Saturday, 2 May 2020

हंस योग - सो$हम साधना, स्वयं के मूल स्वरूप को जानना

*हंस योग - सो$हम साधना, स्वयं के मूल स्वरूप को जानना*

मानसिक सन्याश्रम - मनुष्य का भारी पन उसके शरीर से जुड़े सम्बन्धों, उन सम्बन्धो से जुड़ी चिंताएं, शरीर से जुड़े नाम और उस नाम से जुड़े काम व परिणाम, पद व प्रतिष्ठा औऱ उससे जुड़े प्रसंशा या अनुसंशा का भार से मुक्ति आवश्यक है।

उदाहरण - मेरे इस शरीर का नामकरण - श्वेता हुआ था। मगर यदि कुछ और करते तो वह होता। पूर्व जन्म में कुछ और नाम होगा और आने वाले जन्मों में कुछ और नाम होगा। इस शरीर से जुड़े समस्त सम्बन्ध मेरी चिता के जलने के साथ जल जाएंगे, इस जीवन यात्रा से जब आगे बढूंगी तो सब सम्बन्धो को भूल जाऊंगी। जैसे पिछले जन्म में चितरोहण के बाद इस जन्म में कोई याद शेष नहीं है। वर्तमान जीवन मे इंजीनियर हूँ यह पद सांसारिक शिक्षा और संसार व्यवस्था ने एक टेक्नोलॉजी के काम करने वालो को दिया है। वस्तुतः यह एक कल्पना आधारित ही तो है, रिटायरमेंट में कार्य के छूटते ही यह भी तिरोहित हो जाएगा।

मानसिक सन्यास आश्रम में, एक एक करके अपनी समस्त पहचान उतारनी है।

कबीरदास जी की तरह चद्दर अब ज्यों कि त्यों करनी है। जन्म के समय जो आप बेनाम और बिना पहचान के निश्छल आत्मा थे बस उस स्वरूप में जीवन को ले जाना है।

बस आप हो पर वस्तुतः क्या हो यह महसूस करना है।

यदि कोई ज्ञानी कहता है - गुड़ मीठा है या मैं आत्मा हूँ या दीपक से प्रकाश मिलता है, तो प्रश्न यह उठता है कि क्या उसने गुड़ ख़ाकर का मिठास का अनुभव किया है? या पुस्तक पढ़कर बता रहा है। इसीतरह आत्मानुभूति हुई है या पुस्तकीय ज्ञान है। क्या उसने दीपक के प्रकाश को अनुभूत किया है? दीपक का चित्र अंधेरा दूर नहीं कर सकता, उसके प्रकाश के लिए ज्वलंत उपस्थिति अनिवार्य है।

यह एक अनूठी यात्रा है जिसमें कुछ भी सांसारिक साथ नहीं चल सकता, यह वह प्रवेश द्वार है जिसमें सांसारिक आई डी कार्ड नहीं चलेगा।  बुद्धि से परे जाना सम्भव है जब सांसारिक चिन्ताओ, इच्छाओं और सम्बन्धो से भारमुक्त होकर ही ऊपर उठने की प्रक्रिया है यह हंस योग - सो$हम साधना।

I am that, मैं वही हूँ यह अनुभवजन्य तब तक नहीं होगा, जब तक सांसारिक पहचान का बोझ साथ चलेगा।

जिस प्रकार भारी वस्त्राभूषण उतार देने पर शरीर हल्का हो जाता है, वैसे ही सांसारिक पहचान व पद प्रतिष्ठा के अलंकारों के मानसिक त्याग से मन हल्का हो जाएगा।

स्वयं चिंतन कीजिये कि आपने अपनी पहचान किन किन चीज़ों से जोड़ रखी है, बस मन ही मन दृढ़ होते जाइए कि यह मैं नहीं हूँ।

अहंकार का एक अर्थ होता है पहचान, बस समस्त पहचान चाहे रिश्तों-सम्बन्धों की हो या पद प्रतिष्ठा की हो या शरीर के जन्म के वक्त हुए नाम करण की हो। इन सबसे परे जाइये।

शरीर भाव से ऊपर उठकर बुद्धि से परे जाकर ही स्वयं को जान जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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