अनेक रंगों से परिचित कराती होली गर्मी की शुरुआत में ही मनाई जाती है, जो जीवन के लिए नया आगाज लेकर आती है।

*होली का महत्व - उसकी प्रेरणा है*

जीवन की अनेक कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने में ही होली का महत्व है। अगर हम सही हैं तो ईश्वर हमारे साथ होते हैं और हमारी सहायता करते हैं। जैसा कि उन्होंने भक्त प्रह्लाद की मदद की थी। रंगों का उपयोग केवल खुशी के प्रतीक के रूप में किया जाता है। जीवन में कुछ ऐसा अच्छा कार्य जरूर करना जिससे किसी दूसरे जरूरतमंद के जीवन मे खुशियों के रँग भर जाएं।

खुशियां बांटोगे तो हज़ार गुना होकर वह तुम तक जरूर लौटेंगी। दूसरे के जीवन में समाजसेवा से खुशियों के रँग भरोगे तो तुम्हारे जीवन मे भी खुशियां अपना रँग बिखेरेंगी। अच्छे व्यवहार व आत्मियता की मिठास से दूसरों को मधुर व्यवहार दोगे तो तुम तक भी मिठास जरूर पहुंचेगी।

आओ चलो हम सब भी यह त्यौहार इसके पीछे के विज्ञान व जीवन दर्शन को समझते हुए होली के गीत गाते गुनगुनाते रँग उड़ाते मनाएँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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