Monday 22 June 2020

घटना- जब "बुद्ध" के समक्ष एक वृद्धा एक मात्र शेष बचे पुत्र के जीवनदान हेतु आयी

*घटना- जब "बुद्ध" के समक्ष एक वृद्धा एक मात्र शेष बचे पुत्र के जीवनदान हेतु आयी*

भगवान बुद्ध प्रव्रज्या में थे, एक ग़ांव में ठहरे हुए थे। उसी ग़ांव में सुबह सुबह एक वृद्धा जिसका पति व दो पुत्र नाव से व्यापार करने जाते थे, पिछले वर्ष नदी में डूबकर मर गए थे। एक मात्र छोटा पुत्र शेष था, आज सुबह सर्प ने उसे डस लिया। वह पागल सी हो गयी, पुत्र मोह में विलाप कर रही थी। लोगों ने कहा, अपने पुत्र को चलो बुद्ध के पास ले चलो, यदि उनकी कृपा हुई तो वह इसे जीवित कर देंगे। रोती हुई वृद्धा के भीतर उम्मीद की आस जगी और बच्चे की लाश ग्रामीण जनों के साथ लेकर बुद्ध के पास पहुंची। पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना करने लगी।

बुद्ध ने कहा - माता सूर्यास्त के बाद मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा। बस मुझे इसे जीवनदान देने के लिए कुछ तिल के बीज चाहिए। तुम जाओ उस घर से तिल के बीज ले आओ, जहां किसी की कभी मृत्यु न हुई हो।

वृद्धा तुरन्त तिल लेने ग़ांव के घर घर के दरवाज़े खटखटाने लगी। सबने कहा जितना तिल चाहिए ले जाओ, मग़र मेरे घर में कई मृत्यु हुई हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त हो गया, सबके घर में मृत्यु हुई थी। अतः वह तिल न ला सकी। अंत मे बगल के ग़ांव के जमींदार के घर तिल माँगने गयी, तो जमींदार की पत्नी बिलख उठी बोली आज ही मेरे हाल में जन्में पोते का निधन हुआ है। मैं तुझे कई बैलगाड़ी भर के तिल दे दूंगी, यदि अपने पुत्र के साथ साथ मेरे पोते को भी जीवनदान बुद्ध से दिला दे। तभी जमींदार पोते की लाश को दफ़नाने के लिए मिट्टी खोद रहा था, क्योंकि हाल में जन्में बच्चे को चिता में नहीं जलाते दफ़नाते है। वह वृद्धा मानो ठिठक सी गयी, वह चुपचाप नवजात बच्चे की लाश को मिट्टी में दबाते हुए देख रही थी।

जमींदार बोला - माई, जो जन्मा है वह तो एक न एक दिन मरेगा ही। कोई आज मरा है कोई कल मरेगा। तुझे ऐसा कोई घर नहीं मिलेगा जहां कोई मरा न हो। बुद्ध तुझे यही समझाना चाहते थे, इसलिए तुझे ऐसे घर से तिल लाने को कहा जहां सब अमर हों, कोई मरा न हो।

वृद्धा माँ जो अशांत व्यग्र सुबह तिल लेने घर घर निकली थी, वह पूर्णतया शांत व स्थिर हो चुकी थी, सभी घरों में मृत्यु के समाचार उसके अंदर मृत्यु की शाश्वत सत्ता का बोध करा गए।

बुद्ध के पास आते आते सूर्यास्त होने को था, ग्रामीण खड़े थे। वह बुद्ध के चरणों में गिरकर बोली, मेरे पुत्र को जीवनदान देने की अब आवश्यकता नहीं, यदि आज यह जीवित हो गया तो भी एक न एक दिन यह पुनः मरेगा। यह जब भी मरेगा किसी भी उम्र में मरेगा, मुझे दुःख होगा ही। मैं भी मरूँगी।

हे बुद्ध! मुझे तो अब आप यह बताइये मेरे भीतर कौन है जिसके कारण मैं जीवित हूँ? कौन है मुझमें जो दर्पण में भी नहीं दिखता? वह मुझमें कहाँ है जिसके आने से मेरा शरीर जीवित है और जो शरीर को छोड़ेगा तो मैं मृत हो जाऊंगी अपने पुत्र की तरह।

मुझे मृत्यु लोक का रहस्य बताइये, मुझे दीक्षा दीजिये।

बिना अश्रु बहाए, शांत व स्थिर चित्त से उसने पुत्र का अंतिम संस्कार किया। बुद्ध की शरण मे सन्यास लिया, सभी उम्मीदों, आशाओं, आकांक्षाओं, इच्छाओं, वासनाओं का उसने त्याग कर दिया, स्वयं की पहचान को भी छोड़ दिया। एक भिक्षुणी बनकर गहन ध्यान साधना की व जनजागृति करती हुई और मोह में फंसे लोगों को ताउम्र उबारती रही।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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