Monday 22 June 2020

प्रश्न - *परिवार के लोगों में न मन्त्र जप में रुचि है और न ही यज्ञ में रुचि है। न ही आस्तिकता के कोई चिन्ह है। सभी नास्तिक प्रवृत्ति के प्रतीत होते हैं, क्या करें?*

प्रश्न - *परिवार के लोगों में न मन्त्र जप में रुचि है और न ही यज्ञ में रुचि है। न ही आस्तिकता के कोई चिन्ह है। सभी नास्तिक प्रवृत्ति के प्रतीत होते हैं,  क्या करें?*

उत्तर - आत्मीय बहन,
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*आस्तिक* - *ईश्वर है, जो है उसका आभार प्रकट करना, आत्मा के मूल स्रोत से जुड़ना व पूर्णता प्राप्त करना।*
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*नास्तिक* - *ईश्वर नहीं है, जिसे देखा नहीं, अनुभव नहीं किया उसे कैसे मान लूँ? आभार किसे प्रकट करूँ पहले यह बताओ तब धार्मिक कर्म करूंगा?*
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*कुतार्किक* - *पूजा पाठ से कुछ नहीं होता, यह अंधविश्वास है। चार दिन की जिंदगी है खेलो खाओ मौज करो।*

आस्तिक व नास्तिक दोनों ही अच्छे व्यक्ति होते हैं। एक श्रद्धा को महत्त्व देता है और दूसरा विवेक को महत्त्व देता है। तीसरा कुतार्किक धोबी के कुत्ते की तरह होता है - न उसके पास श्रद्धा होती है और न ही उसके पास विवेक होता है, उसके पास केवल अंहकार होता है। वह फ़िल्मी हस्तियों और अमीर लोगों की नकल करता है। तो कुतार्किक के लिए मेरे पास कोई समाधान नहीं है।

यदि आप आस्तिक हैं, श्रद्धा आपके पास है अब अपने घर के नास्तिक परिवार जन के लिए आपको विवेक जगाना होगा। गायत्री मन्त्र जप, ध्यान व यज्ञ के ज्ञान विज्ञान को समझना होगा। नास्तिक व्यक्ति को तथ्य तर्क व प्रमाण के साथ अध्यात्म की गूढ़ता बतानी होगी।

आप में हो रहे अध्यात्म जनित परिवर्तन को प्रत्येक परिवार वाले बड़ी  गहराई से देखते हैं। आप कितनी शांत, स्थिर व सुलझी हुई मनःस्थिति की बनी यह परिवार जन नोटिस करते हैं। यदि उन्हें आपके आध्यात्मिक होने के बावजूद आप में अध्यात्म के चिन्ह नहीं दिखे तो वह अध्यात्म में प्रवेश नहीं करेंगे।

वाद्य यंत्र वही बजाना सिखा सकता है, जो स्वयं बजाना जानता हो। अध्यात्म में दूसरे को वही प्रवेश करवा सकता है, जो अध्यात्म के मर्म से जुड़ चुका है।

निम्नलिखित अभ्यास 108 दिन अनवरत अपनाइए और फ़िर परिवार वालों को अध्यात्म से जोड़ने का प्रयास कीजिये :-

1- नित्य पूजन में षट्कर्म व दैनिक पूजन के बाद एक अध्याय श्रीमद्भगवद्गीता गीता के हिंदी अर्थों को पढ़िये। फिर गायत्री मंत्र जप और अंत मे यज्ञ कीजिये।

2- भगवान से प्रार्थना कीजिये, भगवान हम अभी आपको दूसरे के कहने पर मानते हैं, लेकिन हमने अभी आपको अनुभूत नहीं किया है। आप कण कण में हो, मुझे आपकी अनुभूति करनी है। मेरे भीतर श्रद्धा स्थिर कर दो और विवेक जगा दो। मैं आपकी अनुभूति कर सकूं, मुझे अपनी शरण मे ले लीजिए।

3- हे स्वामी! मेरे परिवार जन को अपनी शरण में लीजिये। इनके अंदर भी भक्ति भाव जगा दीजिये। मेरे अंदर इतना भक्ति भाव व ज्ञान भर दीजिये, जिससे मैं अपने परिवार जन को आपकी शरण मे लाने में सक्षम हो सकूँ।

