Sunday, 21 June 2020

बुद्धिमान अर्जुन को सतत जीवन युद्ध मे, अंतर्द्वंद में श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान की आज भी जरूरत है।

अपनी बुद्धि को सबकुछ मत समझना, यह दासी है तुम्हारी भावनाओं की। भावनाओं के प्रवाह में बुद्धि कुंठित हो जाती है, आदतों के आगे बुद्धि लाचार हो जाती है।

अतः बुद्धि को प्रज्ञा बुद्धि में बदलो, भावनाओं के हाथी पर साधनामय जीवन का अंकुश लगाओ। स्वयं के जीवन को सही दिशा दो।

जानते हो श्रीमद्भागवत गीता की जरूरत मूर्खो को नहीं है, अपितु बहुत ही ज्यादा अर्जुन जैसे बुद्धिमानो को है। क्योंकि बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी अर्जुन की तरह मोहग्रस्त व किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। बड़े से बड़ा डॉक्टर भी नशे के नुकसान को समझते हुए भी नशे की लत के आगे उसकी बुद्धि घुटने टेक देती है। ज्ञान का गांडीव उसके हाथ से छूट जाता है, व नशे का जहर व लेने से स्वयं को रोक नहीं पाता।

बुद्धिमान अर्जुन को सतत जीवन युद्ध मे, अंतर्द्वंद में श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान की आज भी जरूरत है।

अगर सुशांत सिंह राजपूत जब अर्जुन की तरह कन्फ्यूजन का शिकार हो गया था, मनोवल टूट गया था उस वक्त यदि गीता का 40 दिन तक पाठ कर लेता तो उसे आत्महत्या की आवश्यकता नहीं रह जाती। वह अपनी बुद्धि का गांडीव उठाता व अपने दुश्मनों को उन्हीं की चाल में परास्त करता। आने वाले अपने जैसे अन्य एक्टर एक्ट्रेस के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री को दुरुस्त करता। लाखो की प्रेरणा का स्रोत बनता। कायर नहीं कहलाता।

ज्यादा ज्ञानी व बुद्धिमान व्यक्ति के लिए सच्ची सलाहकार श्रीमद्भगवद्गीता आज भी है।

💐श्वेता, Diya

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