Sunday 21 June 2020

स्थूल जगत की प्रयोगशाला बाह्य और सूक्ष्म जगत की प्रयोगशाला मनुष्य के भीतर अंतर्जगत में होती है

हमारी कप जैसी बुद्धि में समुद्र जैसा समस्त  ज्ञान नहीं भर सकता। हमारी सीमित दृष्टि व कर्ण सबकुछ देख सुन नहीं सकते। बहुत कुछ अदृश्य जगत में है जो समझ से परे है। कोई वस्तु जब समझ से परे होती है तो कुछ लोग उसे चमत्कार कहते हैं और कुछ लोग अंधविश्वास कहते हैं।

नदी का पानी रोज पीने वाला और हवा में सांस लेने वाला आदिवासी जिसने कभी बिजली देखी न हो, कैसे मान ले कि पानी से बिजली उत्तपन्न होती है और हवा से भी होती है। वह कैसे मान ले कि भारत मे बैठा व्यक्ति सुदूर व्यक्ति से फेस देखते हुए वीडियो कॉल कर सकता है? उसके लिए यह चमत्कार है। कुछ बुद्धिमान आदिवासियों के लिये यह अंधविश्वास कहलायेगा।

स्थूल जगत की प्रयोगशाला बाह्य और सूक्ष्म जगत की प्रयोगशाला मनुष्य के भीतर अंतर्जगत में होती है। किसी के हृदय में कितना प्यार या नफरत है इसे न कोई तौल सकता है, न दिखा सकता है, न सुना सकता है और नहीं प्यार या नफ़रत का स्वाद चखा सकता है। यह तो सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा है। जो स्वयं को ही महसूस होती है, इसकी अभिव्यक्ति हम शब्दो के सहारे या कोई क्रिया कलाप से करते हैं।

अंतर्जगत की विशालता बाह्य जगत से अधिक है, ऐसा बाह्य जगत में कुछ भी नहीं जिसका रिमोट कंट्रोल अंतर्जगत में न हो।

भगवान की अनुभूति जब हृदय में होती है, तब उसकी कुछ अभिव्यक्ति बाहर उस व्यक्ति के व्यवहार व शब्दों से परिलक्षित होती है। ऐसे व्यक्ति के सान्निध्य में सुखानुभूति होती है, उसकी ऊर्जा हमारा मन शांत कर देती है। ऐसा व्यक्ति जहां निवास करता है, वहां बाहर से आये व्यक्ति को कुछ सकारात्मक ऊर्जा महसूस अवश्य होती है। साधारण व्यक्ति के घर, नकारात्मकता व कलह से भरे व्यक्ति के घर, व एक आध्यात्मिक व मन्त्र-यज्ञ ऊर्जा से भरे व्यक्ति के घर को स्वयं जाकर अनुभूत किया जा सकता है। जो जहां जिस मनःस्थिति से व जिस प्रकार ले विचारों में रहता है वह अपने घर मे वही ऊर्जा बिखेरता है। क्योंकि वह घर मे अधिक समय तक रहता है तो उस व्यक्ति की ऊर्जा उसके घर जाकर कुछ क्षण मौन शांत रहकर महसूस की जा सकती है।

यह अध्यात्म विज्ञान भी प्रायोगिक है, बस फर्क इतना है कि क्योंकि इसकी प्रयोगशाला मनुष्य का हृदय व मन है, तो इसे अनुभूत किसी दूसरे व्यक्ति का हृदय व मन कर सकता है।

💐श्वेता, DIYA

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