4- प्रभु! मेरा जन्म मेरे हाथ में नहीं था, न मेरे हाथ में मेरी मृत्यु है। प्रभु हम मनुष्य तो श्वांस भी अपनी मर्जी से नहीं ले सकते, गयी हुई श्वांस को नहीं लौटा सकते। हम मनुष्य तो अब तक आपकी तरह कोई मशीन नहीं बना पाए जिसमें रोटी व फ़ल डालें व रक्त मांस मज्जा व हड्डी बना सके। हमारे शरीर का ऑटोमेटिक सॉफ्टवेयर प्रभु आपने बनाया है जो देख, सुन, बोल, समझ व सोच इत्यादि सकता है। मैं आपकी ऋणी हूँ प्रभु, आपका आभार व्यक्त करती हूँ।

5- मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य दीजिये, मेरी इस आत्मा को प्रकाशित कीजिये, मुझे दिया बनांकर ज्योतिमय कर दीजिए। इस प्रकाशित आत्मा से नित्य मैं भूले भटको को राह दिखा सकूं, ऐसा मुझे बना दीजिये।

6- मन्त्र के ज्ञान विज्ञान, ध्यान के ज्ञान विज्ञान और यज्ञ के ज्ञान विज्ञान का स्वाध्याय मैं करूंगी, आप मेरा मार्गदर्शन करें जो पढूँ वह मुझे समझ आ जाये ऐसी कृपा कीजिये गुरुदेव।

7- हे प्रभु, मुझमें देवत्व जगा दो, मुझे प्राणवान बना दो, मुझसे अपना कार्य करवा लो, मुझे विश्व का मित्र बना दो।  मैं आपका आह्वाहन अर्जुन की तरह कर रही हूँ, मेरे बुद्धि रथ के सारथी बन जाइये। मेरे जीवन युद्ध में मेरे साथ सदैव मेरे मित्र मार्गदर्शक के रूप में रहिये। मैं आपका आह्वाहन करती हूँ, मेरे बुद्धि व हृदय में सदा निवास करें, मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य दें। मेरे समस्त परिवार को अपनी शरण मे ले लीजिए।

बहन, बुझा हुआ दीपक दूसरे दीपक को जला नहीं सकता और न हीं किसी और को राह दिखा सकता है।

इसलिए दीपक बन प्रकाशित हो उठने के लिए पात्रता-योग्यता विकसित करो, संयमित जीवन बनाओ और सदा जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करके अपने दीपक में ईंधन भरती रहो। परमात्मा की ज्योति तुममें उतरेगी। जब दिया जलता है तो लोगों को उसका प्रकाश परिचय स्वतः दे देता है। दिया के नीचे भी अंधेरा रहता है, तुमसे ईर्ष्या करने वाले तुम्हारे साथ रहकर भी लाभान्वित नहीं होंगे। उनके लिए दूसरे प्रकाशित व्यक्ति की मदद लेनी होगी।

जब तुम 108 दिन की साधना पूरी कर लेना, नित्य स्वाध्याय से ज्ञानार्जन कर लेना। तब नास्तिक परिवार जन को समझाना - मनुष्य की सीमित दृष्टि व सीमित कर्ण आकाश से परे व धरती के नीचे नहीं देख व सुन सकते। बहुत कुछ ऐसा है जो अनुभव से परे है। स्थूल जगत की तरह सूक्ष्म जगत भी अस्तित्व में है। जल की तरह समस्त तत्वों का ठोस, तरल और वाष्पीय(अदृश्य) जगत है। अपनी बुद्धि से परे सोचने वाले लोगों ने ही विविध अनुसंधान किये हैं। धर्मग्रन्थो की लिखी बातें आज विज्ञान भी सही मान रहा है। AIIMS में गायत्रीमंत्र जप की रिसर्च डॉक्टर रमा जय सुंदर की यूट्यूब में दिखाना, डॉक्टर ममता सक्सेना व टीम के यज्ञ शोध उनसे शेयर करना। मेडिटेशन की रिसर्च दिखाना। उनसे कहना - स्वयं अभ्यास करो, जब स्वयं को लाभ न मिले तब नकारना। बिना प्रयास किये कोई बात कहना, विवेकी मनुष्यो को शोभा नहीं देता।

40 दिन का चैलेंज - घर वालों को गायत्री मन्त्र जप, यज्ञ, ध्यान व स्वाध्याय का लेने के लिए कहें, यदि लाभ न मिले तो फिर दावे के साथ अध्यात्म को नकारना। यदि लाभ मिले तो शुद्ध मन से अध्यात्म के लाभ को स्वीकार लेना। आप मेरे परिवार जन है , आप स्वस्थ व सुखी रहें यही हम चाहते हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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